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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1683
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
25
म꣣घो꣡नः꣢ स्म वृत्र꣣ह꣡त्ये꣢षु चोदय꣣ ये꣡ दद꣢꣯ति प्रि꣣या꣡ वसु꣢꣯ । त꣢व꣣ प्र꣡णी꣢ती हर्यश्व सू꣣रि꣢भि꣣र्वि꣡श्वा꣢ तरेम दुरि꣣ता꣢ ॥१६८३॥
स्वर सहित पद पाठम꣣घो꣡नः꣢ । स्म꣣ । वृत्रह꣡त्ये꣢षु । वृ꣣त्र । ह꣡त्ये꣢꣯षु । चो꣣दय । ये꣢ । द꣡द꣢꣯ति । प्रि꣣या꣢ । व꣡सु꣢꣯ । त꣡व꣢꣯ । प्र꣡णी꣢꣯ती । प्र । नी꣡ती । हर्यश्व । हरि । अश्व । सूरि꣡भिः꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । त꣣रेम । दुरिता꣢ । दुः꣣ । इता꣢ ॥१६८३॥
स्वर रहित मन्त्र
मघोनः स्म वृत्रहत्येषु चोदय ये ददति प्रिया वसु । तव प्रणीती हर्यश्व सूरिभिर्विश्वा तरेम दुरिता ॥१६८३॥
स्वर रहित पद पाठ
मघोनः । स्म । वृत्रहत्येषु । वृत्र । हत्येषु । चोदय । ये । ददति । प्रिया । वसु । तव । प्रणीती । प्र । नीती । हर्यश्व । हरि । अश्व । सूरिभिः । विश्वा । तरेम । दुरिता । दुः । इता ॥१६८३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1683
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे (हर्यश्व) परस्पर आकर्षण से युक्त व्याप्त सूर्य, चन्द्र, पृथिवी आदि लोकों के स्वामी जगदीश्वर ! आप (मघोनः) धनी मनुष्यों को (वृत्रहत्येषु) जिनमें पापों वा पापी दुष्ट शत्रुओं की हत्या की जाती है, ऐसे देवासुरसङ्ग्रामों में (चोदय) प्रेरित करो, (ये) जो धनी मनुष्य (प्रिया वसु) प्रिय धनों को (ददति) परोपकार के लिए दान करते हैं। (तव प्रणीती) आपके श्रेष्ठ मार्गदर्शन से, हम (सुरिभिः) विद्वान् स्तोताओं सहित (विश्वा दुरिता) सब दुःख, दुर्गुण, दुर्व्यसन आदि को (तरेम) तर जाएँ ॥२॥
भावार्थ
व्यक्तियों तथा समाज की उन्नति के लिए धन और दान के साथ पापों का संहार तथा विघ्नों पर विजय भी अपेक्षित होती है ॥२॥ इस खण्ड में परमात्मा, मन और श्रद्धा के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ अठारहवें अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥
पदार्थ
(हर्यश्व) दुःखहरणशील गुण कर्म हैं व्यापने वाले जिसके ऐसे हे परमात्मन्! (मघोनः ‘मघोने’) तुझ मघवा के लिये (प्रिया ‘प्रियाणि’ वसु ‘वसूनि’ ददति) जो प्रिय धनों को दान कर देते हैं—त्याग देते हैं (वृत्रहत्येषु चोदय स्म) उन्हें तू पापनाशक१ कार्यों में प्रेरित कर—करता है (तव प्रणीती) तेरी प्रकृति नेतृत में (सूरिभिः) पूर्व स्तुतिकर्ताओं२ के समान (विश्वा दुरिता तरेम) सब दुःख कठिनाइयों को हम तर जावें—पार कर जावें॥२॥
विशेष
<br>
विषय
दान 'दान' है [ वृत्रों का विनाशक है ]
पदार्थ
उत्तम निवासवाला अथवा वशियों में श्रेष्ठ 'वशिष्ठ' प्रार्थना करता है कि हे (हर्यश्व) = [ हृ, अश्] सर्वदुःखहारिन् ! सर्वव्यापक प्रभो! आप (मघोनः) = उन धनियों को (ये) = जो (प्रिया वसु) = प्रिय धनों का (ददति) = दान देते हैं, (वृत्रहत्येषु) = वासनाओं के विनाश में (चोदय स्म) = अवश्य ही प्रेरित कीजिए । वस्तुतः धन कोई हेय व घृणित वस्तु नहीं है। हाँ, धन में आसक्त हो जानेवालों को धर्मज्ञान नहीं रहता। धन में असक्त को ही तो धर्म का ध्यान रहता है। (अर्थकामेष्वसक्तानां धर्मज्ञानं विधीयते,) अतः मनुष्य को धन तो कमाना चाहिए, परन्तु उसमें आसक्ति से ऊपर उठने के लिए सदा दान देते रहना चाहिए, दान का अर्थ 'देना' तो है ही, 'दान' का अर्थ 'खण्डन' [दो अवखण्डने] भी है। यह दान सचमुच वृत्रादि वासनाओं का खण्डन करनेवाला है ।
धनों को पात्रों में दान देनेवाले सदा उत्तम सङ्ग प्राप्त करते हैं और उन (सूरिभिः) = विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करके हम हे प्रभो ! (तव प्रणीती) = तेरे प्रणयन में – आपके बतलाये हुए वेदमार्ग पर चलने से (विश्वा) = सब (दुरिता) = पापों को (तरेम) = तैर जाएँ।
संक्षेप में अभिप्राय यह है कि दान देने की वृत्ति से १. विद्वानों का सम्पर्क प्राप्त होता है २. उनके उपदेशों के श्रवण से 'वेदज्ञान' मिलता है – प्रभु से प्रतिपादित वेदमार्ग का पता लगता है, और ३. उसपर चलकर हमारे सब दुरित दूर हो जाते हैं ४. अब हम सचमुच उत्तम निवासवाले 'वसिष्ठ' बनते हैं ।
भावार्थ
