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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
    ऋषिः - चातनः देवता - वरुणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुबाधन सूक्त
    88

    इ॒दं विष्क॑न्धं सहत इ॒दं बा॑धते अ॒त्त्रिणः॑। अ॒नेन॒ विश्वा॑ ससहे॒ या जा॒तानि॑ पिशा॒च्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम् । विऽस्क॑न्धम् । स॒ह॒ते॒ । इ॒दम् । बा॒ध॒ते॒ । अ॒त्त्रिण॑: । अ॒नेन॑ । विश्वा॑ । स॒स॒हे॒ । या । जा॒तानि॑ । पि॒शा॒च्या: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं विष्कन्धं सहत इदं बाधते अत्त्रिणः। अनेन विश्वा ससहे या जातानि पिशाच्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम् । विऽस्कन्धम् । सहते । इदम् । बाधते । अत्त्रिण: । अनेन । विश्वा । ससहे । या । जातानि । पिशाच्या: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विघ्न के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (इदम्) यह [सामर्थ्य] (विष्कन्धम्) विघ्न को (सहते) जीतता है और (इदम्) यह (अत्त्त्रिणः) उदरपोषक खाउओं को (बाधते) हटाता है। (अनेन) इससे (विश्वा=विश्वानि) उन सब दुःखों को (ससहे) मैं जीतता हूँ (या=यानि) जो (पिशाच्याः) मांस खानेहारी (कुवासना) से (जातानि) उत्पन्न हैं ॥३॥

    भावार्थ

    दूरदर्शी पुरुषार्थी मनुष्य उत्तम ज्ञान के सामर्थ्य से अपने क्लेशों के कारण को जानते और कुवासनाओं के कुसंस्कारों को अपने हृदय में नहीं जमने देते ॥३॥ भगवान् पतञ्जलि जी ने कहा है−योगदर्शन पाद २ सूत्र १६ ॥हेयं दुःखमनागतम् ॥न आया हुआ [परन्तु आनेवाला] दुःख हटाना चाहिये ॥

    टिप्पणी

    ३−इदम्। सीसम्। विष्कन्धम्। वि विकारे+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः−अच्। दस्य धः। वेः स्कन्देरनिष्ठायाम्। प० ८।३।७३। इति षत्त्वम् यद्वा, विष्क हिंसायाम्−क+धाञ्-ड। हिंसां दधातीति। विशेषेण शोषकम्। विघ्नम् सहते। षह अभिभवे। अभिभवति जयति। बाधते। बाध प्रतिबन्धे प्रतिरोधे−लट्। प्रतिबध्नाति, निवारयति। अत्त्त्रिणः। म० १। अदनस्वभावान् राक्षसान्। अनेन। सीसेन। ससहे। बहुलं छन्दसि। पा० २।४।७६। इति षह अभिभवे लटि शपः श्लुः। अहम् अभिभवामि। जातानि। जनी प्रादुर्भावे−कर्त्तरि क्त। उत्पन्नानि। अपत्यरूपाणि दुष्टाचरणानि। पिशाच्याः। कर्मण्यण्। पा० ३।२।१। इति पिशित+अश भक्षणे−अण्। पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्। पा० ६।३।१०९। इति रूपसिद्धिः। पिशितं मांसमश्नातीति पिशाचः। अथवा। इगपुधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति पिश अवयवे-क। इति पिशः पिशितम्। पुनः। पिश+आङ्+चम भक्षणे−ड प्रत्ययः। पिशं पिशितं मांसम् आचमति सम्यग् भक्षयतीति पिशाचः। प्राणिनां मांसभक्षी पिशिताशी। ततो ङीप्। मांसभक्षिण्याः। राक्षसीरूपायाः कुवासनायाः ॥

