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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1543
ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
16
म꣣न्द्र꣡ꣳ होता꣢꣯रमृ꣣त्वि꣡जं꣢ चि꣣त्र꣡भा꣢नुं वि꣣भा꣡व꣢सुम् । अ꣣ग्नि꣡मी꣢डे꣣ स꣡ उ꣢ श्रवत् ॥१५४३॥
स्वर सहित पद पाठमन्द्र꣢म् । हो꣡ता꣢꣯रम् । ऋ꣣त्वि꣡ज꣢म् । चि꣣त्र꣡भा꣢नुम् । चि꣣त्र꣢ । भा꣣नुम् । विभा꣡व꣢सुम् । वि꣣भा꣢ । व꣣सुम् । अग्नि꣢म् । ई꣣डे । सः꣢ । उ꣣ । श्रवत् ॥१५४३॥
स्वर रहित मन्त्र
मन्द्रꣳ होतारमृत्विजं चित्रभानुं विभावसुम् । अग्निमीडे स उ श्रवत् ॥१५४३॥
स्वर रहित पद पाठ
मन्द्रम् । होतारम् । ऋत्विजम् । चित्रभानुम् । चित्र । भानुम् । विभावसुम् । विभा । वसुम् । अग्निम् । ईडे । सः । उ । श्रवत् ॥१५४३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1543
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
अब परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(मन्द्रम्) आनन्दमय, (होतारम्) सब पदार्थों के दाता, (ऋत्विजम्) ऋतुओं में सामञ्जस्य स्थापित करनेवाले अथवा प्रत्येक ऋतु में पूजनीय, (चित्रभानुम्) बहुरंगे सूर्य के रचयिता, (विभावसुम्) तेज रूप धन के धनी (अग्निम्) अग्रनेता जगदीश्वर की (ईडे) मैं स्तुति करता हूँ, वा उससे प्रार्थना करता हूँ। (सः उ) वह मेरी स्तुति वा प्रार्थना को (श्रवत्) सुने ॥३॥
भावार्थ
जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सकलसृष्टि का रचयिता, सारे ऋतुचक्र को चलानेवाला, तेजस्वी परमेश्वर है, उसकी सब मनुष्यों को प्रेम से वन्दना करनी चाहिए ॥३॥
पदार्थ
(मन्द्रम्) हर्षकर—(होतारम्) स्वीकार करने वाले (ऋत्विजम्) ऋतु समय पर वस्तु से यजनकर्ता—उत्पादक (चित्रभानुम्) अद्भुत प्रकाश वाले (विभावसुम्) विशेष दीप्तिवाले (अग्निम्) परमात्मा की (ईडे) स्तुति करता हूँ (सः-उ श्रवम्) वह ही हमारी प्रार्थना को सुनता है॥३॥
विशेष
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विषय
वह प्रभु अवश्य सुनता है
पदार्थ
मैं (अग्निम्) = मेरे जीवन के पथ-प्रदर्शक प्रभु की (ईडे) = स्तुति करता हूँ, (सः) = वह प्रभु (उ) = निश्चय से (श्रवत्) = सुनते हैं। प्रभु से की गयी प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती, वहाँ हमारी पुकार अरण्यरोदन नहीं होतीं। मैं उस प्रभु को पुकारता हूँ जो
१. (मन्द्रम्) = सदा आनन्दमय व आनन्दित करनेवाले हैं ।
२. (होतारम्) - जो संसार में जीव को उन्नति के सब साधन प्राप्त करानेवाले हैं।
३. (ऋत्विजम्) = जो प्रत्येक समय पर उपासना के योग्य हैं।
४. (चित्रभानुम्) = जो अद्भुत दीप्तिवाले हैं।
५. (विभावसुम्) = जो ज्ञानरूप धनवाले हैं। 'ऋत्विजम्' शब्द का अर्थ ऋतु - ऋतु के अनुसार हमारे साथ भिन्न-भिन्न वस्तुओं का मेल करानेवाला भी है। प्रभु प्रत्येक ऋतु के योग्य वस्तुओं को हमें प्राप्त करनेवाले हैं। ऋतु के अनुसार ही सब आहार-विहार करनेवाला व्यक्ति इस मन्त्र का ऋषि विरूप-विशिष्टरूपवाला आङ्गिरस= शक्तिशाली बनता है ।
भावार्थ
