अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - विद्युत्
छन्दः - चतुष्पाद्विराड् जगती
सूक्तम् - विद्युत सूक्त
22
प्रव॑तो नपा॒न्नम॑ ए॒वास्तु॒ तुभ्यं॒ नम॑स्ते हे॒तये॒ तपु॑षे च कृण्मः। वि॒द्म ते॒ धाम॑ पर॒मं गुहा॒ यत्स॑मु॒द्रे अ॒न्तर्निहि॑तासि॒ नाभिः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप्रऽव॑त: । न॒पा॒त् । नम॑: । ए॒व । अ॒स्तु॒ । तुभ्य॑म् । नम॑: । ते॒ । हे॒तये॑ । तपु॑षे । च॒ । कृ॒ण्म॒: ।वि॒द्म: । ते॒ । धाम॑ । प॒र॒मम् । गुहा॑ । यत् । स॒मु॒द्रे । अ॒न्त: । निऽहि॑ता । अ॒सि॒ । नाभि॑: ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रवतो नपान्नम एवास्तु तुभ्यं नमस्ते हेतये तपुषे च कृण्मः। विद्म ते धाम परमं गुहा यत्समुद्रे अन्तर्निहितासि नाभिः ॥
स्वर रहित पद पाठप्रऽवत: । नपात् । नम: । एव । अस्तु । तुभ्यम् । नम: । ते । हेतये । तपुषे । च । कृण्म: ।विद्म: । ते । धाम । परमम् । गुहा । यत् । समुद्रे । अन्त: । निऽहिता । असि । नाभि: ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मरक्षा के लिये उपदेश।
पदार्थ
हे (प्रवतः) अपने भक्त के (नपात्) न गिरानेवाले ! (तुभ्यम्) तुझको (एव) अवश्य (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (ते) तुझ (हेतये) वज्ररूप को (च) और (तपुषे) तपानेवाले तोप आदि अस्त्ररूप को (नमः) नमस्कार (कृण्मः) हम करते हैं। (यत्) क्योंकि (ते) तेरे (परमम्) बड़े ऊँचे (धाम) धाम [निवास] को (गुहा=गुहायाम्) गुफा में [अपने हृदय और प्रत्येक अगम्य स्थान में] (विद्म) हम जानते हैं। (समुद्रे अन्तः) आकाश के बीच में (नाभिः) बन्ध में रखनेवाली नाभि के समान तू (निहिता) ठहरा हुआ (असि) है ॥३॥
भावार्थ
उस भक्तरक्षक, दुष्टनाशक परमात्मा का (परम धाम) महत्त्व सबके हृदयों में और सब अगम्य स्थानों में वर्तमान है। जैसे (नाभि) सब नाड़ियों को बन्धन में रखकर शरीर के भार को समान तोल कर रखती है, वैसे ही परमेश्वर (समुद्र) अन्तरिक्ष वा आकाश में स्थित मनुष्य आदि प्राणियों और सब पृथिवी, सूर्य्य आदि लोकों का धारण करनेवाला केन्द्र है। विद्वान् लोग उसको माथा टेकते और उसकी महिमा को जानकर संसार में उन्नति करते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−प्र-वतः। नपात्। म० २। हे स्वभक्तस्य न पातयितः। हेतये। ऊतियूतिजूतिसातिहेतिकीर्तयश्च। पा० ३।३।९७। इति हन वधे गतौ च क्तिन्। एत्वम् उदात्तत्वं च निपात्येते। यद्वा हि वर्धने गतौ च−क्तिन् निपातितश्च। हन्यन्तेऽनया शत्रवः। गम्यतेऽनया जयः, वर्द्ध्यते वैश्वर्यम्। हेतिः, वज्रनाम−निघ० ३।२०। वज्राय, वज्ररूपाय। तपुषे। अर्त्तिपॄवपियजितनिधनितपिभ्यो−नित्। उ० २।११७। इति तप ऐश्वर्यसंतापदाहेषु−उसि। दाहकाय अस्त्राय, तद्रूपाय। कृण्मः। कृवि हिंसाकरणयोः−लट्। वयं कुर्मः। विद्मः। विदो लटो वा। पा० ३।४।८३। इति विद ज्ञाने मसो मादेशः। वयं जानीमः। धाम। सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति धा-मनिन्। स्थानम्, गृहम्। प्रभावम्। परमम्। आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।४। इति पर+मा माने-क। उत्कृष्टम्। गुहा। १।८।४। सप्तम्या लुक्। गुहायाम्, गर्ते हृदये। गुहावद् अगम्ये प्रदेशे यत्। यस्मात् कारणात्। समुद्रे। १।३।८। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। इति सम्+उत्+द्रु गतौ−ड प्रत्ययः, यद्वा, स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। सम्+मुद हर्षे−अधिकरणे रक्। यद्वा, सम्+उन्दी क्लेदने-रक्। सागरे, उदधौ, अन्तरिक्षे−निघ० १।३। अन्तः। मध्ये। नि-हिता। दधातेर्हिः। पा० ७।४।४२। इति नि पूर्वात् धाञः−क्त, हिरादेशः। स्थापिता। नाभिः। नहो भश्च। उ० ४।१२६। इति णह बन्धने−इञ् प्रत्ययः ञ्नित्यादिर्नित्यम्। पा० ६।१।१९७। इति आद्युदात्तः। नह्यति बध्नाति नाडीः। स्त्रीलिङ्गता। तुन्दकूपी। नाभिचक्रवत् मध्यस्थः ॥
