ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 12
ग॒य॒स्फानो॑ अमीव॒हा व॑सु॒वित्पु॑ष्टि॒वर्ध॑नः। सु॒मि॒त्रः सो॑म नो भव ॥
स्वर सहित पद पाठग॒य॒ऽस्फानः॑ । अ॒मी॒व॒ऽहा । व॒सु॒ऽवित् । पु॒ष्टि॒ऽवर्ध॑नः । सु॒ऽमि॒त्रः । सो॒म॒ । नः॒ । भ॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
गयस्फानो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः। सुमित्रः सोम नो भव ॥
स्वर रहित पद पाठगयऽस्फानः। अमीवऽहा। वसुऽवित्। पुष्टिऽवर्धनः। सुऽमित्रः। सोम। नः। भव ॥ १.९१.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 12
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
विषय - स्तुतिविषयः
व्याखान -
हे परमात्मभक्त जीवो! अपना इष्ट जो परमेश्वर, सो (गयस्फानः) प्रजा, धन, जनपद और स्वराज्य का बढ़ानेवाला है, तथा (अमीवहा) शरीर, इन्द्रियजन्य और मानस रोगों का हनन (विनाश) करनेवाला है। (वसुवित्) पृथिव्यादि सब वसुओं का जाननेवाला है, अर्थात् सर्वज्ञ और विद्यादि धन का दाता है, (पुष्टिवर्धनः) हमारे शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा की पुष्टि को बढ़ानेवाला है। (सुमित्रः, सोम, नः, भव) सुष्ठु, सबका यथावत् परममित्र वही है, सो अपन' उससे यह माँगें कि हे सोम ! सर्वजगदुत्पादक! आप ही कृपा करके हमारे सुमित्र हों और हम भी सब जीवों के मित्र हों तथा अत्यन्त मित्रता आपसे ही रक्खें ॥ ३८ ॥
टिपण्णी -
अपन=हम लोग