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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 478
    ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    11

    प्र꣡ सोमा꣢꣯सो विप꣣श्चि꣢तो꣣ऽपो꣡ न꣢यन्त ऊ꣣र्म꣡यः꣢ । व꣡ना꣢नि महि꣣षा꣡ इ꣢व ॥४७८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । वि꣣पश्चि꣡तः꣢ । वि꣣पः । चि꣡तः꣢꣯ । अ꣣पः꣢ । न꣣यन्ते । ऊर्म꣡यः꣢ । व꣡ना꣢꣯नि । म꣣हिषाः꣢ । इ꣣व ॥४७८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमासो विपश्चितोऽपो नयन्त ऊर्मयः । वनानि महिषा इव ॥४७८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमासः । विपश्चितः । विपः । चितः । अपः । नयन्ते । ऊर्मयः । वनानि । महिषाः । इव ॥४७८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 478
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि दिव्य आनन्दरस की तरङ्गें क्या करती हैं।

    पदार्थ

    (ऊर्मयः) तरङ्गरूप, (विपश्चितः) बुद्धिवर्धक, (सोमासः) परमात्मा से प्रस्रुत आनन्दरस (अपः) कर्मों को (प्र नयन्ते) उत्कृष्ट मार्ग में प्रेरित कर देते हैं, (वनानि) अन्तरिक्षस्थ जलों को (महिषाः इव) जैसे माध्यमिक देवगण पवन (प्र नयन्ते) वेग से प्रेरित करते हैं ॥२॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    योगियों का योग सिद्ध हो जाने पर दिव्य आनन्दरस की तरङ्गों से उनके कर्म भी परम उत्कृष्ट हो जाते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (विपश्चितः सोमासः) सर्वज्ञशान्त आनन्दस्वरूप परमात्मा (अपः-ऊर्मयः प्र-नयन्त) ‘अपः-अपाम्’ ‘विभक्तिव्यत्ययः’ जलों की लहरें बहने वाली वस्तुओं को तट की ओर जैसे ले जाती हैं ‘लुप्तोमावाचकालङ्कारः’ ऐसे हम उपासकों को अपने मोक्षधाम की ओर ले जाता है (महिषाः-वनानि-इव) अथवा महान् अग्नि पिण्ड “महिषः-महन्नाम” [निघं॰ ३.३] “अग्निर्वै महिषः” [श॰ ७.३.१.२३] जलों को जैसे ऊपर ले जाता है, भापरूप सूक्ष्म बनाकर “वनम्-उदकनाम” [निघं॰ १.१२] ऐसे उपासकों को अमृतरूप बनाकर मोक्ष में ले जाता है।

    भावार्थ

    सर्वज्ञ परमात्मा उपासकों को अपने अमृतधाम की ओर ले जाता है जैसे जल नदियों की तरङ्गें वस्तुओं को तट की ओर पहुँचाती हैं या जैसे अग्निपिण्ड सूर्य जलों को सूक्ष्मकर उन्नत करता है ऐसे परमात्मा उपासकों को अमृत बना उन्नत करता है॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—त्रितः (मेधा से तीर्णतम)॥<br>

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    विषय

    ज्ञान-कर्म-उपासना

    पदार्थ

    सोम के संयम से मैं 'विपश्चित्' बनता हूँ। ‘वि-पश् - चित्’- विशेषरूप से सूक्ष्मता के साथ देखकर मैं प्रत्येक पदार्थ का चिन्तन करनेवाला बनता हूँ। इससे मन्त्र में कार्य-कारण का अभेद करते हुए सोम को ही विपश्चित् कहा गया है। (सोमासः) = ये सोम (प्र) = खूब (विपश्चित:) = ज्ञानी हैं या मुझे ज्ञानी बनानेवाले हैं। (ऊर्मयः) = हमारे अन्दर उत्साह की तरङ्गों को भरनेवाले ये सोम (अपो नयन्त) = हमें कर्मों को प्राप्त कराते हैं, अर्थात् सोम के द्वारा मेरा जीवन प्रकाशमय होता है और मैं बड़े उत्साह से कर्मों में लोकसंग्रह के कार्यों में प्रवृत्त होता हूँ। ज्ञानी बनकर कर्मशील होता हूँ। एवं ज्ञानपूर्वक होने से ही मेरे ये कर्म पवित्र होते हैं। इन पवित्र कर्मों के द्वारा ही तो मुझे प्रभु की उपासना करनी है। (महिषा इव) = [मह पूजायाम् ] प्रभु की पूजा करनेवालों के समान ये सोम मुझे (वनानि) = [वन संभक्ति] संभजनों व उपासनाओं को (नयन्त) = प्राप्त कराते हैं, मेरा जीवन इन पवित्र कर्मों को प्रभु चरणों में निवेदित करता हुआ उपासनामय बनता है।

