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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1282
    ऋषिः - प्रियमेध आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    11

    ए꣣ष꣢ दे꣣वः꣡ शु꣢भाय꣣ते꣢ऽधि꣣ यो꣢ना꣣व꣡म꣢र्त्यः । वृ꣣त्रहा꣡ दे꣢व꣣वी꣡त꣢मः ॥१२८२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः꣢ । दे꣣वः꣢ । शु꣣भायते । अ꣡धि꣢꣯ । यो꣡नौ꣢꣯ । अ꣡म꣢꣯र्त्यः । अ । म꣣र्त्यः । वृत्रहा꣢ । वृ꣣त्र । हा꣢ । दे꣣ववी꣡त꣢मः । दे꣣व । वी꣡त꣢꣯मः ॥१२८२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष देवः शुभायतेऽधि योनावमर्त्यः । वृत्रहा देववीतमः ॥१२८२॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । देवः । शुभायते । अधि । योनौ । अमर्त्यः । अ । मर्त्यः । वृत्रहा । वृत्र । हा । देववीतमः । देव । वीतमः ॥१२८२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1282
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में जीवात्मा द्वारा परमात्मा की प्राप्ति का विषय कहा गया है।

    पदार्थ

    (अमर्त्यः) अमरणशील, (वृत्रहा) विघ्नों का विनाशक, (देववीतमः) दिव्यगुणों को अत्यधिक प्राप्त करनेवाला (एष देवः) यह स्तोता जीव (योनौ अधि) परमात्मारूप घर में (शुभायते) शोभित होता है ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे गृहस्वामी की घर से शोभा होती है, वैसे ही जीवात्मा की परमात्मा को प्राप्त करने से शोभा होती है ॥३॥

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    पदार्थ

    (एषः) यह (वृत्रहा) पापनाशक२ (देववीतमः) मुमुक्षुजनों का अत्यन्त कमनीय३ (अमर्त्यः) अमर (देवः) द्योतमान सोम परमात्मा (योनौ-अधि शुम्भते) हृदयस्थान में प्रकाशित होता है—चमकता है४॥३॥

    विशेष

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    विषय

    शोभा पाना

    पदार्थ

    उल्लिखित मन्त्र की भावना के अनुसार (एषः) = यह प्रियमेध १. (देवः) = निर्माणात्मक कार्यों में लगे रहने से देव बनकर (शुभायते) = शोभा को प्राप्त करता है । २. (अधियोनौ) = यह उस ब्रह्माण्ड के मूलाधार ब्रह्म में निवास करता है, सदा प्रभु-चरणों में उपस्थित रहता है, प्रभु से दूर नहीं होता - खाते-पीते सदा उसी का स्मरण करता है ३. परिणामतः (अमर्त्यः) = यह विषयों के पीछे मरनेवाला नहीं होता। इसकी विषयों के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाती है । ४. यह (वृत्रहा) = ज्ञान की आवरणभूत इन वासनाओं को नष्ट करनेवाला होता है और ५. (देववीतम:) = अधिक-से-अधिक दिव्य गुणों को प्राप्त [वी] करनेवाला होता है ।

    भावार्थ

    हम सदा प्रभु में निवास करें, अपने जीवन को शुभ बनाएँ।
     

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (एषः देवः) वही प्रकाशमान देव (अमर्त्यः) अमरणधर्मा, अविनाशी, (वृत्रहा) सत्र आवरणकारी अन्धकारों का नाशक, (देववीतमः) सब दिव्य पदार्थों को अपने भीतर रख लेने में सबसे अधिक सामर्थ्यवान्, सब में व्यापक, सबका प्रकाशक (योनौ अधि) मूलकारण रूप प्रकृति (शुभाते) भासमान हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ जीवात्मनः परमात्मप्राप्तिविषयमाह।

    पदार्थः

    (अमर्त्यः) अमरणशीलः, (वृत्रहा) विघ्नहन्ता, (देववीतमः) अतिशयेन दिव्यगुणानां प्रापकः (एष देवः) अयं स्तोता जीवः (योनौ अधि) परमात्मरूपे गृहे (शुभायते) शोभते ॥३॥

    भावार्थः

    यथा गृही गृहेण शोभते तथा जीवात्मा परमात्मानं प्राप्य शोभते ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।२८।३।

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    This Glorious, Immortal God, is the Dispeller of all the coverings of ignorance, and the Absorber of all divine objects. He shines in Matter in its primordial state.

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    Meaning

    This self-refulgent, immortal divine presence, highest lover of noble and generous souls, pervades and shines all over in the universe through its mode of Prakrti, dispelling darkness and eliminating evil. (Rg. 9-28-3)

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    Translation

    This God Who is Immortal, the Slayer of all obstacles and sins, desired most by the enlightened truthful wise men, shines in beauty in the Matter (which is the material cause of the universe) and in His Special dwelling place i.e. heart.

    Comments

    (देववीतमः) - देवैः - सत्यनिष्ठैर्विद्वद्भिरत्यधिकं काम्यमानः वी - गति व्याप्ति कान्त्यसनखादनेषु अत्र कान्त्यर्थग्रहणम् कान्तिः ... कामना (योनौ) - जगदुपादानकारणभूतायां प्रकृतौ तथा हृदये “ममयोनिर्महद्ब्रह्म, तस्मिन् गर्भ दधाम्यहम् ।” इति गीतावचनमत्र स्मर्तव्यम् (१४ । २) योनिरितिगृहनाम (निघ० ३। ४) “ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुनतिष्ठति” इति गीतायाम् १८ । ६१ ।

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    Translation

    This divine immortal ambrosia is brilliant in its own place, is the destroyer of evils and is the most devoted to divine functional organs.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः)(वृत्रहा) પાપનાશક (देववीतमः) મુમુક્ષુજનોના અત્યંત ઇચ્છનીય (अमर्त्यः) અમર (देवः) પ્રકાશમાન સોમ પરમાત્મા (योनौ अधि शुम्भते) હૃદય સ્થાનમાં પ્રકાશિત થાય છે.-ચમકે છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी गृहस्वामीची घरामुळे शोभा वाढते, तसेच परमात्म्याला प्राप्त करण्यामुळे जीवात्म्याची शोभा वाढते ॥३॥

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