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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1223
    ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    9

    इ꣢न्द्रः꣣ स꣡ दाम꣢꣯ने कृ꣣त꣡ ओजि꣢꣯ष्ठः꣣ स꣡ बले꣢꣯ हि꣣तः꣢ । द्यु꣣म्नी꣢ श्लो꣣की꣢꣫ स सो꣣म्यः꣢ ॥१२२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣡न्द्रः꣢꣯ । सः । दा꣡म꣢꣯ने । कृ꣣तः꣢ । ओ꣡जि꣢꣯ष्ठः । सः । ब꣡ले꣢꣯ । हि꣣तः꣢ । द्यु꣣म्नी꣢ । श्लो꣣की꣢ । सः । सो꣣म्यः꣢ ॥१२२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रः स दामने कृत ओजिष्ठः स बले हितः । द्युम्नी श्लोकी स सोम्यः ॥१२२३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः । सः । दामने । कृतः । ओजिष्ठः । सः । बले । हितः । द्युम्नी । श्लोकी । सः । सोम्यः ॥१२२३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1223
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा, जीवात्मा और राजा का विषय वर्णित करते हैं।

    पदार्थ

    (सः इन्द्रः) वह परमेश्वर, जीवात्मा वा राजा (दामने) दान के लिए (कृतः) प्रेरित हो। (ओजिष्ठः) अत्यधिक ओजस्वी (सः) वह (बले) बलप्राप्ति के निमित्त (हितः) हमारा हितकारी हो। (सः) वह (द्युम्नी) तेजस्वी, (श्लोकी) यशस्वी और (सोम्यः) शान्तिसम्पादक हो ॥२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर से प्रार्थना करके, जीवात्मा को उत्साहित करके और राजा को उद्बोधन देकर हम प्राप्त दानवाले, बली, तेजस्वी, यशस्वी तथा शान्तिमान् होवें ॥२॥

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    पदार्थ

    (सः-इन्द्रः) वह ऐश्वर्यवान् परमात्मा, अतः (दामनेकृतः) कर्मफल प्रदान करने में समर्थ (सः-ओजिष्ठः) वह अत्यन्त बलवान् अतः (बले हितः) सृष्टि के रचन, धारणरूप बलकार्य करने के निमित्त योग्य (सः-द्युम्नी श्लोकी सोम्यः) वह यशस्वी प्रशंसनीय उपासनारस प्राप्त करने योग्य॥२॥

    विशेष

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    विषय

    द्युम्नी, श्लोकी, सोम्य

    पदार्थ

    गत मन्त्र में (‘तमिन्द्रं वाजयामसि') = 'हम आत्मा के ही बल को बढ़ाते हैं' ऐसा कहा था । आत्मिक-बल को बढ़ानेवाला यह व्यक्ति १. (इन्द्रः) = परमैश्वर्यवाला होता हुआ (सः) = वह (दामने) = देने में (कृतः) = संलग्न होता है, अर्थात् दान में लगा रहता है । २. (ओजिष्ठ:) = विषयों में न फँसने के कारण अत्यन्त ओजस्वी (सः) = यह (बले) = बल-सम्पन्न होने पर (हितः) = सबका हित करनेवाला होता है । यह बल का प्रयोग औरों की हानि के लिए न करके सबके लाभ के लिए ही करता है । ३. (द्युम्नी) = यह ज्योतिवाला होता है [Splendour], शक्तिशाली होता है [Energy ], उत्तम धनवाला बनता है [Wealth], प्रभु की प्रेरणा को सुनता है [Inspiration], और त्याग की वृत्तिवाला होता है [Sacrifice], ४. (श्लोकी) = ज्ञान, धन और शक्ति के साथ यह प्रभु-स्तवन-[Hymn] वाला होता है, अतएव उत्तम यश [fame] को प्राप्त करता है और इस सबके साथ (सः) = वह ५. (सोम्य) = सौम्यविनीत व शान्त-स्वभाववाला होता है ।