    सोम के द्वारा ‘ज्ञान-कर्म-उपासना' इन तीनों का ही विस्तार करने से ये 'त्रित' है। प्रभु को प्राप्त करने से ‘आपत्य' है। ('ज्ञानपूर्वक कर्म') = करने से उपासना तो स्वतः ही हो जाती है, अतः यह ज्ञान और कर्म का विस्तार करनेवाला 'द्वित' भी कहलाता है और ज्ञान का विस्तार इसको क्रियावान् बना ही देता है, अतः ज्ञान का विस्तार करनेवाला यह ‘एकत' नामवाला हो जाता है। ‘एकत' का ही विस्तार 'द्वि-त' है' और 'द्वित' का 'त्रित'। एवं यह त्रित अपने को प्रभु - प्राप्ति के योग्य बनाता हैं।

    भावार्थ

    मैं सोमी बनूँ। सोम मुझे ज्ञान-कर्म-उपासना का विस्तार करनेवाला बनाकर ‘त्रित-आप्त्य' बनाएँ

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( ऊर्मयः ) = जिस प्रकार समुद्र की तरंगें पुरुषों को समुद्र से नाना देशों के भीतर पहुंचा देती हैं या जैसे ( महिषा: ) = बड़े २ लादू पशु भैंसे आदि पीठ पर उठाकर, उनके वाहन बन कर दूर देशों तक पहुंचा देते हैं उसी प्रकार ( विपश्चितः ) = विद्वान्, ज्ञानवान्, कर्मवान् ( सोमासः ) = सौम्य स्वभाव वाले जन ( अपः ) = प्रजाओं को ( वनानि ) = उत्तम सेवन करने योग्य पदार्थों के प्रति ( नयन्त ) = प्राप्त कराते हैं । 

    टिप्पणी

    ४७८ - 'नयन्ति' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - श्यावाश्वः। 

    देवता - पवमानः ।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ दिव्यानन्दरसतरङ्गाः किं कुर्वन्तीत्याह।

    पदार्थः

    (ऊर्मयः) तरङ्गरूपाः (विपश्चितः) बुद्धिवर्धकाः (सोमासः) परमात्मनः प्रस्रुताः आनन्दरसाः (अपः) कर्म। अपस् इति कर्मनाम। निघं० २।१। (प्र नयन्ते) प्रकृष्टमार्गे प्रेरयन्ति (वनानि) अन्तरिक्षस्थानि उदकानि। वनमित्युदकनाम। निघं० १।१२। (महिषाः इव) महान्तो माध्यमिका वायवः यथा प्र नयन्ते वेगेन प्रेरयन्ति, तद्वत्। महिष इति महन्नाम। निघं० ३।३। ‘अ॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षा अ॑गृभ्णत॒। ऋ० ६।८।४’ इत्यस्य व्याख्याने महिषा माध्यमिका देवगणा इत्याह निरुक्तकारः। निरु० ७।२६ ॥२॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    योगिनां योगे सिद्धे सति दिव्यानन्दरसतरङ्गैस्तेषां कर्माण्यपि परमोत्कृष्टानि जायन्ते ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३३।१ ‘ऽपां यन्त्यूर्मयः’ इति पाठः। साम० ७६४।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as the waves of the ocean take travellers to distant places; just as powerful conveyances take goods to different countries, so do the active learned persons of affable nature, procure for men objects worth enjoying.

    Translator Comment

    Powerful conveyances means aeroplanes or buses.