हम दान दें और वासनाओं का विनाश करें। प्रभु-प्रतिपादित मार्ग पर चलकर दुरितों से दूर हों ।
विषय
missing
भावार्थ
हे इन्द्र ! परमात्मन् ! (मघोनः) ज्ञानी पुरुषों को (वृत्रहत्येषु) आवरणकारी अज्ञान अन्धकार और विघ्नकारी, दुष्ट पुरुषों के विनाश के कार्यों में (चोदय स्म) प्रेरित कर। (ये) जो (प्रियाः) प्रिय (वसु) वास योग्य उपकरण गृह आदि अथवा अपने धनों को (तव प्रणीती) तेरे, प्रणय=प्रेम के कार्य में या तेरे बनाये हुए वेदानुकूल मार्ग में (ददति) दान करते हैं उन (सूरिभिः) विद्वानों, त्यागियों की सहायता से (विश्वा) समस्त (दुरिता) पापों को (तरेम) हम पार करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः। २ श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। ३ शुनःशेप आजीगर्तः। ४ शंयुर्बार्हस्पत्यः। ५, १५ मेधातिथिः काण्वः। ६, ९ वसिष्ठः। ७ आयुः काण्वः। ८ अम्बरीष ऋजिश्वा च। १० विश्वमना वैयश्वः। ११ सोभरिः काण्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ कलिः प्रागाथः। १५, १७ विश्वामित्रः। १६ निध्रुविः काश्यपः। १८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। १९ एतत्साम॥ देवता—१, २, ४, ६, ७, ९, १०, १३, १५ इन्द्रः। ३, ११, १८ अग्निः। ५ विष्णुः ८, १२, १६ पवमानः सोमः । १४, १७ इन्द्राग्नी। १९ एतत्साम॥ छन्दः–१-५, १४, १६-१८ गायत्री। ६, ७, ९, १३ प्रागथम्। ८ अनुष्टुप्। १० उष्णिक् । ११ प्रागाथं काकुभम्। १२, १५ बृहती। १९ इति साम॥ स्वरः—१-५, १४, १६, १८ षड्जः। ६, ८, ९, ११-१३, १५ मध्यमः। ८ गान्धारः। १० ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे (हर्यश्व) हरयः परस्पराकर्षणयुक्ताः अश्वाः व्याप्ताः सूर्यचन्द्रपृथिव्यादयो लोकाः यस्य तादृश जगदीश्वर ! त्वम्(मघोनः) तान् धनवतः मनुष्यान् (वृत्रहत्येषु) वृत्राणां पापानां पापिनां दुष्टशत्रूणां वा हत्या विनाशो येषु तेषु देवासुरसंग्रामेषु(चोदय) प्रेरय, (ये) धनवन्तो जनाः (प्रिया वसु) प्रियाणि वसूनि (ददति) परोपकाराय प्रयच्छन्ति। (तव प्रणीति) तव प्रकृष्टया नीत्या, वयम् (सूरिभिः) विद्वद्भिः स्तोतृभिः सह(विश्वा दुरिता) विश्वानि दुरितानि सर्वाणि दुःखदुर्गुणदुर्व्यसनादीनि (तरेम) पारयेम ॥२॥२
भावार्थः
व्यक्तीनां समाजस्य चोन्नतये धनेन दानेन च सह पापानां संहारः विघ्नानां विजयश्चाप्यपेक्ष्यते ॥२॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मनो मनसः श्रद्धायाश्च विषयाणां वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेदितव्या।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, good for the removal of the darkness of ignorance, the learned persons, who give their dear treasures in charity in obedience to the laws preached by Thee in the Vedas. May we with the help of the sages overcome all sins!
Meaning
O lord commander of world forces, in the battles against darkness, want and evil, inspire those leaders of wealth, honour and power who contribute to world service in the manner dear to you. O ruler of the dynamics of nations, we pray, may we, along with the wise and the fearless, cross over all evils of the world under the guidance of your ethics, morals and policy in matters of universal values. (Rg. 7-32-15)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (हर्यश्व) જેના દુઃખહરણશીલ ગુણ કર્મ વ્યાપનાર છે એવા હે પરમાત્મન્ ! (मघोनः "मघोने") તારા-ધનવાનને માટે (प्रिया "प्रियाणि" वसु "वसूनि" ददाति) જે પ્રિય ધનનું દાન કરે છે-ત્યાગ કરે છે (वृत्रहत्येषु चोदय स्म) તેને તું પાપનાશક કાર્યોમાં પ્રેરિત કર-કરે છે. (तव प्रणीती) તારી પ્રકૃતિ નેતૃત્વમાં (सूरिभिः) પૂર્વ સ્તુતિકર્તાઓની સમાન (विश्वा दुरिता तरेम) સમસ્ત દુઃખો, દરદો, દુર્વ્યસનોથી અમે તરી જઈએ-તેને પાર કરીએ. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
व्यक्ती व समाज यांच्या उन्नतीसाठी धन व दान याबरोबरच पापसंहार व विघ्नांवर विजयही अपेक्षित असतो. ॥२॥ या खंडात परमात्मा, मन व श्रद्धा या विषयांचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती जाणावी.
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