विषय
प्रेरणा व तपस्या
पदार्थ
१. (प्रवतो नपात्) = उच्च स्थान से न गिरने देनेवाले प्रभो! (तुभ्यम्) = आपके लिए (नमः एव अस्तु) = हमारा नमस्कार हो। (ते) = आपकी (हेतये) = प्रेरणा के लिए (च) = तथा तपुषे तपस्या के लिए नमः कृण्म:-हम नमस्कार करते हैं। हम आपकी प्रेरणा [हि-प्रेरणे] को सनते हैं और जीवन में तपस्या को नष्ट नहीं होने देते तो हम उन्नत-ही-उन्नत होते हैं, किसी प्रकार से हमारी अवनति नहीं होती। इसलिए यह प्रेरणा और तपस्या-दोनों ही वस्तुत: आदरणीय हैं। २. इस प्रेरणा के
अथ प्रथम काण्डम् सुनने व तपस्या को अपनाने से ही हम (ते) = आपके (परम धाम्) = उत्कृष्ट तेज को (विद्य) = जान पाते हैं। (यत्) = जो उत्कृष्ट तेज मलिन अन्त:करणों में द्रष्टव्य नहीं होता। ३. आप (नाभिः) = [णह बन्धने] इस ब्रह्माण्ड के सब लोक-लोकान्तरों को अपने में बाँधनेवाले हैं ('मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव')। आप सूत्रों-के-सूत्र हैं। ये सब लोक आपमें ही ओत-प्रोत हैं। ऐसे आप (समुद्रे) = [स-मुद्] प्रसाद से युक्त अन्तःकरण के (अन्तः) = अन्दर (निहिता असि) = स्थापित हैं। आपका दर्शन निर्मल व प्रसन्न हृदय में ही होता है। प्रसन्न मनवाले लोग ही आपके निवास स्थान हैं।
भावार्थ
हम प्रभु की प्रेरणा को सुनें व तपस्वी बनें। यही प्रभु-दर्शन का मार्ग है।
भाषार्थ
(प्रवतः) प्रकृष्ट मनुष्य का (नपात्) पतन न होने देनेवाले परमेश्वर! (तुभ्यम् ) तेरे लिये (नम एव अस्तु) नमस्कार ही हो, (हेतये) प्रगति और वृद्धि प्राप्त करने के लिये, (तपुषे च) और तपोमय जीवन के लिये, (ते) तेरे लिये (नमः कृण्मः) हम नमस्कार करते हैं। (ते) तेरा ( धाम ) स्थान ( विद्म) हम जानते हैं (परमम् ) जो कि परम श्रेष्ठ है, (यत् गुहा ) जो कि हृदय-गुहा है, (समुद्रे अन्तः) हृदय समुद्र में (नाभिः) वन्धनरूप में (निहिता असि ) तू निहित है।
टिप्पणी
[नम एव-श्रेष्ठ व्यक्ति के लिये तदुचित भेंट दी जाती है। परमेश्वर इतना श्रेष्ठ है कि उसे भेट करने के लिये तदुचित कोई सांसारिक वस्तु नहीं, इसलिये नमस्कार ही भेंट किया है। समुद्रे– हृदय समुद्ररूप है यथा "हृद्यः समुद्रः"। हेतये=हि गतौ वृद्धौ च (स्वादिः) । नाभि की अपेक्षा से "निहिता" स्त्रीलिङ्ग में हैं।]
विषय
विद्युत् शक्ति।
भावार्थ
हे (प्रवतः नपाद् ) प्रपातों से उत्पन्न विद्युत् ( तुभ्यं ) तेरे लिये ( नमः एव अस्तु ) यह वश करने का उपाय है । ( तपुषे ) सन्तापकारी व अग्निस्वरूप ( हेतये ) आघातकारी इस तेरी शक्ति का ( नमः ) उपयोग हम ( कृण्मः ) करते हैं ( ते ) तेरे ( परमं ) सबसे उत्तम ( धाम ) तेज को हम (विद्म) जानते हैं ( यत् ) कि ( गुहा ) तेरे भीतर छिपा हुआ है ( समुद्रे ) अन्तरिक्ष के ( अन्तः ) भीतर ( निहिता ) तू स्थापित है और तूं ( नामिः ) मेघ को एकत्र बांधने वाली नाभिरूप है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वंगिराः। ऋषिः। विद्युत् देवता। १, २ अनुष्टुप् छन्दः । ३ चतुष्पद विराड् जगती । ४ त्रिष्टुप् परा बृहतीगर्भा पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Electric Energy
Meaning
Homage to you, energy of the fall and flood, homage to the force of your strike and the heat we create and collect. We know too the highest and ultimate source, the origin, where you lie hidden in the depth of spatial ocean at the centre of the universe whence flows the energy and the very being of existence.
