Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 34
ऋषिः - उशना काव्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
47
क꣡स्य꣢ नू꣣नं꣡ प꣢꣯रीणसि꣣ धि꣡यो꣢ जिन्वसि सत्पते । गो꣡षा꣢ता꣣ य꣡स्य꣢ ते꣣ गि꣡रः꣢ ॥३४॥
स्वर सहित पद पाठक꣡स्य꣢꣯ । नू꣣न꣢म् । प꣡री꣢꣯णसि । प꣡रि꣢꣯ । न꣣सि । धि꣡यः꣢꣯ । जि꣣न्वसि । सत्पते । सत् । पते । गो꣡षा꣢꣯ता । गो꣢ । सा꣣ता । य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । गि꣡रः꣢꣯ ॥३४॥
स्वर रहित मन्त्र
कस्य नूनं परीणसि धियो जिन्वसि सत्पते । गोषाता यस्य ते गिरः ॥३४॥
स्वर रहित पद पाठ
कस्य । नूनम् । परीणसि । परि । नसि । धियः । जिन्वसि । सत्पते । सत् । पते । गोषाता । गो । साता । यस्य । ते । गिरः ॥३४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 34
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 14
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 14
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
कौन परमेश्वर की कृपा का पात्र होता है, यह कहते हैं।
पदार्थ
हे (सत्पते) सज्जनों के पालक ज्योतिर्मय परमात्मन् ! आप (नूनम्) निश्चय ही (कस्य) किस मनुष्य की (धियः) बुद्धियों को (परीणसि) बहुत अधिक (जिन्वसि) सन्मार्ग में प्रेरित करते हो? यह प्रश्न है। इसका उत्तर देते हैं—(यस्य) जिस मनुष्य को (ते) आपकी (गिरः) उपदेशवाणियाँ (गोसाता) श्रेष्ठ गायों, श्रेष्ठ इन्द्रियबलों, श्रेष्ठ पृथिवी-राज्यों और श्रेष्ठ आत्म-किरणों को प्राप्त कराने में सफल होती हैं, उसी की बुद्धियाँ सन्मार्ग में आप द्वारा प्रेरित की गयी हैं, यह मानना चाहिए ॥१४॥
भावार्थ
जो मनुष्य परमात्मा के उपदेश को सुनकर अधिकाधिक भौतिक और आध्यात्मिक सम्पदा को प्राप्त कर लेता है, वही परमात्मा का कृपापात्र है, यह समझना चाहिए ॥१४॥ इस दशति में परमात्मा आदि के महत्त्व का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति के लिए प्रेरणा होने से इसके विषय की पूर्व दशति के विषय के साथ संगति है ॥ प्रथम प्रपाठक में प्रथम अर्ध की तृतीय दशति समाप्त ॥ प्रथम अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥
पदार्थ
(सत्पते) हे सत्पुरुषों मुमुक्षुओं के पालक परमात्मन्! (कस्य नूनम्) किसी के फिर “नूनं तर्के” [अव्ययार्थनिबन्धनम्] (धियः) ‘मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार’ प्रज्ञानों को “धीः प्रज्ञानाम” [निघं॰ ३.१] (परिणसि) भूमा में—मोक्ष में “परिणसा बहुनाम” [निघं॰ ३.१] “भूमा वै सुखम्” [श॰ ३.१.१.१२] (जिन्वसि) तृप्त करता है (ते गिरः-यस्य गोषाताः) तेरे लिये जिसकी स्तुतियाँ इन्द्रियों में संसेवित—संगत हो गईं।
भावार्थ
हे परमात्मन्! तेरे लिये की हुई स्तुतियाँ जिसकी इन्द्रियों में बैठ जाती हैं, चरितार्थ हो जाती हैं, इन्द्रियाँ अपने-अपने विषय से विरत हो तेरी स्तुतियों में लग जाती हैं, वही उपासक महान् आनन्द या महान् धाम—मोक्ष को प्राप्त होता है। उसी जीवन्मुक्त का अन्तःकरण चतुष्टय तृप्त होता है, उसी पर तेरी परम कृपा होती है॥१४॥
विशेष
ऋषिः—उशनाः (कल्याण की कामना करने वाला उपासक)॥<br>
विषय
ज्ञान से सनी वाणियाँ
पदार्थ