हम प्रभु के स्तोता बनकर सदा प्रसन्नचित्त रहने का प्रयत्न करें ।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( मन्द्रम् ) = हर्षदायक ( होतारम् ) = कर्मफलप्रदाता ( ऋत्विजम् ) = सब ऋतुओं में यजनीय पूजनीय ( चित्रभानुम् ) = विचित्र प्रकाशोंवाले ( विभावसुम् ) = अनेक प्रकार के प्रकाश के धनी ऐसे ( अग्निम् ) = ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर की ( ईडे ) = मैं स्तुति करता हूँ ( सः ) = वह प्रभु ( उ ) = अवश्य ( श्रवत् ) = मेरी की हुई स्तुति को सुने ।
भावार्थ
भावार्थ = मनुष्यमात्र को परमात्मा का यह उपदेश है कि तुम लोग मेरी स्तुति, प्रार्थना, उपासना किया करो। जैसे पिता वा गुरु अपने पुत्र वा शिष्य को उपदेश करते हैं कि तुम पिता वा गुरु के विषय में इस प्रकार से स्तुति आदि किया करो, वैसे सबके पिता और परम गुरु ईश्वर ने भी, हमको अपनी अपार कृपा और प्यार से सब व्यवहार और परमार्थ का वेद द्वारा उपदेश किया है, जिससे हम सदा सुखी होवें । इसलिए हम, उस आनन्ददायक और कर्मफलप्रदाता सदा पूजनीय स्वप्रकाश परमात्मा की स्तुति करते हैं ।
विषय
missing
भावार्थ
मैं (मन्द्रं) आनन्दस्वरूप (होतारं) समस्त ब्रह्माण्ड यज्ञ के होता सम्पादक (ऋत्विजम्) ऋतुओं, प्राणों तथा सत्य ज्ञानियों द्वारा उपासना करने योग्य (चित्रभानुम्) नाना प्रकार के चित्र विचित्र कान्तिमान् से अलंकृत, (विभावसुम्) कान्तिरूप धन से सम्पन्न, विशेष दीप्ति से समस्त जीवों और लोकों का वास देने हारे उस परमेश्वर रूप (अग्निम्) ज्ञान प्रकाशक की (ईडे) स्तुति करता हूं। (स उ) वहीं सब स्तुतियों को (श्रवत्) श्रवण करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१, ११ गोतमो राहूगणः। २, ९ विश्वामित्रः। ३ विरूप आंगिरसः। ५, ६ भर्गः प्रागाथः। ५ त्रितः। ३ उशनाः काव्यः। ८ सुदीतिपुरुमीळ्हौ तयोर्वान्यतरः । १० सोभरिः काण्वः। १२ गोपवन आत्रेयः १३ भरद्वाजो बार्हस्पत्यो वीतहव्यो वा। १४ प्रयोगो भार्गव अग्निर्वा पावको बार्हस्पत्यः, अथर्वाग्नी गृहपति यविष्ठौ ससुत्तौ तयोर्वान्यतरः॥ अग्निर्देवता। छन्दः-१-काकुभम्। ११ उष्णिक्। १२ अनुष्टुप् प्रथमस्य गायत्री चरमयोः। १३ जगती॥ स्वरः—१-३, ६, ९, १५ षड्जः। ४, ७, ८, १० मध्यमः। ५ धैवतः ११ ऋषभः। १२ गान्धरः प्रथमस्य, षडजश्चरमयोः। १३ निषादः श्च॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो गुणान् वर्णयति।
पदार्थः
(मन्द्रम्) आनन्दमयम्, (होतारम्) सकलपदार्थप्रदातारम्, (ऋत्विजम्) ऋतूनां प्रदातारम्, ऋतौ ऋतौ यजनीयं वा। [ऋतून् यजति संगमयति यः सः, यद्वा ऋतौ ऋतौ इज्यते पूज्यते यः सः।] (चित्रभानुम्) पृश्निवर्णस्य सूर्यस्य रचयितारम्। [चित्रः भानुः यस्मात् स चित्रभानुः तम्।] (विभावसुम्) दीप्तिधनम् (अग्निम्) अग्रनेतारं जगदीश्वरम्, अहम् (ईडे) स्तौमि प्रार्थये वा। [ईड स्तुतौ, अदादिः। ईडिरध्येषणाकर्मा पूजाकर्मा वा। निरु० ७।१५।] (सः उ) स खलु, मदीयां स्तुतिं प्रार्थनां च (श्रवत्) शृणुयात्। [श्रु धातोर्विध्यर्थे लेट्] ॥३॥
भावार्थः
य सच्चिदानन्दस्वरूपः सकलसृष्टिरचयिता सर्वर्तुचक्रप्रवर्तकः सूर्यचन्द्रतारादीनां प्रदीपकस्तेजोमयः परमेश्वरोऽस्ति स सर्वैर्जनैः प्रीत्या वन्दनीयः ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
I pray to God, the Embodiment of joy, the Administrator of the universe, Adorable by the sages, wondrously splendid, Rich in light, He listens to all prayers.
