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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 250
ऋषिः - मेधातिथिर्मेध्यातिथिर्वा काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
12
इ꣣मा꣡ उ꣢ त्वा पुरूवसो꣣ गि꣡रो꣢ वर्धन्तु꣣ या꣡ मम꣢꣯ । पा꣣वक꣡व꣢र्णाः꣣ शु꣡च꣢यो विप꣣श्चि꣢तो꣣ऽभि꣡ स्तोमै꣢꣯रनूषत ॥२५०॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣माः꣢ । उ꣣ । त्वा । पुरूवसो । पुरु । वसो । गि꣡रः꣢꣯ । व꣣र्धन्तु । याः꣢ । म꣡म꣢꣯ । पा꣣वक꣡व꣢र्णाः । पा꣣वक꣢ । व꣣र्णाः । शु꣡च꣢꣯यः । वि꣣पश्चि꣡तः꣢ । वि꣣पः । चि꣡तः꣢꣯ । अ꣣भि꣢ । स्तो꣡मैः꣢꣯ । अ꣣नूषत ॥२५०॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा उ त्वा पुरूवसो गिरो वर्धन्तु या मम । पावकवर्णाः शुचयो विपश्चितोऽभि स्तोमैरनूषत ॥२५०॥
स्वर रहित पद पाठ
इमाः । उ । त्वा । पुरूवसो । पुरु । वसो । गिरः । वर्धन्तु । याः । मम । पावकवर्णाः । पावक । वर्णाः । शुचयः । विपश्चितः । विपः । चितः । अभि । स्तोमैः । अनूषत ॥२५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 250
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में उपासक परमात्मा को कह रहा है।
पदार्थ
हे (पुरूवसो) बहुत धनवाले अथवा बहुत बसानेवाले इन्द्र परमात्मन् (इमाः उ) ये (याः) जो (मम) मेरी (गिरः) वाणियाँ हैं वे (त्वा) आपको अर्थात् आपकी महिमा को (वर्धन्तु) बढ़ायें। (पावकवर्णाः) अग्नि के समान वर्णवाले अर्थात् तेजस्वी और ब्रह्मवर्चस्वी, (शुचयः) शुद्ध अन्तःकरणवाले (विपश्चितः) विद्वान् लोग (स्तोमैः) स्तोत्रों से (अभि अनूषत) आपकी स्तुति करते ही हैं, जैसे वे आपकी स्तुति करते हैं, वैसे ही मैं भी करूँ ॥८॥
भावार्थ
हमें चाहिए कि हम परमात्मा की स्तुति-प्रार्थना-उपासना में और भाषण-उपदेश-गुणवर्णन आदि में अपनीवाणियों का उपयोग करके संसार में परमात्मा के अस्तित्व का प्रचार करें, जिससे सब लोग आस्तिक होकर सदाचारी बनें ॥८॥
पदार्थ
(पुरूवसो) हे बहुत गुण रूप से हमारे अन्दर वसने तथा अपने अन्दर वसाने वाले परमात्मन्! (याः-इमाः-उ गिरः) जो ये प्रस्तुत स्तुतियाँ “स्तुतयो गिरः” [निरु॰ १.११] (त्वा) तेरे प्रति समर्पित हैं वे (मम वर्धन्तु) ‘अस्मान्’ “विभक्तिवचनव्यत्ययः” [निरु॰ १.११] अतः सहयोगी (पावकवर्णाः) अग्निवर्ण वाले तेजस्वी (शुचयः) पवित्र (विपश्चितः) मेधावी उपासको! “विपश्चितः—मेधाविनः” [निघं॰ ३.१५] (स्तोमैः) स्तुति समूहों से (अभ्यनूषत) पुनः पुनः स्तुत करो—परमात्मा की स्तुति करो।
भावार्थ
परमात्मन्! ये स्तुतियाँ जो तेरे प्रति समर्पित की जा रही है हमें बढ़ावें ऊँचे स्तर पर ले जावें—ले जाती हैं अतः मेरे साथी तेजस्वी पवित्र मेधावी उपासको! तुम उसकी स्तुति करो॥८॥
विशेष
ऋषिः—मेधातिथिः—(पवित्र गुणों में अतन गमन प्रवेश करने वाला उपासक)॥<br>
विषय
भक्त की परिभाषा [ Definition ], भक्ति-रसायन का सेवन
पदार्थ
मस्तिष्क, मन, शरीर व संसार [धन] के चारों क्षेत्रों में विजय प्राप्त करनेवाला व्यक्ति
प्रभु से प्रार्थना करता है कि हे (पुरूवसो) = पालक व पूरक निवास देनेवाले प्रभो! (इमा याः मम गिरः)=ये जो मेरी वाणियाँ हैं, वे (उ)= निश्चय से (त्वा वर्धन्तु) = आपका वर्धन करें। मैं सदा आपके स्तुतिवचनों का उच्चारण करूँ। मेरे मुख से निकलनेवाला प्रत्येक शब्द आपकी महिमा का प्रतिपादक हो। मेरे श्वासोच्छलास के साथ आपका जप चले।
