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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1198
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    6

    म꣣दच्यु꣡त्क्षे꣢ति꣣ सा꣡द꣢ने꣣ सि꣡न्धो꣢रू꣣र्मा꣡ वि꣢प꣣श्चि꣢त् । सो꣡मो꣢ गौ꣣री꣡ अधि꣢꣯ श्रि꣣तः꣢ ॥११९८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म꣣दच्यु꣢त् । म꣣द । च्यु꣢त् । क्षे꣣ति । सा꣡द꣢꣯ने । सि꣡न्धोः꣢꣯ । ऊ꣣र्मा꣢ । वि꣣पश्चि꣢त् । वि꣣पः । चि꣢त् । सो꣡मः꣢꣯ । गौ꣣री꣡इति꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । श्रि꣣तः꣢ ॥११९८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मदच्युत्क्षेति सादने सिन्धोरूर्मा विपश्चित् । सोमो गौरी अधि श्रितः ॥११९८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मदच्युत् । मद । च्युत् । क्षेति । सादने । सिन्धोः । ऊर्मा । विपश्चित् । विपः । चित् । सोमः । गौरीइति । अधि । श्रितः ॥११९८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1198
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि कौन कहाँ निवास करता है।

    पदार्थ

    (मदच्युत्) आनन्द को परिस्रुत करनेवाला परमेश्वर (सादने) जीवात्मा-रूप सदन में (क्षेति) निवास करता है। (विपश्चित्) और बुद्धिमान् जीवात्मा (सिन्धोः) रसागार परमेश्वररूप सिन्धु की (ऊर्मौ) आनन्द की लहर में (क्षेति) निवास करता है अर्थात् उसमें झूला झूलने का आनन्द लेता है। (सोमः) वह रसागार परमात्मा (गौरी) शुभ्र वेदवाणी में (अधि श्रितः) स्थित है, वर्णित है ॥३॥

    भावार्थ

    वेद जिसकी महिमा को गाते-गाते नहीं थकते, उस आनन्द-सागर परमेश्वर की तरङ्गों में झूला झूलता हुआ जीव कृतकृत्य हो जाता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (मदच्युत्-विपश्चित्-सोमः) हर्ष चुवानेवाला—प्राप्त करानेवाला सर्वज्ञ, सर्वद्रष्टा, शान्तस्वरूप परमात्मा (सिन्धोः-ऊर्मा सादने क्षेति) समस्त शरीर को नाड़ी जालों में बाँधनेवाले७ हृदय के ज्योति, तरङ्ग रूप, स्थान में प्राप्त होता है८ (गौरी अधिश्रितः) स्तुति वाणी में९ अधिश्रित हुआ स्तुति करते रहने से॥३॥

    विशेष

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    विषय

    मद- च्युत्

    पदार्थ

    (मद- च्युत्) = गर्व न करनेवाला (विपश्चित्) = वस्तुतत्त्वों को देखकर विशेषरूप से चिन्तन करनेवाला विद्वान् (सादने) = वासनाओं को विनष्ट कर देने पर (सिन्धोः) = [स्यन्दमाना: अपः = रेतः] सामान्यतः निम्नदेश [नीचे] की ओर बहनेवाले जलों – रेतः कणों के (ऊर्मों) = ऊर्ध्वगति [upward flow] में क्(षेति) = निवास करता है । जब मनुष्य चिन्तनशील बनता है तब सामान्यतः वासनाओं का शिकार नहीं होता। शरीर में उत्पन्न सोम का विलास में व्यय न कर उसकी ऊर्ध्वगतिवाला होता है और एक अद्भुत आनन्द का अनुभव करता है। उस समय यह मद को, विषयों को छोड़ देता है। यह विषयमद उसके लिए तुच्छ हो जाता है ।

    (सोमः) = सोम की रक्षा के द्वारा सौम्य स्वभाव बना हुआ यह ज्ञानी अपने अधिक-से-अधिक समय में (गौरी अधि) =[गौरी=वाङ्नाम–नि० १.११.५] वाणी में, वेदवाणी के अध्ययन में (श्रितः) = लगा होता है। यह अपना अधिक-से-अधिक समय ज्ञानोपार्जन में बिताता है ।