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    विषय

    विष्कन्ध व अत्रि का मर्षण

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार राजा की ओर से लाइसेंस के द्वारा प्राप्त हुई (इदम्) = यह गोली (विष्कन्धम्) = [विष्कम्भम्] मार्ग में रोककर लूटनेवाले [Highway robbers] परिपन्थियों को (सहते) = पराभूत करती है। (इदम्) = यह (अत्रिण:) = औरों को खा-जानेवाले दैत्यों को (बाधते) = पीड़ित करती है और (अनेन) = इस गोली से उन (विश्वा) = सबका (ससहे) = पराभव करता हूँ (य:) = जोकि (पिशाच्याः जातानि) = पिशाची के सन्तान है, अर्थात् अत्यन्त पिशाचवृत्ति के हैं। औरों का मांस खानेवाले पिशाच हैं जिनकी यह वृत्ति है, उन्हें समाप्त करना ही ठीक हैं। २. चोर आदिकों के खतरे से युक्त स्थान में रहनेवालों को राजा बन्दुक आदि रखने की स्वीकृति दे देता है और वे उसका प्रयोग विष्कन्धों, अत्रियों व पिशाचों के नाश में ही करते हैं।

    भावार्थ

    सीसे की गोली से मार्गप्रतिरोधक [डाकू], चोर व पिशाचों का संहार करना अभीष्ट है।

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    भाषार्थ

    (इदम्) यह सीस (विष्कन्धम्) गति के प्रतिवन्धक अर्थात् विघ्न करनेवाले का (सहते) पराभव करता है, (इदम् ) यह सीस (अत्त्रिणः) परभक्षिकों का (बांधते) बद्ध करता है, हनन करता है । अनेन) इस सीस द्वारा (विश्वा=विश्वानि ) सबको (ससहे) मैं पराभूत करता हूँ (या = यानि) जितनी कि (पिशाच्चा:) पिशाचों की (जातानि) जातियां हैं, उत्पत्तियां हैं।

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    विषय

    दुष्टों के नाश का उपाय।

    भावार्थ

    ( इदं ) यह सीसा ( विष्कन्धं ) विशेष सेना के दस्ते को भी ( सहते ) परास्त करता है, ( इदं ) यह सीसा ( अत्रिणः ) ( विनाशक डाकू, लूटेरों, प्रजा का प्राण धन खाजाने वालों को भी ( बाधते ) नष्ट करता है ( अनेन ) इसके बलपर ( पिशाच्याः ) पिशाची अर्थात पिशाच स्वभाव वाली आक्रमण कारी ( या ) जो २ ( जातानि ) जातियां हैं उन ( विश्वा ) सबको ( ससहे ) दबा देने में समर्थ होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः । अग्नीन्द्रो, वरुणः, सीसश्च देवताः। १-३ अनुष्टुभः ४ ककुम्मती अनुष्टुप्। चतुऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elimination of Thieves

    Meaning

    Lead (bullet) challenges and destroys hosts of enemies, it stems, throws off and destroys ogres, by this, man can control and subdue all the demonic forces that arise in society.

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    Subject

    Sisam-Lead

    Translation

    This (lead) stands against all disturbances. This keeps in check the vagrants. With this I resist all those who are born as blood suckers.

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    Translation

    This lead over-comes a contingent of army, it drives away the dacoits and thieves; and by the means of it we over throw all who are the descendents of wicked race.

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    Translation

    Lead overcomes the squadron of a troop, this drives the voracious fiends away by means of this have I overthrown all the diabolical brood.

