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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 189 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 189/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अगस्त्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒ये अ॒स्मान्विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्। यु॒यो॒ध्य१॒॑स्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठां ते॒ नम॑उक्तिं विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । नय॑ । सु॒ऽपथा॑ । रा॒ये । अ॒स्मान् । विश्वा॑नि । दे॒व॒ । व॒युना॑नि । वि॒द्वान् । यु॒यो॒धि । अ॒स्मत् । जु॒हु॒रा॒णम् । एनः॑ । भूयि॑ष्ठाम् । ते॒ । नमः॑ऽउक्तिम् । वि॒धे॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्य१स्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। नय। सुऽपथा। राये। अस्मान्। विश्वानि। देव। वयुनानि। विद्वान्। युयोधि। अस्मत्। जुहुराणम्। एनः। भूयिष्ठाम्। ते। नमःऽउक्तिम्। विधेम ॥ १.१८९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 189; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरगुणानाह ।

    अन्वयः

    हे देवाऽग्ने विद्वाँस्त्वमस्मान्राये सुपथा विश्वानि वयुनानि नय। जुहुराणमेनोऽस्मद्युयोधि यतो वयं ते भूयिष्ठां नमउक्तिं विधेम ॥ १ ॥

    पदार्थः

    (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूपेश्वर (नय) प्रापय (सुपथा) धर्म्येण सुगमेन सरलेन मार्गेण (राये) ऐश्वर्यानन्दप्राप्तये (अस्मान्) मुमुक्षून् (विश्वानि) सर्वाणि चराचरजगत्कर्माणि च (देव) कमनीयानन्दप्रद (वयुनानि) प्रज्ञानानि (विद्वान्) यो वेत्ति (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) (जुहुराणम्) कुटिलगतिजन्यम् (एनः) पापम् (भूयिष्ठाम्) अधिकाम् (ते) तव (नमउक्तिम्) नमसा सत्कारेण सह स्तुतिम् (विधेम) कुर्याम ॥ १ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्धर्मविज्ञानमार्गप्राप्तये अधर्मनिवृत्तये च परमेश्वरः सम्प्रार्थनीयः सदा सुमार्गेण गन्तव्यं दुष्पथादधर्ममार्गात्पृथक् स्थातव्यं यथा विद्वांसः परमेश्वरे परानुरक्तिं कुर्वन्ति तथेतरैश्च कार्या ॥ १ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब एकसौ नवासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर के गुणों का उपदेश करते हैं ।

    पदार्थ

    हे (देव) मनोहर आनन्द के देनेवाले (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूपेश्वर (विद्वान्) सकल शास्त्रवेत्ता ! आप (अस्मान्) हम मुमुक्षु अर्थात् मोक्ष चाहते हुए जनों को (राये) धनादि प्राप्ति के लिये (सुपथा) धर्मयुक्त सरल मार्ग से (विश्वानि) समस्त (वयुनानि) उत्तम-उत्तम ज्ञानों को (नय) प्राप्त कराइये, (जुहुराणम्) खोटी चाल से उत्पन्न हुए (एनः) पाप को (अस्मत्) हमसे (युयोधि) अलग करिये जिसमें हम (ते) आपकी (भूयिष्ठाम्) अधिकतर (नमउक्तिम्) सत्कार के साथ स्तुति का (विधेम) विधान करें ॥ १ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को धर्म तथा विज्ञान मार्ग की प्राप्ति और अधर्म की निवृत्ति के लिये परमेश्वर की अच्छे प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये और सदा सुमार्ग से चलना चाहिये, दुःखरूपी अधर्ममार्ग से अलग रहना चाहिये, जैसे विद्वान् लोग परमेश्वर में उत्तम अनुराग करते वैसे अन्य लोगों को भी करना चाहिये ॥ १ ॥