    भावार्थ

    हम धन का दान करें, बल का लोकहित में प्रयोग करें । ज्योति व यश को प्राप्त करें । सौम्य बनें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र परमेश्वर (दामने) समस्त सुख देने में (कृतः) समर्थ, (ओजिष्ठः) सबसे अधिक बलशाली होने के कारण (सः) वह (बलं) बल योग्य, संसार के उत्पत्ति स्थिति प्रलय आदि विशाल कार्य में (हितः) लगा हुआ है। वही (द्युम्नी) यशस्वी, (श्लोकी) वेदमय स्तुतियों से युक्त और (सोम्यः) उत्तम गुणों से सम्पन्न है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ प्रतर्दनो दैवोदामिः। २-४ असितः काश्यपो देवलो वा। ५, ११ उचथ्यः। ६, ७ ममहीयुः। ८, १५ निध्रुविः कश्यपः। ९ वसिष्ठः। १० सुकक्षः। १२ कविंः। १३ देवातिथिः काण्वः। १४ भर्गः प्रागाथः। १६ अम्बरीषः। ऋजिश्वा च। १७ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः। १८ उशनाः काव्यः। १९ नृमेधः। २० जेता माधुच्छन्दसः॥ देवता—१-८, ११, १२, १५-१७ पवमानः सोमः। ९, १८ अग्निः। १०, १३, १४, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—२-११, १५, १८ गायत्री। त्रिष्टुप्। १२ जगती। १३ बृहती। १४, १५, १८ प्रागाथं। १६, २० अनुष्टुप् १७ द्विपदा विराट्। १९ उष्णिक्॥ स्वरः—२-११, १५, १८ षड्जः। १ धैवतः। १२ निषादः। १३, १४ मध्यमः। १६,२० गान्धारः। १७ पञ्चमः। १९ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मजीवात्मनृपतिविषय उच्यते।

    पदार्थः

    (सः इन्द्रः) असौ परमेश्वरो जीवात्मा नृपतिर्वा (दामने) दानाय। [ददातेः ‘सर्वधातुभ्यो मनिन् उ० ४।१४६’ इत्यनेन मनिन्।] (कृतः) प्रेरितो भवतु। (ओजिष्ठः) ओजस्वितमः (सः) असौ, (बले) बले प्राप्तव्ये (हितः) अस्माकं हितकरो भवतु। (सः) असौ (द्युम्नी) तेजस्वी, (श्लोकी२) यशस्वी, (सोम्यः) शान्तिसम्पादकश्च अस्ति भवतु वा। [सोमाय शान्त्यै साधुः सोम्यः] ॥२॥

    भावार्थः

    परमेश्वरं प्रार्थयित्वा, जीवात्मानमुत्साह्य, राजानं चोद्बोध्य वयं लब्धदाना बलिनस्तेजस्विनो यशस्विनः शान्तियुक्ताश्च भवेम ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।९३।८, अथ० २०।४७।२, १३७।१३। सर्वत्र ‘बले’ इत्यत्र ‘मदे॑’ इति पाठः ॥ २. श्लोकी श्लोकः स्तुतिः तद्वान्—इति सा०। श्लोकैर्मन्त्रैर्योऽतिशयो गीयते स श्लोकी—इति वि०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    That intellect is competent to subdue all sets of crookedness, is mightiest, is attached to acts of enterprise, is the enjoyer of supreme bliss, is glorious and praiseworthy.

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    Meaning

    Indra, mind and intelligence, was created for enlightenment and for giving enlightenment. Most lustrous and powerful, it is engaged in the creation of joy and strength. It is rich in the wealth of knowledge, praise-worthy, and cool, gentle and at peace in the state of enlightenment. (Rg. 8-93-8)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (स इन्द्रः) તે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા, તેથી (दामनेकृतः) કર્મફળ પ્રદાન કરવામાં સમર્થ, (सः ओजिष्ठः) તે અત્યંત બળવાન તેથી (बले हितः) સૃષ્ટિની રચના, ધારણરૂપ બળકાર્ય કરવા માટે યોગ્ય, (सः द्युम्नी श्लोकी सोम्यः) તે યશસ્વી પ્રશંસનીય ઉપાસનારસ પ્રાપ્ત કરવા યોગ્ય છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराची प्रार्थना करून, जीवात्म्याला उत्साहित करावे व राजाला उद्बोधन करून आम्ही दानयुक्त बलवान, तेजस्वी, यशस्वी व शक्तिमान व्हावे ॥२॥

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