Translation
O never falling from the moral heights, let our homage be to you without fail. We pay homage to your weapon as well as to your influence. We know your supreme abode, the cave that is hidden in the centre of the ocean.
Translation
We express the words of appreciation to electricity created: from flow of water and also appreciate its power in the form of lightening which is fiery with flames. We know central recess where it is produced and know that it lies hidden in the sea (as submarine fire) and is the nave of clouds.
Translation
Yea, homage be to Thee, O God, Who never allowest a devotee deviate from the path of Righteousness. Homage we pay to Thy instrument of punishment and Thy splendour. We know full well, that the heart is Thy secret and sublimest home. Thou art the Navel of the ocean of atmosphere.
Footnote
Just as navel controls all the arteries in the body, so does God control all luminous bodies like the Sun, Moon and other planets in space.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−प्र-वतः। नपात्। म० २। हे स्वभक्तस्य न पातयितः। हेतये। ऊतियूतिजूतिसातिहेतिकीर्तयश्च। पा० ३।३।९७। इति हन वधे गतौ च क्तिन्। एत्वम् उदात्तत्वं च निपात्येते। यद्वा हि वर्धने गतौ च−क्तिन् निपातितश्च। हन्यन्तेऽनया शत्रवः। गम्यतेऽनया जयः, वर्द्ध्यते वैश्वर्यम्। हेतिः, वज्रनाम−निघ० ३।२०। वज्राय, वज्ररूपाय। तपुषे। अर्त्तिपॄवपियजितनिधनितपिभ्यो−नित्। उ० २।११७। इति तप ऐश्वर्यसंतापदाहेषु−उसि। दाहकाय अस्त्राय, तद्रूपाय। कृण्मः। कृवि हिंसाकरणयोः−लट्। वयं कुर्मः। विद्मः। विदो लटो वा। पा० ३।४।८३। इति विद ज्ञाने मसो मादेशः। वयं जानीमः। धाम। सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति धा-मनिन्। स्थानम्, गृहम्। प्रभावम्। परमम्। आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।४। इति पर+मा माने-क। उत्कृष्टम्। गुहा। १।८।४। सप्तम्या लुक्। गुहायाम्, गर्ते हृदये। गुहावद् अगम्ये प्रदेशे यत्। यस्मात् कारणात्। समुद्रे। १।३।८। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। इति सम्+उत्+द्रु गतौ−ड प्रत्ययः, यद्वा, स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। सम्+मुद हर्षे−अधिकरणे रक्। यद्वा, सम्+उन्दी क्लेदने-रक्। सागरे, उदधौ, अन्तरिक्षे−निघ० १।३। अन्तः। मध्ये। नि-हिता। दधातेर्हिः। पा० ७।४।४२। इति नि पूर्वात् धाञः−क्त, हिरादेशः। स्थापिता। नाभिः। नहो भश्च। उ० ४।१२६। इति णह बन्धने−इञ् प्रत्ययः ञ्नित्यादिर्नित्यम्। पा० ६।१।१९७। इति आद्युदात्तः। नह्यति बध्नाति नाडीः। स्त्रीलिङ्गता। तुन्दकूपी। नाभिचक्रवत् मध्यस्थः ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
