अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 20
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
20
शि॑तिप॒दी सं प॑तत्व॒मित्रा॑नाम॒मूः सिचः॑। मुह्य॑न्त्व॒द्यामूः सेना॑ अ॒मित्रा॑णां न्यर्बुदे ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒ति॒ऽप॒दी । सम् । प॒त॒तु॒ । अ॒मित्रा॑णाम् । अ॒मू: । सिच॑: । मुह्य॑न्तु । अ॒द्य । अ॒मू: । सेना॑: । अ॒मित्रा॑णाम् । नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒ ॥१२.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
शितिपदी सं पतत्वमित्रानाममूः सिचः। मुह्यन्त्वद्यामूः सेना अमित्राणां न्यर्बुदे ॥
स्वर रहित पद पाठशितिऽपदी । सम् । पततु । अमित्राणाम् । अमू: । सिच: । मुह्यन्तु । अद्य । अमू: । सेना: । अमित्राणाम् । निऽअर्बुदे ॥१२.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(शितिपदी) उजाले और अन्धकार में गतिवाली [सेना] (अमित्राणाम्) वैरियों की (अमूः) उन (सिचः) सींचनेवाली [सहायक सेनाओं] पर (सं पततु) टूट पड़े। (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! [नित्य पुरुषार्थी राजन्] (अद्य) आज (अमित्राणाम्) वैरियों की (अमूः) वे (सेनाः) सेनाएँ (मुह्यन्तु) अचेत हो जावें ॥२०॥
भावार्थ
चतुर सेनापति शत्रुओं की सहायक सेनाओं को तुरन्त रोककर व्याकुल कर देवे ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(शितिपदी) म० ६। प्रकाशान्धकारमध्यगतिशीला सेना (सं पततु) झटिति प्राप्नोतु (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (अमूः) दृश्यमानाः (सिचः) अ० ११।९।१८। सेचनशीलाः। वर्धयित्रीः सेनाः (मुह्यन्तु) मूढा भवन्तु (अद्य) अस्मिन् दिने (अमूः) (सेनाः) (अमित्राणाम्) (न्यर्बुदे) अ० ११।९।४। हे नित्यपुरुषार्थिन् राजन् ॥
विषय
शत्रुसैन्य सम्मोहन
पदार्थ
१. (शितिपदी) = [शि to sharpen] शीघ्र व तीव्र गतिवाली हमारी सेना (संपततु) = शत्रुसैन्य पर टूट पड़े। (अमित्राणाम्) = शत्रुओं की (अमू:) = वे दूरस्थ (सिच:) = सेनापक्तियाँ हमारी सेना द्वारा आक्रान्त की जाएँ । (अद्य) = आज (अमित्राणाम्) = शत्रुओं की (अमू:) = सेना-वे सेनाएँ, हे (न्यर्बुदे) = निश्चय से शत्रुओं पर धावा बोलनेवाले सेनापते! (मुह्यन्तु) = हमारी सेनाओं के आक्रमण से मुढ़ हो जाएँ।
भावार्थ
हमारी सेनाओं के प्रबल आक्रमण से शत्रुसैन्य सम्मूढ़ हो जाए।
भाषार्थ
(शितिपदी) काले लोहे के पैरों वाली शरव्या (६), (अमित्राणाम्) शत्रुओं की (अमूः सिचः) उन सीमावर्ती सेनाओं पर (संपततु) संपात करे। (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! (११।९।४), (अमित्राणाम्) शत्रुओं की (अमुः सेनाः) वे सेनाएँ (अद्य) आज (मुह्यन्तु) कर्तव्याकर्तव्य विवेक से रहित हो जांय।
टिप्पणी
[शितिपदी = शरव्या, तोप ? (६)। न्यर्बुदि (११।९।४)। सिचः,(११।९।१८)।]
विषय
शत्रुसेना का विजय।
भावार्थ
(शितिपदी) श्वेत पद, स्वरूप वाली अर्थात् विद्युत् शक्ति (अमित्राणां) शत्रु के (अमूः) उन दूर स्थित (सिचः) सेना की पंक्तियों की तरफ़ (संपततु) वेग से जाय। हे (न्यर्बुदे) न्यर्बुदे ! (अद्य) शीघ्र ही (अमूः अमित्राणां सेनाः) उन शत्रुओं की सेनाएं (मुह्यन्तु) विमूढ़ हो जायं।
टिप्पणी
‘अमृः शुत्रः’ इति सायणाभिमतः, क्वचित।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(न्यर्बुदे) हे स्फोटकास्त्र प्रयोग या उसका प्रयोक्ता सेनानायक ! तू (शितिपदी) तीक्ष्ण पत्र वाली अस्त्रशक्ति (अमि त्राणाम् अभूः सिचः) शत्रुओं की उन सेनाओं पर (सम्पनतु) सम्पतन करें- गिरें (अमित्राणाम् अमू:-सेना:) शत्रुओं की वे सेनाएं (द्अय मुह्यन्तु) श्रव मूर्छित हो जावें ॥२०॥
विशेष
ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Commander, let your force, moving forward in light as well as in darkness on wheels of steel, fall upon the enemy’s supporting forces, let the enemy forces then be bewildered and stupefied.
Translation
Let the white-footed one (f.) fall upon (? sam-pat) yonder armies of our enemies be confounded today, O Nyarbudi.
Translation
Let the electrical device fall in these hosts of hostile men. O Nyarbudi let hosts of foemen bewildered and mazed.
Translation
May this army that marches in day-time and during night, fall upon those wings of our opponents' army. Amazed and bewildered be those bands of foes this day, O ever-enterprising king!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(शितिपदी) म० ६। प्रकाशान्धकारमध्यगतिशीला सेना (सं पततु) झटिति प्राप्नोतु (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (अमूः) दृश्यमानाः (सिचः) अ० ११।९।१८। सेचनशीलाः। वर्धयित्रीः सेनाः (मुह्यन्तु) मूढा भवन्तु (अद्य) अस्मिन् दिने (अमूः) (सेनाः) (अमित्राणाम्) (न्यर्बुदे) अ० ११।९।४। हे नित्यपुरुषार्थिन् राजन् ॥
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