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    Meaning

    Just as waves of water rise to the moon and great men strive for things of beauty and goodness, so do inspired learned sages, lovers of dynamic peace and goodness, move forward to realise the supreme power and Spirit of the Vedic hymns. (Rg. 9-33-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (विपश्चितः सोमासः) સર્વજ્ઞ, શાન્ત, આનંદ સ્વરૂપ પરમાત્મા (अपः ऊर्मयः प्र नयन्त) જેમ જળના મોજાઓ વહેનારી વસ્તુઓને કિનારે લઈ જાય છે, તેમ અમને ઉપાસકોને પોતાના મોક્ષધામની તરફ લઈ જાય છે. (महिषाः वनानि इव) અથવા મહાન અગ્નિ પિંડ જેમ જળને વરાળ રૂપ સૂક્ષ્મ બનાવીને ઉપર લઈ જાય છે, તેમ ઉપાસકોને અમૃતરૂપ બનાવીને મોક્ષમાં લઈ જાય છે. (૨) 

     

    ભાવાર્થ : સર્વજ્ઞ પરમાત્મા ઉપાસકોને પોતાના અમૃતધામ તરફ લઈ જાય છે. જેમ જળ નદીઓનાં મોજાઓ વસ્તુઓને કિનારા તરફ પહોંચાડે છે, અથવા જેમ અગ્નિપિંડ સૂર્ય જળને સૂક્ષ્મ કરીને ઉપર ઉઠાવે છે, તેમ પરમાત્મા ઉપાસકોને અમૃત બનાવીને ઉન્નત કરે છે. (૨)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સર્વજ્ઞ પરમાત્મા ઉપાસકોને પોતાના અમૃતધામ તરફ લઈ જાય છે. જેમ જળ નદીઓનાં મોજાઓ વસ્તુઓને કિનારા તરફ પહોંચાડે છે, અથવા જેમ અગ્નિપિંડ સૂર્ય જળને સૂક્ષ્મ કરીને ઉપર ઉઠાવે છે, તેમ પરમાત્મા ઉપાસકોને અમૃત બનાવીને ઉન્નત કરે છે. (૨)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    رُوحانیت کی لہروں کو پیدا کرتے

    Lafzi Maana

    یہ بھگتی رس جیون میں آ کر روحانیت کی لہروں کو پیدا کر کے بھگتی مارگ پر ایسے آگے بڑھاتے ہیں، جیسے کہ ہوا کے طوفان سمندر، ندی، نالوں میں پانی کی لہروں کو آگے دھکیلتے ہیں یا بوائیں جل بھرے بادلوں کو آگے دھکیل لے جاتی ہیں۔

    Tashree

    بخشش بھگوان کی جب ہوتی بھگتی رس جیون میں اُٹھتا، ادھیاتمک لہروں کو پا کر بھگتی کے مارگ پرتب جُٹتا۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    योग्यांचा योग सिद्ध झाल्यावर दिव्य आनंदरसाच्या तरंगांनी त्यांचे कर्म ही उत्कृष्ट होते ॥२॥

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    विषय

    दिव्य आनंदाच्या लहरी काय करतात.

    शब्दार्थ

    (सोमासः) (योगी दिव्यानुभवाचे वर्णन करीत आहे) अहा, या (ऊर्मयः) तरंग रूपाने माझ्या हृदयात उठणाऱ्या आनंदवर्धक लहरी (विषश्चित) बुद्धिवर्धक सून या (सोमासः) परमेश्वरापासून निघताहेत. या लहरी मला (अपः) कर्म करण्यासाठी उत्साह देतात व मला (प्रवयन्ते) उत्कृष्ट मार्गावर जाण्यास प्रवृत्त करतात. (वनानि) अंतरिक्षस्थ जलाला (महिषाः इव) ज्याप्रमाणे मध्य भागात चालणारे देवगण म्हणजे विविध पवन (प्रनयन्ते) वेगाने वाहून नेतात (तद्वत या आनंदलहरी मला उत्तम कर्म करण्याकरिता प्रेरित करतो.) ।। २।।

    भावार्थ

    योगी मनुष्याला योगसिद्धी प्राप्त झाल्यानंतर उटणाऱ्या दिव्य आनंदाच्या लहरीमुळे त्याची कर्मेंदेखील उत्तम होतात।। २।।

    विशेष

    या मंत्रात उपमा अलंकार आहे.।। २।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    மேதாவிகளான சோமர்கள் வனங்களின் எருமைகளைப் (சலங்களில் சாய்ந்துள்ள சக்திகளை) போல் சலங்களை எடுத்துச் செல்லும் அலைகளை முன் எடுத்துச்செல்லுகிறார்கள்.

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