    Footnote

    Lead means the lead bullets. This means lead.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−इदम्। सीसम्। विष्कन्धम्। वि विकारे+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः−अच्। दस्य धः। वेः स्कन्देरनिष्ठायाम्। प० ८।३।७३। इति षत्त्वम् यद्वा, विष्क हिंसायाम्−क+धाञ्-ड। हिंसां दधातीति। विशेषेण शोषकम्। विघ्नम् सहते। षह अभिभवे। अभिभवति जयति। बाधते। बाध प्रतिबन्धे प्रतिरोधे−लट्। प्रतिबध्नाति, निवारयति। अत्त्त्रिणः। म० १। अदनस्वभावान् राक्षसान्। अनेन। सीसेन। ससहे। बहुलं छन्दसि। पा० २।४।७६। इति षह अभिभवे लटि शपः श्लुः। अहम् अभिभवामि। जातानि। जनी प्रादुर्भावे−कर्त्तरि क्त। उत्पन्नानि। अपत्यरूपाणि दुष्टाचरणानि। पिशाच्याः। कर्मण्यण्। पा० ३।२।१। इति पिशित+अश भक्षणे−अण्। पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्। पा० ६।३।१०९। इति रूपसिद्धिः। पिशितं मांसमश्नातीति पिशाचः। अथवा। इगपुधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति पिश अवयवे-क। इति पिशः पिशितम्। पुनः। पिश+आङ्+चम भक्षणे−ड प्रत्ययः। पिशं पिशितं मांसम् आचमति सम्यग् भक्षयतीति पिशाचः। प्राणिनां मांसभक्षी पिशिताशी। ततो ङीप्। मांसभक्षिण्याः। राक्षसीरूपायाः कुवासनायाः ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (ইদং) ইহা (বিষ্কন্ধং) বিঘ্নকে (সহতে) জয় করে । (ইদং) ইহা (অন্ত্রিণঃ) উদর সেবীকে (বাধ্যতে) বাধা দান করে। (অনেন) ইহা দ্বারা (বিশ্বা) সব দুঃখকে (সসহে) আমি জয় করি (য়া) যাহা (পিশাচ্যাঃ) মাংস ভোজনের কুবাসনা হইতে (জাতানি) উৎপন্ন হয়।। ৩।। শব্দ জ্ঞান-‘বিষ্কন্ধং’ বিস্ক হিংসায়াং ক+দাঞ-ভ। হিংসা দবাতীতি। ‘পিশাচ্যাঃ' পিশং পিশিতং মাংসং আচমতি সম্যগ্ ভক্ষয়তীতি পিশাচঃ।।

    भावार्थ

    পরমেশ্বর প্রদত্ত এই সামর্থ বিঘ্নকে জয় করে।ইহা উদর সেবীর স্বার্থে বাধা প্রদান করে। মাংস ভোজনের কুবাসনা হইতে রয সব বিঘ্ন উৎপন্ন হয় আমি সে সব জয় করি।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    ইদং বিষ্কন্ধং সহত ইদং বাধতে অন্ত্ৰিণঃ । অনেন বিশ্বা সসহে য়া জাতানি পিশাচ্যাঃ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    চাতনঃ। সীসম্। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (বিঘ্ননাশনোপদেশঃ) বিঘ্ন নাশের উপদেশ।

    भाषार्थ

    (ইদম্) এই [সামর্থ্য] (বিষ্কন্ধম্) বিঘ্নকে (সহতে) জয় করে এবং (ইদম্) এই [সামর্থ্য] (অত্ত্ত্রিণঃ) উদরপোষক খাদকদের (বাধতে) দূর করে। (অনেন) এর দ্বারা (বিশ্বা=বিশ্বানি) সেই সব দুঃখসমূহকে (সসহে) আমি জয় করি (যা=যানি) যে (পিশাচ্যাঃ) মাংস ভক্ষণকারী [কুবাসনা] থেকে (জাতানি) উৎপন্ন হয়॥৩॥

    भावार्थ

    দূরদর্শী পুরুষার্থী মনুষ্য উত্তম জ্ঞানের সামর্থ্য দ্বারা নিজের ক্লেশসমূহের কারণকে জানেন এবং কুবাসনাসমূহের কুসংস্কারকে নিজের হৃদয়ে স্থায়ী হতে দেয় না॥৩॥ ভগবান পতঞ্জলি বলেন−যোগদর্শন পাদ ২ সূত্র ১৬॥ হেয়ং দুঃখমনাগতম্॥ অনাগত [কিন্তু আসন্ন] দুঃখ দূর করা উচিত ॥

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    भाषार्थ

    (ইদম্) এই সীসা (বিষ্কন্ধম্) গতির প্রতিবন্ধক অর্থাৎ বিঘ্ন সৃষ্টিকারীদের/উৎপন্নকারীদের (সহতে) পরাজয়/তিরষ্কার করে, (ইদম্) এই সীসা (অত্রিণঃ) পরভোজীদের (বাধতে) বদ্ধ করে, হনন করে। (অনেন) এই সীসা দ্বারা (বিশ্বা=বিশ্বানি) সকলকে (সসহে) আমি পরাজিত করি (যা=যানি) যত (পিশাচ্যাঃ) পিশাচদের (জাতানি) জাতি আছে, উৎপত্তি রয়েছে।

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