१. हे (सत्पते)=सयनों के रक्षक प्रभो! यह शब्द हमें बोध दे रहा है कि हम सयन बनें, वे प्रभु हमारी रक्षा करेंगे।
२. (नूनम्) = निश्चय से आप (कस्य)=सुख की (परीणसि)= पालन व पूरण करनेवाली [ पृ पालनपूरणयोः] (धियः)=बुद्धियों को (जिन्वसि)= देते हो। इस वाक्य का बोध स्पष्ट है कि प्रभु की दी हुई प्रेरणाएँ हमारे कल्याण की साधिका हैं। हम उन्हें सुनेंगे तो हमारा कल्याण अवश्य होगा। हृदयस्थ उस प्रभु की आवाज़ को हम न भी सुन पाएँ तो वेदस्थ उसके शब्दों को तो पढ़ व सुन ही सकते हैं। हमें उन्हें पढ़ और सुनकर अपने जीवन को कल्याणमय बनाना चाहिए।
३. हे प्रभो ! (यस्य )= जिस ते आपकी (गिरः) = वाणियाँ (गोषाता)=[गो+सन्] ज्ञान से सनी हुई हैं। प्रभु की वेदवाणियाँ ज्ञान - रस परिपूर्ण हैं | वेद क्या हैं?( “रायः समुद्रान् चतुरः ”) ये ज्ञान के चार समुद्र हैं। समुद्र भी रत्नाकर होते हैं, ये भी ज्ञानरत्नों से भरे पड़े हैं। इससे हमें भी यह बोध लेना चाहिए कि हमारी वाणियाँ ज्ञान से भरी हों । हमारी परस्पर बातचीत हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाली हों । इस बोध को प्राप्त करके हम सभी के साथ प्रेम करनेवाले, सभी का हित चाहनेवाले इस मन्त्र के ऋषि 'उशना' बनेंगे।
भावार्थ
हम सयन बनें, प्रभु प्रेरणा को सुनें, हमारे वार्तालाप भी प्रकाशमय हों।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( सत्पते ) = महात्मा सन्त जनों के रक्षक! ( यस्य गिरः ) = जिस भक्त की वाणियाँ ( ते ) = आपके विषय में ( गोषाता: ) = अमृतरस से भरी हैं उसके लिए ( कस्य ) = सुख की ( परीणसि ) = बहुत सी ( धियः ) = बुद्धियों को ( नूनम् जिन्वसि ) = निश्चय से भरपूर कर देते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = हे प्रभो ! आपके जो परम प्यारे सुपुत्र और अनन्य भक्त हैं, अपनी अतिमनोहर अमृतभरी वाणी से, सदा आप प्रभु के ही गुणगण को गान करते हैं। भक्तवत्सल आप भगवान्, उन भक्तों को श्रेष्ठ बुद्धि से भरपूर कर देते हैं। आपकी अपार कृपा से जिनको उत्तम बुद्धि प्राप्त हुई है, वे अपने मन से ऐसा चाहते हैं, कि हे दया के भण्डार भगवन्! जैसी आपने हमको सद्बुद्धि दी है जिससे हम आपके भक्त और आपकी कृपा के पात्र बनें। ऐसी ही कृपा मेरे सब भ्राताओं पर कीजिये, उनको भी सद्बुद्धि प्रदान कीजिये, जिससे सब आपके प्यारे भक्त बन जायें, और सब सुखी होकर संसार भर में शान्ति के फैलानेवाले बनें।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = [प्रश्न ] हे ( सत्-पते ) = सज्जनों के प्रतिपालक ! तुम ( नूनम् ) = निश्चय से ( कस्य ) = किसके ( धिय: ) = कर्मों और स्तुतियों और मनः संकल्पों को ( परीणसि ) = बहुधा ( जिन्वसि१ ) = पूर्ण करते, स्वीकार करते हो ? [ उत्तर ] ( यस्य ) = जिसकी ( ते गिरः ) = तेरे निमित्त प्रकट हुई बाणियां ( गोषाता ) = अपनी इन्द्रियों को वश करने के लिये हैं ।
जो पुरुष अपनी इन्द्रियों को जीतने के लिये ईश्वर स्तुति, उपासना, प्रार्थना करते हैं ईश्वर उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं ।
टिप्पणी
१ ‘परिणसः’, ‘दम्पते' इति च ऋ० । १.परिणसि इति बहुनाम, (नि० ३ । १)
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - उशना: काव्यः।
