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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1287
    ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    11

    ए꣣ष꣡ इन्द्रा꣢꣯य वा꣣य꣡वे꣢ स्व꣣र्जि꣡त्परि꣢꣯ षिच्यते । प꣣वि꣡त्रे꣢ दक्ष꣣सा꣡ध꣢नः ॥१२८७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣡षः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । वा꣣य꣡वे꣢ । स्व꣣र्जि꣢त् । स्वः꣣ । जि꣢त् । प꣡रि꣢꣯ । सि꣣च्यते । पवि꣡त्रे꣢ । द꣣क्षसा꣡ध꣢नः । द꣣क्ष । सा꣡ध꣢꣯नः ॥१२८७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष इन्द्राय वायवे स्वर्जित्परि षिच्यते । पवित्रे दक्षसाधनः ॥१२८७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । इन्द्राय । वायवे । स्वर्जित् । स्वः । जित् । परि । सिच्यते । पवित्रे । दक्षसाधनः । दक्ष । साधनः ॥१२८७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1287
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे पुनः वही विषय है।

    पदार्थ

    (स्वर्जित्) परमानन्द का विजेता, (दक्षसाधनः) बलदायक (एषः) यह सोम परमेश्वर (इन्द्राय) मन के हितार्थ और (वायवे) प्राण के हितार्थ (पवित्रे) पवित्र अन्तरात्मा में (परि षिच्यते) चारों ओर से सींचा जा रहा है ॥२॥

    भावार्थ

    उपासक के अन्तरात्मा में परमात्मा के प्रकट हो जाने पर मन, बुद्धि, प्राण आदि सभी बलवान् हो जाते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (एषः-स्वर्जित्-दक्षसाधनः) यह मोक्षादि पर अधिकार रखने वाला आत्मबलसाधक (वायवे-इन्द्राय) आयु वाले१२ उपासक आत्मा के लिये (पवित्रे परिषिच्यते) पवित्र हृदय में परिपूर्णरूप से प्राप्त होता है॥२॥

    विशेष

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    विषय

    शक्ति का संचार

    पदार्थ

    १. (एषः) = यह नृमेध (पवित्रे) = उस पवित्र प्रभु में निवास करता हुआ (दक्षसाधनः) = उन्नति व बल का सिद्ध करनेवाला होता है । २. यह (स्वर्जित्) = स्वर्गलोक का विजय करता है, अर्थात् अपने जीवन को वास्तव में आनन्दमय बनाता है । ३. यह नृमेध (इन्द्राय) = इन्द्रत्व के लिए - परमैश्वर्य के लिए अथवा शत्रुओं के विदारण के लिए और (वायवे) = गतिशीलता के लिए (परिषिच्यते) = परिसिक्त होता है। इसके अन्दर शत्रुओं के विदारण का सामर्थ्य उत्पन्न हो जाता है और इसका जीवन बड़ा क्रियाशील–स्फूर्तिमय हो जाता है [दक्षः = बलम् – नि० २.९ ]।

    भावार्थ

    प्रभु में निवास करते हुए हम उन्नति व शक्ति को सिद्ध करें। 

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (एषः) यह सोम, सब का प्रेरक (दक्षसाधनः) समस्त बलों का साधक, उत्पादक, (स्वर्जित्) समस्त उत्तम लोक और आनन्द, मोक्षसुखों का विजय करने हारा, (वायवे) प्राणस्वरूप (इन्द्राय) आत्मा के लिये (पवित्र) पवित्र हृदयदेश में (परि-सिच्यते) सब प्रकार से ध्यानवृत्तियों द्वारा प्रवाहित, आप्लावित अर्थात् मनन किया जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः स एव विषय उच्यते।

    पदार्थः

    (स्वर्जित्) परमानन्दस्य जेता, (दक्षसाधनः) बलकारी (एषः) अयं सोमः परमेश्वरः (इन्द्राय) मनसो हिताय (वायवे) प्राणस्य हिताय च (पवित्रे) पवित्रे अन्तरात्मनि (परि षिच्यते) परिक्षार्यते ॥२॥

    भावार्थः

    उपासकस्यान्तरात्मनि परमात्मन्याविर्भूते सति मनोबुद्धिप्राणादीनि सर्वाण्यपि बलवन्ति जायन्ते ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This God, the Giver of strength, the Lord of the joys of salvation, for the subtle soul, is contemplated in the heart.

    Translator Comment

    $ Yoni योनि means the world, the cause and birth place of the animate and inanimate creation.

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    Meaning

    This all potent and versatile divine spirit of universal joy manifests in the pure consciousness of the karma-yogi and wins the light of heaven for the vibrant meditative soul. (Rg. 9-27-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः स्वर्जित् दक्षसाधनः) એ મોક્ષ આદિ પર અધિકાર રાખનાર આત્મ-બળસાધક (वायवे इन्द्राय)  આયુવાળા ઉપાસક આત્માને માટે (पवित्रे परिषिच्यते) પવિત્ર હૃદયમાં પરિપૂર્ણરૂપથી પ્રાપ્ત થાય છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उपासकाच्या अन्तरात्म्यात परमात्मा प्रकट झाल्यावर मन, बुद्धी, प्राण इत्यादी सर्व बलवान होतात. ॥२॥

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