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    विषय

    शुभ मार्ग से न कि अशुभ से

    पदार्थ

    १. (अग्ने) = हे अग्रणी परमात्मन् ! (अस्मान्) = हमें (राये) = ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए (सुपथा नय) = उत्तम मार्ग से ले चलिए। हम कुमार्ग से धन कमाने में प्रवृत्त न हों। अवनति का प्रारम्भ यहीं से होता है कि लोभ में पड़कर हम जैसे-तैसे धन कमाने में प्रवृत्त हो जाते हैं । धन ही हमारे जीवन का लक्ष्य हो जाता है और अन्ततः हमारे निधन का कारण होता है। २. हे (देव) = दिव्य गुणों के पुञ्ज, प्रकाशमय प्रभो! आप (विश्वानि) = सब (वयुनानि) = प्रज्ञानों को विद्वान्-जानते हैं। आप हमारे मनों में आनेवाले अशुभ विचारों को ही समाप्त कर दीजिए । (अस्मत्) = हमसे (जुहुराणम्) = कुटिलता को तथा (एनः) = पाप को (युयोधि) = पृथक् कीजिए। इस पापवृत्ति से बचने के लिए ही हम ते आपकी (भूयिष्ठाम्) = बहुत अधिक (नमउक्तिम्) = नमन की उक्ति को (विधेम) = करते हैं, निरन्तर आपका स्तवन करते हैं। आपका यह स्तवन हमें पाप से पृथक् रखता है। शुभ मार्ग से ही धन कमाते हुए हम जीवन यात्रा को शोभा से पूर्ण कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम शुभ मार्ग से ही धन कमाएँ । प्रभु-स्तवन करते हुए अशुभ की ओर झुकाव से अपने को बचाएँ ।

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    विषय

    मार्गदर्शी प्रभु ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) प्रकाश स्वरूप परमेश्वर ! तू विद्वान् मार्गदर्शक के समान (अस्मान्) हमें (राये) ऐश्वर्य और आनन्द को प्राप्त करने के लिये (सुपथा) उत्तम धर्मानुसार, सुखप्रद मार्ग से (नय) ले चल, हे (देव) सर्वप्रकाशक ! तू (विश्वानि वयुनानि) सब ज्ञानों, जानने योग्य विद्याओं को (विद्वान्) जानने हारा है । तू (अस्मत्) हमसे (जुहुराणम्) कुटिल कर्मों से उत्पन्न (एनः) पाप को (युयोधि) दूर कर । (ते) तेरे लिये हम (भूयिष्ठां) बहुत २ (नमः-उक्तिम्) नमस्कार वचन, सत्कार सहित उत्तम गुण स्तुति (विधेम) करें । ( २ ) (अग्नि) विद्वान् पुरुष भी सब विद्याओं को जाने, ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये उत्तम धर्मानुसार मार्ग पर चले। पापों, कुटिल वृत्तियों को दूर करे, सब लोग उसका अधिकाधिक आदर और उसे नमस्कार किया करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:– १, ४, ८ निचृत् त्रिष्टुप्। २ भुरिक् पङ्क्तिः। ३, ५, ६ विराट् पङ्क्तिः॥ ७ पङ्क्तिः॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात परमेश्वर, विद्वान व शिक्षण देणाऱ्यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    माणसांनी धर्म व विज्ञानाची प्राप्ती व अधर्माच्या निवृत्तीसाठी परमेश्वराची चांगल्या प्रकारे प्रार्थना केली पाहिजे व सदैव सुमार्गाने चालले पाहिजे. दुःखरूपी अधर्म मार्गापासून दूर राहिले पाहिजे. जसे विद्वान लोक परमेश्वरात अनुरक्त असतात, तसे इतर लोकांनीही राहिले पाहिजे. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, light of life and lord giver of bliss to humanity, lead us to the wealth and joy of the world by the simple and straight path of rectitude. Brilliant and generous lord of power, you are the master of the knowledge of all the ways and laws of life and the world. Ward off all the sin and evil and crookedness from us. Bless us that we may always sing songs of homage and worship to you more and ever more.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of God are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God ! you are Giver of the most desirable Bliss, Self resplendent Lord, and possessing all the kinds of knowledge. Lead us by righteous easy and straight path to prosperity and Bliss. Keep us away from the sin, because it would take us astray, and we may not be able to offer you the most respectful and worthy adoration.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The persons should always pray to God for the achievement of path that leads to Dharma (righteousness), true knowledge and for refraining from the unrighteousness. They should always follow the noble path and should keep away from unrighteousness. All should have that intense love towards God, like the enlightened wise men.

    Foot Notes

    (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूपेश्वर = Self-refulgent God. (देव) कमनीयानन्दप्रद । = Giver of the most desirable Bliss. (राये) ऐश्वर्यानन्दप्राप्तव्ये |= For the achievement of prosperity and Bliss. (जुहुरराणम्) कुटिलगतिजन्यम् । विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् अन्यत् प्रसंगे = Born out of crookedness. Prof. Wilson has translated even विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् which has been used as an epithet of अग्नि thereby meaning all kinds of knowledge. Obviously, that meaning is impossible in the context of material fire of fuel. Yet, these Western scholars generally plant the meaning of material fire.

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