छन्द: - गायत्री।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ कः परमेश्वरस्य कृपायाः पात्रमित्याह।
पदार्थः
हे (सत्पते) सतां पालक अग्ने ज्योतिर्मय परमात्मन् ! त्वम् (नूनम्) निश्चयेन (कस्य) कस्य जनस्य (धियः) बुद्धीः (परीणसि२) बहु। परीणसेति बहुनाम। निघं० ३।१। (जिन्वसि) सन्मार्गे प्रेरयसि? इति प्रश्नः। जिन्वतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४। अथोत्तरमाह—(यस्य) यस्य जनस्य (ते) तव (गिरः) उपदेशवाचः (गोसाता) गोसातये, गवां श्रेष्ठधेनूनां, श्रेष्ठेन्द्रियबलानां, श्रेष्ठपृथिवीराज्यानां, श्रेष्ठात्मकिरणानां च सातये लाभाय भवन्ति, तस्यैव बुद्धयः सन्मार्गे त्वया प्रेरिता इति मन्तव्यम्। सातिः इति सनतेः सनोतेर्वा ऊतियूतिजूतिसातिहेतिकीर्तयश्च।’ अ० ३।३।९७ इति क्तिनि निपात्यते। गोसातये इति प्राप्ते सुपां सुलुक्०।’ अ० ७।१।३९ इति चतुर्थ्येकवचनस्य डादेशः। संहितायां पूर्वपदात्।’ अ० ८।३।१०६, सनोतेरनः अ०’ ८।३।१०८ इति सस्य षत्वम् ॥१४॥
भावार्थः
यो जनः परमात्मोपदेशमुपश्रुत्य प्रचुरप्रचुरां भौतिकीमाध्यात्मिकीं च सम्पदमधिगच्छति, स एव परमात्मनः कृपापात्रमिति मन्तव्यम् ॥१४॥ अत्र परमात्मादेर्महत्त्ववर्णनपूर्वकं तत्स्तुत्यर्थं प्रेरणादेतद्दशत्यर्थस्य पूर्वदशत्यर्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति प्रथमे प्रपाठके पूर्वार्धे तृतीया दशतिः ॥ इति प्रथमेऽध्याये तृतीयः खण्डः ॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।८४।७ परीणसि, सत्पते इत्यनयोः स्थाने क्रमेण परीणसो, दंपते इति पाठः। २. सप्तम्येकवचनमिदं द्वितीयाबहुवचनस्य स्थाने द्रष्टव्यम्। परीणसः बह्व्यः धियः प्रज्ञाः—इति वि०। परिणः इति महन्नामधेयम्, परिपूर्वात् णसेः व्याप्तिकर्मणः इदं रूपम्। महति यज्ञे—इति भ०।
इंग्लिश (4)
Meaning
O Lord of the saints. Thou graciously fulfillest the various ambitions of him, whose praise for Thee is designed to control his organs.
Translator Comment
Pt. Jaidev Vidyalankar interprets this verse as thus: O God, whose various acts and ambitions dost Thou fulfil? Of him, who sings Thy praise for controlling his organs. The first half of the verse puts a question, which is replied in the latter half. He interprets the word कस्य in an interrogatory sense. Swami Tulsi Ram interprets कस्य as denoting happiness.^कस्य = कमिति सुखनाम निघं॰ 3।6।
Meaning
O lord protector of the world of truth as a happy home and shelter for the people, whose sincere and abundant prayers do you accept and fulfil? His, whose prayers to you are enlightened and inspired by knowledge, wisdom and sincere awareness of divinity. (Rg. 8-84-7)
Translation
Question:—O Protector of good people, Whose actions dost Thou in Thine abundance accept ?
Answer:—Of the person whose hymns help him to control his senses. God accepts the actions of those people only who are pure in word, mind and deed. The last line गोपातायस्यतेरिर: also means
that God’s Revelation-(the Veda) is meant for all.