    भावार्थ

    १. हम शरीर में सोम की ऊर्ध्वगतिवाले हों, २. मद से रहित होकर सौम्य बनें । ३. अपना समय ज्ञानोपार्जन में बिताएँ ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (विपश्चित्) ज्ञान और कर्म फल का सञ्चय करने वाला, (मदच्युत्) हर्ष और आनन्द का जनक, (सोमः) शमादि सम्पन्न, विद्वान् पुरुष, (गौरी) वेदमयी वाणी में (अधिश्रितः) आश्रय पाकर (मदच्युत्) ज्ञानी होकर (सादने) अपने आश्रय देने वाले (ऊर्मौ) ऊर्ध्व गति की तरफ़ लेजाने हारे (सिन्धौ) सिन्धु के समान सब को गति देने, सबको बांधने और अपने में आश्रय देने हारे, प्राणों के प्राण और ज्ञान के समुद्र परमात्मा में (क्षेति) निवास करता है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ प्रतर्दनो दैवोदामिः। २-४ असितः काश्यपो देवलो वा। ५, ११ उचथ्यः। ६, ७ ममहीयुः। ८, १५ निध्रुविः कश्यपः। ९ वसिष्ठः। १० सुकक्षः। १२ कविंः। १३ देवातिथिः काण्वः। १४ भर्गः प्रागाथः। १६ अम्बरीषः। ऋजिश्वा च। १७ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः। १८ उशनाः काव्यः। १९ नृमेधः। २० जेता माधुच्छन्दसः॥ देवता—१-८, ११, १२, १५-१७ पवमानः सोमः। ९, १८ अग्निः। १०, १३, १४, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—२-११, १५, १८ गायत्री। त्रिष्टुप्। १२ जगती। १३ बृहती। १४, १५, १८ प्रागाथं। १६, २० अनुष्टुप् १७ द्विपदा विराट्। १९ उष्णिक्॥ स्वरः—२-११, १५, १८ षड्जः। १ धैवतः। १२ निषादः। १३, १४ मध्यमः। १६,२० गान्धारः। १७ पञ्चमः। १९ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ कः कुत्र निवसतीत्याह।

    पदार्थः

    (मदच्युत्) आनन्दस्रावकः परमेश्वरः (सादने) जीवात्मरूपे गृहे (क्षेति) क्षियति निवसति, (विपश्चित्) मेधावी जीवात्मा च (सिन्धोः) रससागरस्य परमेश्वरस्य (ऊर्मौ) आनन्दतरङ्गे (क्षेति) निवसति, तत्र दोलारोहणमनुभवतीत्यर्थः। (सोमः) स रसागारः परमात्मा (गौरी) गौर्यां शुभ्रायां वेदवाचि। [गौरी इति वाङ्नाम। निघं० १।११।] (अधि श्रितः) स्थितोऽस्ति, वर्णितो वर्तते ॥३॥

    भावार्थः

    वेदा यस्य महिमानं गायं गायं न श्राम्यन्ति तस्यानन्दसिन्धोः परमेश्वरस्यानन्दवीचिनिचयेषु दोलायमानो जीवः कृतकृत्यो जायते ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१२।३।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    A wise person, the gleaner of knowledge and action, the distiller of rapture, having full faith in the teachings of the Vedas, dwells in God, the Ocean of knowledge, his last Refuge and Guide to spiritual advancement.

    Translator Comment

    Gauri Adhl Shrita' has been translated as ‘Resting on the wild cow‘s hide' by Benfey, whom Griffith has followed. Pt. Jaidev Vidyalankar translates it as ‘Having full faith on the teachings of the Vedas’ which is more rational and convincing.

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    Meaning

    The joyous waves abide by the sea, the saintly joy of the wise abides in the Vedic voice, and the soma joy that is exuberant in divine ecstasy abides in the hall of yajna. (Rg. 9-12-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मदच्युत् विपश्चित् सोमः) હર્ષ ટપકાવનાર-રેલાવનાર-પ્રાપ્ત કરાવનાર સર્વજ્ઞ, સર્વદ્રષ્ટા, શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (सिन्धोः ऊर्मा सादने क्षेति) સમસ્ત શરીરના નાડી જાળાઓને બાંધનાર, હૃદયની જ્યોતિ, તરંગરૂપ, સ્થાનમાં પ્રાપ્ત થાય છે. (गौरी अधिश्रितः) સ્તુતિ વાણીમાં અધિશ્રિત થઈને સ્તુતિ કરતાં રહેવાથી. [પ્રાપ્ત થાય છે.] (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वेद ज्याची महिमा गाता गाता थकत नाही त्या आनंद सागर परमेश्वराच्या झुल्यावर झुलत जीव कृतकृत्य होतो. ॥३॥

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