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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 769
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    10

    प्र꣡ सोमा꣢꣯सो मद꣣च्यु꣢तः श्र꣡व꣢से नो म꣣घो꣡ना꣢म् । सु꣣ता꣢ वि꣣द꣡थे꣢ अक्रमुः ॥७६९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । म꣣दच्यु꣡तः꣢ । म꣣द । च्यु꣡तः꣢꣯ । श्र꣡व꣢꣯से । नः꣣ । मघो꣡ना꣢म् । सु꣣ताः꣢ । वि꣣द꣡थे꣢ । अ꣣क्रमुः ॥७६९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमासो मदच्युतः श्रवसे नो मघोनाम् । सुता विदथे अक्रमुः ॥७६९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमासः । मदच्युतः । मद । च्युतः । श्रवसे । नः । मघोनाम् । सुताः । विदथे । अक्रमुः ॥७६९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 769
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ४७७ पर दिव्य आनन्द-रस के विषय में व्याख्या की गयी थी। यहाँ ज्ञानरस का विषय वर्णित करते हैं।

    पदार्थ

    (सुताः) आचार्य के द्वारा उत्पन्न किये गए, (मदच्युतः)आनन्दवर्षक (सोमासः) अध्यात्मविद्या के रस (मघोनाम् नः) हम विद्याधन के धनियों के (श्रवसे) यश के लिए (विदथे) विद्या-यज्ञ में (प्र अक्रमुः) प्रवाहित हो रहे हैं ॥१॥

    भावार्थ

    शिष्यों को चाहिए कि सुयोग्य गुरुओं के पास जाकर उनके पास से सब अध्यात्म विज्ञान ग्रहण करके परमात्मा का साक्षात्कार करें ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४७७)

    विशेष

    ऋषिः—श्यावाश्वः (निर्मल इन्द्रिय घोड़ों वाला)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    पदार्थ

    ४७७ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है।
     

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( १ ) व्याख्या देखो अविकल सं० [४७७]पृ० २४० ।

    टिप्पणी

    ७६९ - 'मघोनः' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - श्यावाश्व: । देवता -सोम:। छन्द: - गायत्री । स्वरः - षड्ज:।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४७७ क्रमाङ्के दिव्यानन्दरसविषये व्याख्याता। अत्र ज्ञानरसविषयमाह।

    पदार्थः

    (सुताः) आचार्येण अभिषुताः, सम्पादिताः (मदच्युतः) आनन्दवर्षिणः (सोमासः) अध्यात्मज्ञानरसाः (मघोनाम् नः) विद्याधनवताम् अस्माकम् (श्रवसे) यशसे (विदथे) विद्यायज्ञे (प्र अक्रमुः) प्रक्रमन्ते प्रवहन्ति ॥१॥

    भावार्थः

    शिष्याः सुयोग्यान् गुरूनुपगम्य तत्सकाशात् सर्वमध्यात्मविज्ञानं गृहीत्वा परमात्मानं साक्षात्कुर्युः ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३२।१, ‘मघोनाम्’ इत्यत्र ‘म॒घोनः॑’ इति पाठः। साम० ४७७।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The pleasure-giving, duly extracted Somas, Come for prosperity, in the Yajna of us, the performers of Homa.

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    Meaning

    May the streams of soma, nectar sweet and exhilarating, distilled and sanctified in yajna, flow for the safety, security and fame of our leading lights of honour, power and excellence. (Rg. 9-32-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मदच्युतः) હર્ષ ટપકાવવા-વરસાવનાર (सुताः) ઉપાસિત (सोमासः) શાન્ત આનંદ સ્વરૂપ પરમાત્મા (न मघोनाम्) અમને અધ્યાત્મયજ્ઞના ઉપાસકોને (श्रवसे) શ્રવણીય યશને માટે જીવનમુક્ત પ્રસિદ્ધિને માટે (विदथे प्राक्रमुः) આનંદના અનુભવનું સ્થાન-મોક્ષમાં પ્રાપ્ત કરાવે છે. (૧)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ: ઉપાસિત કરેલ-ધ્યાન કરેલ, આનંદવર્ષક પરમાત્મા અમને અધ્યાત્મયજ્ઞ કરનારા ઉપાસકોને શ્રવણીય યશ પ્રસિદ્ધિને મુક્તને આનંદ અનુભવ સ્થાન મોક્ષમાં પ્રાપ્ત કરાવે છે. (૧)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    शिष्यांनी सुयोग्य गुरूंजवळ जाऊन त्यांच्याकडून संपूर्ण अध्यात्म विज्ञान ग्रहण करून परमात्म्याचा साक्षात्कार करावा. ॥१॥

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