হে (প্রবতঃ) ভক্তগণের (নপাৎ) উন্নতির সহায়ক! (তুভ্যম্) তোমাকে (এব) ই (নমঃ) নমস্কার (অদ্ভু) হউক। (হেতয়ে) বজ্রতুল্য শক্তিধর (তে) তোমাকে (চ) এবং (তপুষে) তাপযুক্ত তোপ তুল্য তীব্র তোমাকে (নমঃ) নমস্কার (কৃণ্মঃ) করি। (য়ৎ) কেননা (তে) তোমার (পরমম্) পরম (ধাম) ধামকে (গুহা) গুহাতে (বিদ্ম) আমরা জানি (সমুদ্রে অন্তঃ) আকাশের মধ্যে (নাভিঃ) নাভি তুল্য (নিহিতা) অধিষ্ঠিত (অসি) রহিয়াছে।।
भावार्थ
হে ভক্তের উন্নতি পতের চির সহায়ক! তোমাকে নমস্কার । তুমি বজ্রের ন্যায় শক্তিধর এবং তোপের ন্যায় ক্ষিপ্র। প্রত্যেক অগমাস্থানেও তুমি বাস করিতেছ ইহা আমরা জানি। আকাশের ন্যায় সূক্ষ্ম স্থানেও আশ্রয় স্থল নাভি সদৃশ তুমি অধিষ্ঠিত রহিয়াছ।।
मन्त्र (बांग्ला)
প্রবতো নপাৎ নম এবাস্তু তুভ্যং নমস্তে হেতয়ে তপুষে চ কৃণ্মঃ। বিদ্ম তে ধাম পরমং গুহা য়ৎ সমুদ্রে অন্তর্নিহিতাসি নাভিঃ।।
ऋषि | देवता | छन्द
ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বিদ্যুৎ। চতুষ্পাদ্ বিরাড্ জগতী
मन्त्र विषय
(আত্মরক্ষোপদেশঃ) আত্মরক্ষার জন্য উপদেশ
भाषार्थ
হে (প্রবতঃ) নিজের ভক্তের (নপাৎ) না পতনকারী ! (তুভ্যম্) আপনাকে (এব) অবশ্য (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক, (তে) আপনার (হেতয়ে) বজ্ররূপকে (চ) এবং (তপুষে) তপ্তকারী তোপ আদি অস্ত্ররূপকে (নমঃ) নমস্কার (কৃণ্মঃ) আমরা করি। (যৎ) কারণ (তে) আপনার (পরমম্) পরম (ধাম) ধাম [নিবাস]কে (গুহা=গুহায়াম্) গুহায় [নিজের হৃদয় ও প্রত্যেক অগম্য স্থানে] (বিদ্ম) আমরা জানি। (সমুদ্রে অন্তঃ) আকাশের মধ্যে (নাভিঃ) নাভির সমান আপনি (নিহিতা) স্থিত (অসি) রয়েছেন ॥৩॥
भावार्थ
সেই ভক্তরক্ষক, দুষ্টনাশক পরমাত্মার (পরম ধাম) মহত্ত্ব সকলের হৃদয়ে এবং সমস্ত অগম্য স্থানে বর্তমান রয়েছেন। যেভাবে (নাভি) সমস্ত নাড়িকে বন্ধনে রেখে শরীরের ভারসাম্য বজায় রাখে, সেভাবেই পরমেশ্বর (সমুদ্র) অন্তরিক্ষ বা আকাশে স্থিত মনুষ্য আদি প্রাণীদের এবং সমস্ত পৃথিবী, সূর্য্য আদি লোকেদের ধারণ করার কেন্দ্র। বিদ্বানগণ উনার প্রতি মাথা নত করে এবং উনার মহিমাকে জেনে/জ্ঞাত হয়ে সংসারে উন্নতি করে ॥৩॥
भाषार्थ
(প্রবতঃ) প্রকৃষ্ট মনুষ্যের (নপাৎ) ধারণকারী পরমেশ্বর! (তুভ্যম্) তোমার জন্য (নম এব অস্তু) নমস্কারই হোক, (হেতয়ে) প্রগতি ও বৃদ্ধি প্রাপ্ত করার জন্য, (তপুষে চ) এবং তপোময় জীবনের জন্য, (তে) তোমার জন্য (নমঃ কৃণ্মঃ) আমরা নমস্কার করি। (তে) তোমার (ধাম) স্থান (বিদ্ম) আমরা জানি (পরমম্) যা পরম শ্রেষ্ঠ, (যৎ গুহা) যা হৃদয়-গুহা, (সমুদ্রে অন্তঃ) হৃদয় সমুদ্রে (নাভিঃ) বন্ধনরূপে (নিহিতা অসি) তুমি নিহিত রয়েছো।
टिप्पणी
[নম এব=শ্রেষ্ঠ ব্যক্তির জন্য তদুচিত উপহার দেওয়া হয়। পরমেশ্বর এতই শ্রেষ্ঠ যে উনাকে উপহার দেওয়ার জন্য তদুচিত কোনো সাংসারিক বস্তু নেই, এইজন্যই নমস্কারই দেওয়া হয়েছে। সমুদ্রে–হৃদয় হল সমুদ্ররূপ যথা "হৃদ্যঃ সমুদ্রঃ"। হেতয়ে=হি গতৌ বৃদ্ধৌ চ (স্বাদিঃ)। নাভির আবশ্যকতায় "নিহিতা" স্ত্রীলিঙ্গে আছে।]
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