मेरा जीवन आपकी भक्तिरूप रसायन का सेवन करनेवाला हो। जो व्यक्ति इस रसायन का सेवन करता है, उसके जीवन में निम्न परिवर्तन दीखते हैं
१. (पावकवर्णाः) = ये भक्त अग्नि के समान वर्णवाले होते हैं। शरीर का स्वास्थ्य व मन की शान्ति इन्हें अग्नि के समान चमका देती है।
२. (शुचयः) = प्रभु के भक्त धन के प्रति कभी आसक्त नहीं होते और इसी का परिणाम है कि वे धन की दृष्टि से सदा पवित्र होते हैं। वे किसी का ऋण न चुकाएँ इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनके मन में धन का लोभ नहीं होता, इसी का बहुत कुछ परिणाम है कि वे राग-द्वेष से ऊपर उठे होते हैं।
३. (विपश्चितः) = ये भक्त विशेष सूक्ष्मता से देखते हुए चिन्तनशील होते हैं। जिन व्यक्तियों के जीवन में उल्लिखित परिणाम दीखते हैं, वे ही वस्तुतः (स्तौमैः)=स्तुतियों से (अभि अनूषत)=प्रभु का स्तवन करते हैं। भक्त होगा तो उसका जीवन 'पावकवर्ण, शुचि व विपश्चित्' का जीवन होगा ही।
इसी व्यक्ति के लिए कहा जा सकेगा कि वह मेधातिथि है, समझदारी से चल रहा है और मेध्यातिथि है– प्रभु के मार्ग पर चल रहा है।
भावार्थ
मैं शरीर में पावकवर्ण, मन में शुचि व मस्तिष्क में विपश्चित् बनूँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( पुरूवसो ) = बहुत ऐश्वर्य वाले एवं बहुत लोकों को बसाने और उनमें बसने वाले ईश्वर ! ( मम ) = मेरी ( या: ) = जो ( इमा गिरः ) = ये वाणियां ( त्वा ) = तुझको ( वर्धन्तु ) = बढ़ाती हैं, प्रसिद्ध करती हैं और ( पावकवर्णा: ) = सबको अपने तेज से पवित्र करनेहारे, ईश्वर का वर्णन करने वाले ( शुचयः ) = शुद्ध चित्त वाले ( विपश्चितः ) = कर्म और प्रज्ञा का संचय करने हारे विद्वान् लोग ( त्वा ) = तुझको ( स्तोमैः ) = स्तुतिमन्त्रों से ( अभि अनूषत ) = साक्षात् स्तुति करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मेधातिथि:।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - बृहती।
स्वरः - मध्यमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथोपासकः परमात्मानमाह।
पदार्थः
हे (पुरूवसो) बहुधन बहुवासयितर्वा इन्द्र परमेश्वर ! (इमाः उ) एताः खलु (याः मम) मदीयाः (गिरः) वाचः सन्ति ताः (त्वा) त्वाम् त्वन्महिमानम् (वर्धन्तु२) वर्धयन्तु। वृधु वृद्धौ सकर्मकोऽपि परस्मैपदी चापि वेदे बाहुल्येन प्राप्यते, लोके तु अकर्मक आत्मनेपदी च। (पावकवर्णाः३) अग्निवर्णाः, अग्निवत् तेजस्विनो ब्रह्मवर्चस्विनः, (शुचयः) शुद्धान्तःकरणाः, (विपश्चितः) विद्वांसः (स्तोमैः) स्तोत्रैः (अभि-अनूषत४) त्वाम् अभिस्तुवन्ति। यथा ते त्वां स्तुवन्ति तथाऽहमपि स्तुयामित्यर्थः ॥८॥५
भावार्थः
अस्माभिः परमात्मनः स्तुतिप्रार्थनोपासनासु परमात्मविषयकभाषणोपदेशगुणवर्णनादौ च स्ववाचमुपयुज्य लोके परमात्मनः प्रचारो विधेयो येनाऽऽस्तिका भूत्वा सर्वे जनाः सदाचारिणः स्युः॥८॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।३।३, य० ३३।८१, साम० १६०७, अथ० २०।१०४।१। २. वर्धन्तु। वृधिरन्तर्णीतण्यर्थो द्रष्टव्यः। वर्धयन्तु—इति वि०। ३. अग्निसमानतेजस्काः—इति सा०। ४. अत्र ‘णू स्तवने’ इत्यस्य लुङ्प्रयोगः। ‘सञ्ज्ञापूर्वको विधिरनित्यः’ इति गुणाभावः, लडर्थे लुङ् च, इति ऋ० १।६।६ भाष्ये द०। ५. दयानन्दर्षिणा यजुर्भाष्ये मन्त्रोऽयं परमेश्वरविषये व्याख्यातः।
इंग्लिश (2)
Meaning
May these my songs of praise exalt Thee, O God, Who hast abundant wealth! Pure, learned persons, the purifiers of all, also laud Thee with hymns of praise!
