अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 8
ऋषिः - दुःस्वप्ननासन
देवता - प्राजापत्या बृहती
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
28
इ॒दम॒हमा॑मुष्याय॒णे॒मुष्याः॑ पु॒त्रे दुः॒ष्वप्न्यं॑ मृजे ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । अ॒हम् । आ॒मु॒ष्या॒य॒णे । अ॒मुष्या॑: । पु॒त्रे । दु॒:ऽस्वप्न्य॑म् । मृ॒जे॒ ॥७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
इदमहमामुष्यायणेमुष्याः पुत्रे दुःष्वप्न्यं मृजे ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । अहम् । आमुष्यायणे । अमुष्या: । पुत्रे । दु:ऽस्वप्न्यम् । मृजे ॥७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(इदम्) अब (अहम्) मैं (आमुष्यायणे) अमुक पुरुष के सन्तान, (अमुष्याः) अमुक स्त्री के (पुत्रे) [कुमार्गी] पुत्र पर (दुःष्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्न [आलस्य आदि] में उठे कुविचारको (मृजे) शोधता हूँ ॥८॥
भावार्थ
धर्मात्मा दूरदर्शीलोग कुमार्गी जन के कुल, माता, पिता आदि का पता लगाकर यथोचित दण्ड देवें ॥७, ८॥
टिप्पणी
८−(इदम्) इदानीम् (अहम्) धर्मात्मा (आमुष्यायणे) अमुष्य पुरुषस्य सन्ताने (अमुष्याः) अमुकस्त्रियाः (पुत्रे) कुमार्गिणि सन्ताने (दुःष्वप्न्यम्)दुष्टस्वप्ने भवं कुविचारम् (मृजे) शोधयामि ॥
विषय
सुयामन्+चाक्षुष
पदार्थ
१. मनुष्य को चाहिए कि वह द्वेष की भावना से ऊपर उठकर आत्महित का साधन करे। इस साधक को सम्बोधन करते हुए प्रभु कहते हैं कि है (सुयामन्) = सम्यक् नियमन करनेवाले। और अतएव (चाक्षुष) = आत्मनिरीक्षण करनेवाले पुरुष! २. (अहम्) = मैं (आमुष्यायणे) = [well-born] तेरे-जैसे कुलीन पुरुष के जीवन में (अमुष्याः पुत्रे) = एक कुलीन माता के पुत्र में (इदं दुःष्वप्न्यम्) = इस दुष्ट स्वप्न के कारणभूत रोग, अशक्ति व अनैश्वर्य आदि को (मृजे) = शुद्धकर डालता हूँ। इन अभूति आदि को नष्ट कर देता है।
भावार्थ
प्रभु अपने पुत्र जीव को इस रूप में सम्बोधित करते हैं कि तूने जीवन का नियमन करना है और आत्मनिरीक्षण करनेवाला बनना है। तू अपने को कुलीन प्रमाणित करना। माता के सुपुत्र तुझमें सब दुष्ट स्वप्नों के कारणभूत अभूति आदि को मैं विनष्ट किये देता है।
भाषार्थ
(अहम्) मैं राजा या न्यायधीश (आमुष्यायणे) अमुकगोत्र और अमुक पिता के, तथा (अमुष्याः) उस माता के (पुत्रे) पुत्र में वर्तमान (इदम्, दुष्वप्न्यम्) इस दुष्वप्न्य को (मृजे) दण्ड विधान की परिमार्जन विधि१ द्वारा परिमार्जित करता हूं।
टिप्पणी
[राजा या न्यायाधीश जब किसी अपराधी को दण्ड देने लगे तो वह सुनियन्ता तथा सर्वद्रष्टा परमेश्वर का ध्यान कर दण्ड की व्यवस्था करे, पक्षपात या बदला लेने आदि कारणों से प्रेरित होकर दण्ड की व्यवस्था न करे। तथा दण्ड की व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होना चाहिये अपराधी की शुद्धि। दुष्वप्न्य दो प्रकार के होते हैं, - जाग्रद् दुष्वप्न्य तथा. स्वप्ने दुष्वप्न्यम् (सूक्त ६, मन्त्र ९)। 'जाग्रद् दुष्वप्न्य' है जाग्रद् अवस्था में किये गए द्वेष आदि के कुविचार, कुसंकल्प। राजव्यवस्था जाग्रद्-दुष्वप्न्य को नियन्त्रित करती है। इस द्वारा जब व्यक्ति शुद्ध हो जाते हैं तो स्वप्नावस्था के दुष्वप्न्य भी उन के धुलने लग जाते हैं। अपराधी के पहिचान के लिये उस के गोत्र (जात), पिता, तथा माता का नाम साथ होना चाहिये। वर्तमान में परिचय के लिये माता का नाम आवश्यक नहीं समझा जाता। माता का नाम साथ होने का वैदिक विधान, माता की वैदिक सामाजिक स्थिति का सूचक है] [१. यह प्रायश्चित तथा व्रत विधान आदि की विधि है।]
विषय
शत्रुदमन।
भावार्थ
हे (सुयामन्) उत्तम रीति से नियम व्यवस्था करने हारे राजन् ! हे चाक्षुष ! अपराधियों के अपराधों को भली प्रकार देखनेहारे ! (अहम्) मैं आथर्वण पुरोहित, न्यायाधीश. (इदम्) यह इस प्रकार से (अमुष्यायणे) अमुक गोत्र के (अमुष्याः पुत्रे) अमुक स्त्री के पुत्र पर (दुःस्वप्न्यं) दुःखप्रद मृत्यु दण्ड का (मृजे) प्रयोग करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Here, through this dispensation, do I cleanse and wash away the evil dream present in the son of such and such father and such and such mother.
Translation
I, hereby, send an evil dream unto him, descendant of so and so, the son of so and so mother.
Translation
Here I wipe away the evil dream on the descendent of such-a one, son of such-a-woman.
Translation
I punish the offender for idleness, the descendant of such a family, son of such a woman.
Footnote
I: The Lord of justice.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(इदम्) इदानीम् (अहम्) धर्मात्मा (आमुष्यायणे) अमुष्य पुरुषस्य सन्ताने (अमुष्याः) अमुकस्त्रियाः (पुत्रे) कुमार्गिणि सन्ताने (दुःष्वप्न्यम्)दुष्टस्वप्ने भवं कुविचारम् (मृजे) शोधयामि ॥
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