The Vedas are universal
Comments
गोषातायरयते गिर? इतिवेदानां सावभौमत्व॑ तेषामध्ययनादौ सर्वेषां पुथिवीस्थ जनानामधिकारं च सूचयति यथा सुष्ठु च्याख्यातं परमहस प्रित्राजकाचार्येण पणिडतराजेन Sle भगवदाचार्येणः- स्वकीये सामसंस्कार भाष्ये “हे सत्पते सतां पूतमनसां पूतवचसां पूतकमणा च पतेस्वाभिन अग्ने परमात्मन् यस्य (ते) तव (गिरः) वेदरूपा वाच (गोषाताः) गवां प्रथिवीस्थितानां सर्वेषां मानवानां (सातौ) लाभे सातो) लाभे लाभाय भवन्तीति । अनेन परम कृपाकूपारस्य परमेश्वरस्य वेदेषु सर्वेषामेव _त्राह्मणुक्षत्रिय वश्यशुट्रातिशुद्रादिविभव् विभक्त हाणचत्रिय वेश्यशूद्रातिशुद्रादिविभेद विभक्तानां तत्पुत्राणां स्त्रीपु सशरीरश्षतां जीवानां समानोऽधिकार इति विस्पष्टं सूचितंभवति |
(स्वा० भगवदा चाये कृते साम संस्कार भाष्ये go ३२-३३)
Translation
O Lord of the universe, tell me, whose offerings and songs delight you the most and whose prayers are acceptable to you as the best to grant him wealth and wisdom. (Cf. Rv VIII.84.7)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सत्पते) હે સત્પુરુષોના-મુમુક્ષુઓના પાલક પરમાત્મન્ ! (कस्य नूनम्) કોનાથી ફરી (धियः) મન, બુદ્ધિ, ચિત્ત અને અહંકાર (परिणसि) ભૂમામાં - મોક્ષમાં (जिन्वसि) તૃપ્ત કરે છે. (ते गिरः यस्य गोषाता) તારા માટે જેની સ્તુતિઓ ઇન્દ્રિયોમાં સંસેવિત - સંગત બની ગઈ. (૧૪)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે પરમાત્મન્ ! જ્યારે તારા માટે કરવામાં આવેલી સ્તુતિઓ જેની ઈન્દ્રિયોમાં બેસી જાય છે, ચરિતાર્થ બની જાય છે, ત્યારે ઇન્દ્રિયો પોત-પોતાના વિષયોથી વિરક્ત બનીને તારી સ્તુતિઓમાં સંલગ્ન બને છે, તે જ ઉપાસક મહાન આનંદ અથવા મહાન ધામ-મોક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે. તે જીવનમુક્તનું અન્તઃકરણ ચતુષ્ટય તૃપ્ત બની જાય છે, તેના પર તારી પરમ કૃપા થાય છે. (૧૪)
उर्दू (1)
Mazmoon
ست پُرشوں کا رکھشک
Lafzi Maana
(ست پتے) ہے ست پُرشوں، سنتوں، سجن لوگوں کے رکھشک پالک سوامی! آپ (نُونم) نشچے ہی (کسیہ) کس کی (دھِیہ) بُدھیوں من کے خیالات، کرموں یعنی من بُدھی چِت اہنکار کو (پری نسی) بھرپُور (جنوِسی) پوتر اور شانت پرسن کر دیتے ہو (یسیہ) جن کی (تے گِرام آپ کے لئے پرگٹ ہوئی وید بانیاں امرت بھری اور (گوشاتہ) جس کی اِندریاں پِوتّر اور شانت ہو گئی ہیں۔
Tashree
1۔ ایشور سچے آدمیوں کا دوست اور محافظ ہے (جھُوٹے کذب و بطالت سے بھرے موؤں کا نہیں۔ (2) اُن پر اُس کا رحم و کرم سدا رہتا ہے جو اُس پرمیشور کی وید بانیوں کے سُتتی گان اور بھجن کرتے رہتے ہیں (3) جنہوں نے اپنے من اِندریوں بُدھی اور کرموں کو پِوتّر بنا لیا ہے۔ پاک اور صاف۔
बंगाली (1)
পদার্থ
কস্য নূনং পরীণসি ধিয়ো জিন্বসি সৎপতে।
গোষাতা যস্য তে গিরঃ।।১২।।
(সাম ৩৪)
পদার্থঃ হে (সৎপতে) সজ্জনের পালক জ্যোতির্ময় পরমাত্মা! তুমি (কস্য) কোন মানুষের (ধিয়ঃ) বুদ্ধিকে (পরীণসি’) অধিক থেকে অধিকতর (জিম্বসি) সৎপথে প্রেরণ করো?
