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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1528
ऋषिः - केतुराग्नेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
9
य꣢या꣣ गा꣢ आ꣣क꣡रा꣢महै꣣ से꣡न꣢याग्ने꣣ त꣢वो꣣त्या꣢ । तां꣡ नो꣢ हिन्व म꣣घ꣡त्त꣢ये ॥१५२८॥
स्वर सहित पद पाठय꣡या꣢꣯ । गाः । आ꣣क꣡रा꣢महै । आ꣣ । क꣡रा꣢꣯महै । से꣡न꣢꣯या । अ꣣ग्ने । त꣡व꣢꣯ । ऊ꣣त्या꣢ । ताम् । नः꣣ । हिन्व । मघ꣡त्त꣢ये ॥१५२८॥
स्वर रहित मन्त्र
यया गा आकरामहै सेनयाग्ने तवोत्या । तां नो हिन्व मघत्तये ॥१५२८॥
स्वर रहित पद पाठ
यया । गाः । आकरामहै । आ । करामहै । सेनया । अग्ने । तव । ऊत्या । ताम् । नः । हिन्व । मघत्तये ॥१५२८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1528
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में फिर परमात्मा और राजा का विषय है।
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्रनायक परमात्मन् वा राजन् ! (तव यया ऊत्या सेनया) आपकी जिस रक्षक सेना के द्वारा, हम (गाः) अन्तःप्रकाश की किरणों को अथवा गाय आदि सम्पत्तियों को (आकरामहै) प्राप्त करते हैं, (ताम्) उस रक्षा को वा सेना को (मघत्तये) ऐश्वर्य के प्रदानार्थ (नः) हमारे लिए (हिन्व) प्रेरित करो ॥२॥
भावार्थ
राजा की सेना से रक्षित प्रजाएँ जैसे भौतिक सम्पत्तियाँ प्राप्त करने में समर्थ होती हैं, वैसे ही परमात्मा के रक्षण-सामर्थ्य से रक्षित जन अध्यात्म- सम्पत्तियाँ प्राप्त कर लेते हैं ॥२॥
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! (तव यथा-ऊत्या सेनया) तेरी जिस रक्षारूप बन्धनी५—रक्षाबन्धनी के द्वारा (गाः-आकरामहे) ज्ञानवाणियों—उपदेश उक्तियों को हम अङ्गीकार करते हैं—अपनाते हैं—जीवन में ढालते हैं (तां नः-मधत्तये हिन्व) उसे हमें ऐश्वर्य देने के लिये प्रेरित कर॥२॥
विशेष
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विषय
सुपथ से अर्जन, सुपात्र में व्यय
पदार्थ
जब मनुष्य संसार में प्रकृति को अपना आराध्य देवता न बनाकर प्रभु को अपना आराध्य बनाता है तब वह प्रभु के द्वारा ‘सेन' [स+इन] सेश्वर स्वामीवाला होता है। इसे प्रभु का संरक्षण प्राप्त होता है [ऊति] । इस संरक्षण को प्राप्त करके यह ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान की किरणों को प्राप्त करनेवाला यह 'केतु' कहलाता है। [केतु=A ray of light]। इस ज्ञान को प्राप्त करके यह कभी कुपथ से धन नहीं कमाता । सदा सुपथ से धनार्जन करता हुआ उस धन का दान करता है। इसके जीवन का सूत्र 'दानपूर्वक उपभोग' होता है ।
मन्त्र के शब्दों में ‘केतु' प्रभु से प्रार्थना करता है – हे (अग्ने) = मेरे पथ-प्रदर्शक प्रभो ! (यया) = जिस (तव सेनया) = आपके सेश्वरत्व के द्वारा, अर्थात् आपको अपना स्वामी बनाकर आपको ही अपना आराध्यदेव समझते हुए हम (ऊत्या) = आपके संरक्षण से (गाः) = वेदवाणियों का (आकरामहै) = सर्वथा वरण करते हैं, अर्थात् उन्हें पढ़ते हैं, समझते हैं और क्रियान्वित करते हैं (ताम्) = उस सेना–सेश्वरत्व तथा (ऊति) = रक्षा को (नः) = हमें (हिन्व) = सदा प्राप्त कराइए, जिससे (मघत्तये) = हम पूजित धन को प्राप्त करनेवाले हों [ऋ० ४.३६.८ द०] तथा उस धन का सदा दान करनेवाले हों [ऋ० ५.७९.५ द०]। हम धन को सदा सुमार्ग से कमाएँ और सदा उसका दान करनेवाले हों।