Meaning
O lord of universal wealth, O shelter home of the world, may these words of my divine adoration please you and exalt you. The saints and sages of vision and wisdom and fiery heat and purity of light adore you with songs of celebration. (Rg. 8-3-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (पुरुवसो) હે અનેક ગુણ રૂપથી અમારી અંદર વસનાર અને પોતાની અંદર વસાવનાર પરમાત્મન્ ! (याः इमाः उ गिरः) જે આ પ્રસ્તુત સ્તુતિઓ (त्वा) તારા પ્રત્યે સમર્પિત છે તે (मम वर्धन्तु) અમારી વૃદ્ધિ કરે તેથી મારા સહયોગી (पावकवर्णाः)અગ્નિવર્ણવાળા તેજસ્વી (शुचयः) પવિત્ર (विपश्चितः) મેધાવી ઉપાસકો ! (स्तोमैः) સ્તુતિ સમૂહોથી (अभ्यनूषत) પુનઃ પુનઃ સ્તુતિ કરો-પરમાત્માની સ્તુતિ કરો. (૮)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મન્ ! આ સ્તુતિઓ તારા પ્રત્યે સમર્પિત કરવામાં આવી રહી છે, અમારી વૃદ્ધિ કરે, શ્રેષ્ઠ સ્તર પર લઈ જાય-લઈ જાય છે, તેથી મારા સાથી, તેજસ્વી, પવિત્ર, મેધાવી ઉપાસકો ! તમે તેની સ્તુતિ કરો. (૮)
उर्दू (1)
Mazmoon
پاکیزہ رُوح عابد آپ کی حمد و ثنا کرتے ہیں!
Lafzi Maana
(پُروُوسُو) پری پُورن سب میں بسنے والے دھن کے سوامی پرمیشور! (یہ مم گِرا یہ جو میری سُتتی بانی ہے (اِما اُوتو اور دھنتُو) یہ بانیاں آپ کو ہی بڑھاتی یعنی آپ کا ہی ذکر کرتی ہیں۔ (شچیُہ وپشچتی تہ) شریر، من، بانی اور شُدھ پوتر آتما سیدھاری اُپاسک (ستومئی ابھی انُوشت) اپنی بانیوں سے آپ کی حمد و ثنا ہی گاتے ہیں۔
Tashree
سب کو بسانے والے جگ میں پری پُورن دھنوان ہو تُم، ہو پوتّر طرح سے ہم تیری بانی گاتے ہر دم۔
मराठी (2)
भावार्थ
आम्ही परमेश्वराची स्तुती-प्रार्थना-उपासना व भाषण, उपदेश-गुणवर्णन इत्यादीमध्ये आपल्या वाणीचा उपयोग करून जगात परमेश्वराच्या अस्तित्वाचा प्रचार करावा, ज्यामुळे सर्व माणसे आस्तिक बनून सदाचारी बनतील ॥८॥
विषय
परमेश्वरापुढे उपासकाचे निवेदन
शब्दार्थ
हे (पुरुवसो) अत्यंत ऐश्वर्यवान वा अत्यंत निवासक परमेश्वरा, (इमाः उ) या (याः) ज्या (मम) माझ्या (गिरः) वाणी आहेत (माझी प्रार्थना स्तुतिवचने आहेत) त्या (त्वा) तुला म्हणजे तुझ्या महिमेचे (वर्धन्तु) वर्णन करीत आहेत. तुझा महिमा वाढवीत आहेत. (पावकवर्णाः) अग्नीप्रमाणे वर्ण असलेले अथवा तेजस्वी, ब्रह्मवर्चस्वी आणि (शुचयः) पवित्र अंतःकरण असणारे (विप्रश्चितः) विद्वज्जन (स्तोमैः) स्तोत्रांद्वारे (अभि अनूषत) तुझीच स्तुती करीत आहेत. जसे ते विद्वान तुझी स्तुती करताहेत, तसे मीही स्तुती करावी. (हेच माझ्या हिताचे आहे.)।।८।।
भावार्थ
आमचे कर्तव्य आहे की आम्ही स्तुती, प्रार्थना, उपासनेमध्ये परमेश्वराच्या गुणवर्णनासाठी आपल्या वाणीचा उपयोग करावा, तसेच भाषण, उपदेशादीद्वारे त्याच्या अस्तित्वाविषयीच लोकांना सांगावे. यायोगे सर्व लोक आस्तिक व सदाचारी होतील.।।८।।
तमिल (1)
Word Meaning
வெகு ஐசுவரியமுள்ளவனே, என் இந்தமொழிகள் உன்னை என் மனதில் பெருக்கட்டும். அக்னியின் நிறத்தோடு வித்வான்கள் துதிகளால் உன்னைத் தோத்திரஞ் செய்கிறார்கள்.
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