এই প্রশ্নের উত্তর দেয়া হচ্ছে– (য়স্য) যে মানুষ (তে) তোমার (গিরঃ) উপদেশ বাণীর (গোসাতা) শ্রেষ্ঠ গায়ক, শ্রেষ্ঠ ইন্দ্রিয়বান, বসুন্ধরায় শ্রেষ্ঠত্বের অধিকারী এবং আত্ম-কিরণকে শ্রেষ্ঠত্বের সাথে প্রাপ্ত করতে সফল হন, (নূনম্) নিশ্চয়ই তাঁর বুদ্ধিই তুমি সৎ মার্গে প্রেরণ করেছ ॥১৪॥
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরমেশ্বর! তোমার যে পরম প্রিয় ভক্তগণ নিজেদের অতিমনোহর অমৃতপূর্ণ বাণী দ্বারা সর্বদা তোমারই গুণগান করে, ভক্ত বৎসল তুমি সেই ভক্তদের শ্রেষ্ঠবুদ্ধি দ্বারা পূর্ণ করে দাও। তোমার অপার কৃপা দ্বারা যারা উত্তম বুদ্ধি প্রাপ্ত হয়েছে, তারা নিজের মনের দ্বারা এরূপ প্রার্থনা করে যে, "হে দয়ার ভাণ্ডার ভগবান! যেরূপ তুমি আমাদের সৎবুদ্ধি দিয়েছ, যার মাধ্যমে আমরা তোমার ভক্ত এবং তোমার কৃপার পাত্র হয়েছি, তেমনই সবাই যেন তোমার কৃপার পাত্র হয়। অনুরূপ কৃপা অন্য সবাইকেও করো। তাদেরও সদবুদ্ধি প্রদান করো যাতে তারা সবাই তোমার প্রিয় ভক্ত হতে পারে এবং জীবনে নিজে সুখী হয়ে সম্পূর্ণ সংসারে শান্তি ছড়িয়ে দিতে পারে" ।।১২।।
मराठी (2)
भावार्थ
जो माणूस परमेश्वराचा उपदेश ऐकून अधिकाधिक भौतिक व आध्यात्मिक संपदा प्राप्त करतो, तोच परमेश्वराचा कृपापात्र ठरतो, हे समजले पाहिजे. ॥१४॥
टिप्पणी
या दशतिमध्ये परमात्मा इत्यादीचे वर्णन असून त्याच्या स्तुतीसाठी प्रेरणा असल्यामुळे या विषयाची पूर्व दशतिच्या विषयाबरोबर संगती आहे
विषय
ईश्वरीय दिव्य शक्तींनी अग्निज्वाळेप्रमाणे आमच्यासाठी काय केले पाहिजे, याविषयी सांगतात. -
शब्दार्थ
हे (सत्यते) सज्जनांचे पालनकर्ता ज्योतिर्मय परमात्मन्, आपण (न्यूतम्) अपश्यमेन (कस्य) कुण्या मनुष्याच्या (धिव:) बुद्धीला (परीणसि) अत्यधिक (जिन्वसि) सन्मार्गाकडे प्रेरित करता? हा प्रश्न आहे. पुढे त्याचे उत्तर देत आहोत. (यस्य) ज्या मनुष्याला (ते) तुमची (गिर:) उपदेशवाणी (गोधाता) श्रेष्ठ गौ, श्रेष्ठ इंद्रियशक्ती, श्रेष्ठ पृथ्वी राज्य आणि श्रेष्ठ आत्मकिरणे प्राप्त करण्यात सफल होतो. तुमच्या वेदवाणीप्रमाणे अनुकरण करून जो इंद्रिय जय, धनसंपदा, गौधन आदी श्रेष्ठ रीतीने प्राप्त करतो. त्या मनुष्याची बुद्धी तुम्ही सन्मार्गावर प्रेरित केली आहे, असे मानले पाहिजे. ।।१४।।
भावार्थ
जो माणूस परमात्म्याचा उपदेश ऐकून अधिकाधिक भौतिक आणि आध्यात्मिक संपदा प्राप्त करतो, तोच परमात्म्याचा कृपापात्र आहे, असे समजावे. ।।१४।। प्रथम प्रपाठकात प्रथम अर्धाची तृतीय दशति समाप्त । प्रथम अध्यायात तृतीय खंड समाप्त
तमिल (1)
Word Meaning
சத்துருக்களின் பதியே! (சிறந்தவர்களின் பதியே) உன் சம்பந்தமான [1]பசுக்களை யளிக்கும் துதிகள் ஆத்மாவின் பிரம செயல்களை (அறிவு செயல்களை) எழுச்சியாக்குகின்றன.
FootNotes
[1]. பசுக்களை - சுகங்களை
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal