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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1369
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
7
इ꣡न्द्र꣢स्ते सोम सु꣣त꣡स्य꣢ पेया꣣त्क्र꣢त्वे꣣ द꣡क्षा꣢य꣣ वि꣡श्वे꣢ च दे꣣वाः꣢ ॥१३६९॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रः꣢꣯ । ते꣣ । सोम । सुत꣡स्य꣢ । पे꣣यात् । क्र꣡त्वे꣢꣯ । द꣡क्षा꣢꣯य । वि꣡श्वे꣢꣯ । च꣣ । देवाः꣢ ॥१३६९॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्ते सोम सुतस्य पेयात्क्रत्वे दक्षाय विश्वे च देवाः ॥१३६९॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रः । ते । सोम । सुतस्य । पेयात् । क्रत्वे । दक्षाय । विश्वे । च । देवाः ॥१३६९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1369
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आगे फिर उसी विषय में कहा गया है।
पदार्थ
हे (सोम) ब्रह्मानन्द रस ! (सुतस्य) परमात्मा के पास से प्रवाहित हुए (ते) तुझे (क्रत्वे) कर्म करने के लिए और (बलाय) बल की प्राप्ति के लिए (इन्द्रः) जीवात्मा (पेयात्) पान करे, (विश्वे च देवाः) और अन्य सब प्रकाशक मन, बुद्धि, ज्ञानेन्द्रियाँ आदि भी पान करें ॥३॥
भावार्थ
ब्रह्मानन्द-रस के पान से मनुष्य आत्मबली और कर्मयोगी होता है ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा और ब्रह्मानन्द का विषय वर्णित होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ ग्यारहवें अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥
पदार्थ
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! (ते सुतस्य) तुझ साक्षात् हुये आनन्दरस स्वरूप को (इन्द्रः पेयात्) उपासक आत्मा पान करे (क्रत्वे दक्षाय) प्रज्ञान और कर्मबल प्राप्त करने के लिये (विश्वे देवाः-च) प्राण, मन इन्द्रियाँ भी पान करें—बाह्य वस्तु में तेरा मनन, श्रवण, दर्शन आदि करें॥३॥
विशेष
<br>
विषय
ज्ञान तथा बल
पदार्थ
यहाँ‘सोम’ का पुरुष-विधत्व [personification] करके प्रभु कहते हैं । हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (सुतस्य ते) = शरीर में उत्पन्न हुए हुए तेरा (इन्द्रः) = जीवात्मा (पेयात्) = पान करे । यह सोम मुख्यरूप से शरीर के स्वास्थ्य, मानस पवित्रता तथा बुद्धि की तीव्रता के लिए दिया जाता है। इसका विलास में तो अपव्यय ही होता है। इसका नाश न होने देकर इसे शरीर में खपाना ही उचित है । वस्तुत: इसके पान से ही इन्द्र ‘इन्द्र' बनता है, अन्यथा वह इन्द्रियों का दास बन जाता है ।
इस सोम को (विश्वे च देवा:) = सब देव–‘इन्द्रियाँ', मन व बुद्धि भी पीएँ, अपने अन्दर धारण करें, जिससे (क़त्वे) = क्रतवे = ज्ञान के लिए, अर्थात् ज्ञानेन्द्रियाँ अक्षीणशक्ति रहकर ज्ञान को दिन दूना रात चौगुणा बढ़ानेवाली हों तथा (दक्षाय) = सामर्थ्य के लिए, अर्थात् कर्मेन्द्रियाँ कर्मों में लगी रहकर अङ्गों की शक्ति को बढ़ानेवाली हों । एवं, सोम ज्ञान व शक्ति को बढ़ानेवाला हो ।
भावार्थ
सोमरक्षा से हम 'ज्ञान व बल' की वृद्धि करनेवाले हों ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (सोम) सबके उत्पादक परमात्मन् (सुतस्य) हृदय में प्रकट हुए (ते) आनन्दस्वरूप आपके रस का (इन्द्रः) यह आत्मा (च) और (विश्वे देवाः) समस्त दिव्यगुणवान् यह इन्द्रियगण, अथवा विद्वान् गण भी (ऋत्वे) ज्ञानप्राप्ति और (दक्षाय) बल प्राप्ति के लिये (पेयात्) पान करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१, ६ मेधातिथिः काण्वः। १० वसिष्ठः। ३ प्रगाथः काण्वः। ४ पराशरः। ५ प्रगाथो घौरः काण्वो वा। ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ८ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा। ९ हिरण्यस्तूपः। ११ सार्पराज्ञी। देवता—१ इध्मः समिद्धो वाग्निः तनूनपात् नराशंसः इन्द्रश्चः क्रमेण। २ आदित्याः। ३, ५, ६ इन्द्रः। ४,७-९ पवमानः सोमः। १० अग्निः। ११ सार्पराज्ञी ॥ छन्दः-३-४, ११ गायत्री। ४ त्रिष्टुप। ५ बृहती। ६ प्रागाथं। ७ अनुष्टुप्। ४ द्विपदा पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ स्वरः—१,३, ११ षड्जः। ४ धैवतः। ५, ९ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८ पञ्चमः। ९, १० निषादः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरपि स एव विषय उच्यते।
पदार्थः
हे (सोम) ब्रह्मानन्दरस ! (सुतस्य) परमात्मनः सकाशात् प्रस्रुतस्य (ते) त्वाम् (क्रत्वे) कर्मणे (दक्षाय) बलाय च (इन्द्रः) जीवात्मा (पेयात्) आस्वादयेत्, (विश्वे च देवाः) अन्ये च प्रकाशकाः मनोबुद्धिज्ञानेन्द्रियादयः पेयासुः आस्वादयेयुः ॥३॥
भावार्थः
ब्रह्मानन्दरसपानेन मनुष्य आत्मबली कर्मयोगी च जायते ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मनो ब्रह्मानन्दस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेद्या ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, let soul and all learned persons drink Thy juice of happiness for wisdom and strength !
Meaning
Soma, spirit of glory and grandeur, loved, realised and reverenced, let Indra, the ruling soul, experience the ecstasy for noble action and efficiency. Let all divinities of the world enjoy the divine presence. (Rg. 9-109-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (ते सुतस्य) તને સાક્ષાત્ કરીને આનંદરસ સ્વરૂપને (इन्द्रः पेयात्) ઉપાસક આત્મા પાન કરે. (क्रत्वे दक्षाय) પ્રજ્ઞાન અને કર્મબળ પ્રાપ્ત કરવા માટે (विश्वे देवाः च) પ્રાણ, મન, ઇન્દ્રિયો પણ પાન કરે-બાહ્ય વસ્તુઓમાં તારું મનન, શ્રવણ, દર્શન આદિ કરે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
ब्रह्मानंद-रसाचे पान करून मनुष्य आत्मबली व कर्मयोगी होतो. ॥३॥ या खंडात परमात्मा व ब्रह्मानंदाचा विषय वर्णित असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती जाणावी
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