Meaning
I adore Agni, lord of light and fire, blissful, generous yajaka, high priest of regular seasonal yajna, wondrous illustrious, blazing brilliant lord of wealth and honour, and I pray may the lord listen and bless. (Rg. 8-44-6)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (मन्द्रम्) આનંદદાયક, (होतारम्) સ્વીકાર કરનાર, (ऋत्विजम्) ૠતુ સમય પર વસ્તુઓ દ્વારા યજન કર્તા-ઉત્પાદક, (चित्रभानुम्) અદ્ભુત પ્રકાશવાળા, (विभावसुम्) વિશેષ પ્રકાશવાળા (अग्निम्) પરમાત્માની (ईडे) સ્તુતિ કરું છું. (सः उ श्रवम्) તે જ અમારી પ્રાર્થનાને સાંભળે છે. (૩)
बंगाली (1)
পদার্থ
মন্দ্রং হোতারমৃত্বিজং চিত্রভানুং বিভাবসুম্ ।
অগ্নিমীডে স উ শ্রবৎ।।৬০।।
(সাম ১৫৪৩)
পদার্থঃ (মন্দ্রম্) হর্ষদায়ক, (হোতারম্) কর্মফল প্রদাতা, (ঋত্বিজম্) সকল ঋতুতে পূজনীয়, (চিত্রভানুম্) বিচিত্র প্রকাশকারী, (বিভাবসুম্) অনেক প্রকার প্রকাশ দ্বারা সমৃদ্ধ, এরূপ (অগ্নিম্) জ্ঞানস্বরূপ জগদীশ্বরের (ঈডে) আমি স্তুতি করছি। (সঃ) সেই পরমেশ্বর (উ) অবশ্যই (শ্রবৎ) আমার স্তুতি শ্রবণ করেন।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ মনুষ্যমাত্রকে পরমাত্মার এই উপদেশ দিয়েছেন যে, 'তোমরা আমার স্তুতি, প্রার্থনা, উপাসনা করো।' যেরূপ পিতা অথবা গুরু নিজের সন্তান বা শিষ্যকে উপদেশ করেন যে, "তুমি পিতা অথবা গুরুর বিষয়ে এই প্রকারে শ্রদ্ধা করো", তেমনি সকলের পিতা এবং পরম গুরু ঈশ্বরও আমাদের তাঁর নিজের অপার কৃপা এবং প্রেম দ্বারা সকল ব্যবহার এবং পরমার্থের উপদেশ, পবিত্র বেদ দ্বারা প্রদান করেছেন যাতে আমরা সর্বদা সুখী হতে পারি। এজন্য আমরা সেই আনন্দদায়ক এবং কর্মফলপ্রদাতা, সর্বদা পূজনীয়, স্বপ্রকাশ পরমাত্মার স্তুতি করি।।৬০।।
मराठी (1)
भावार्थ
जो सच्चिदानंदस्वरूप सकल सृष्टीचा रचनाकार संपूर्ण ऋतुचक्र चालविणारा, तेजस्वी परमेश्वर आहे, सर्व माणसांनी त्याची प्रेमाने वंदना करावी. ॥३॥
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