भावार्थ
प्रभु ही हमारे आराध्य हों— उनकी संरक्षा से हम वेदवाणियों को अपनानेवाले हों, सुपथ से धनार्जन करें और सुपात्र में उनका व्यय करें ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (अग्ने) प्रभो ! (यया) जिस (तव) तेरी (ऊत्था) रक्षा ज्ञान और (सेवया) सेवा से (गाः) वाणियों, रश्मियों और गौओं को (आकरामहै) साक्षात् प्राप्त करें (तां) उस अपनी शक्ति को (नः) हमें (मधत्तये) धन ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये (हिन्व) प्रेरित कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१,९ प्रियमेधः। २ नृमेधपुरुमेधौ। ३, ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ४ शुनःशेप आजीगर्तिः। ५ वत्सः काण्वः। ६ अग्निस्तापसः। ८ विश्वमना वैयश्वः। १० वसिष्ठः। सोभरिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ वसूयव आत्रेयाः। १४ गोतमो राहूगणः। १५ केतुराग्नेयः। १६ विरूप आंगिरसः॥ देवता—१, २, ५, ८ इन्द्रः। ३, ७ पवमानः सोमः। ४, १०—१६ अग्निः। ६ विश्वेदेवाः। ९ समेति॥ छन्दः—१, ४, ५, १२—१६ गायत्री। २, १० प्रागाथं। ३, ७, ११ बृहती। ६ अनुष्टुप् ८ उष्णिक् ९ निचिदुष्णिक्॥ स्वरः—१, ४, ५, १२—१६ षड्जः। २, ३, ७, १०, ११ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८, ९ ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनः परमात्मनृपतिविषयमाह।
पदार्थः
हे (अग्ने) अग्रणीः परमात्मन् नृपते वा ! (तव यया ऊत्या सेनया) तव यया रक्षारूपया सेनया रक्षिकया सेनया वा, वयम् (गाः) अन्तःप्रकाशरश्मीन् धेन्वादिसम्पत्तीर्वा (आ करामहै) प्राप्नुमः (ताम्) रक्षां सेनां वा (मघत्तये) मघदत्तये, ऐश्वर्यप्रदानाय (नः) अस्मभ्यम् (हिन्व) प्रेरय ॥२॥
भावार्थः
नृपतेः सेनया रक्षिताः प्रजा यथा भौतिकीः सम्पदाः प्राप्तुं शक्ता जायन्ते तथैव परमात्मनो रक्षणसामर्थ्येन रक्षिता जना अध्यात्मसम्पत्तीः प्राप्नुवन्ति ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, send us for the gain of wealth! Thy vast protection and knowledge whereby we gain control over our organs of senses.
Meaning
O leading light of life, energy of fire, with your powers and means of protection by which we acquire our lands and develop our fields and cattle wealth, pray enhance and accelerate that same power for us for acquisition of wealth, power and honour. (Rg. 10-156-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने) હે અગ્રણી પરમાત્મન્ ! (तव यथा ऊत्या सेनया) તારી જે રક્ષારૂપી બંધની-રક્ષાબંધનીના દ્વારા (गाः आकरामहे) જ્ઞાનવાણીઓ-ઉપદેશ ઉક્તિઓને અમે અંગીકાર કરીએ છીએ-અપનાવીએ છીએજીવનમાં ઢાળીએ છીએ (तां नः मधत्तये हिन्व) તેને અમારા માટે ઐશ્વર્ય પ્રદાન કરવા પ્રેરિત કર. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
राजाच्या सेनेने रक्षित प्रजा जसे भौतिक संपत्ती प्राप्त करण्यात समर्थ असते, तसेच परमात्म्याच्या रक्षणसामर्थ्याने रक्षित लोक अध्यात्म-संपत्ती प्राप्त करतात. ॥२॥
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