अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
ऋषिः - अप्रतिरथः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - एकवीर सूक्त
18
स इषु॑हस्तैः॒ स नि॑ष॒ङ्गिभि॑र्व॒शी संस्र॑ष्टा॒ स युध॒ इन्द्रो॑ ग॒णेन॑। सं॑सृष्ट॒जित्सो॑म॒पा बा॑हुश॒र्ध्युग्रध॑न्वा॒ प्रति॑हिताभि॒रस्ता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसः। इषु॑ऽहस्तैः। सः। नि॒ष॒ङ्गिऽभिः॑। व॒शी। सम्ऽस्र॑ष्टा । सः। युधः॑। इन्द्रः॑। ग॒णेन॑। सं॒सृ॒ष्ट॒ऽजित्। सो॒म॒ऽपाः। बा॒हु॒ऽश॒र्धी। उ॒ग्रऽध॑न्वा। प्रति॑ऽहिताभिः। अ॑स्ता ॥१३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
स इषुहस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी संस्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन। संसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्युग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥
स्वर रहित पद पाठसः। इषुऽहस्तैः। सः। निषङ्गिऽभिः। वशी। सम्ऽस्रष्टा । सः। युधः। इन्द्रः। गणेन। संसृष्टऽजित्। सोमऽपाः। बाहुऽशर्धी। उग्रऽधन्वा। प्रतिऽहिताभिः। अस्ता ॥१३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सेनापति के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(सः सः) वही (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी सेनापति] (इषुहस्तैः) तीर [अस्त्र-शस्त्र] हाथों में रखनेवालों, और (निषङ्गिभिः) खड्गवालों के साथ (वशी) वश में करनेवाला, (सः) वही (गणेन) अपने गण [अधिकारी लोगों] सहित (युधः) [अपने] योद्धाओं को (संस्रष्टा) एकत्र करनेवाला, (संसृष्टजित्) एकत्र हुए [शत्रुओं] को जीतनेवाला, (सोमपाः) ऐश्वर्य की रक्षा करनेवाला, (बाहुशर्धी) भुजाओं में बल रखनेवाला, (उग्रधन्वा) प्रचण्ड धनुषवाला, (प्रतिहिताभिः) सन्मुख ठहरायी हुई [सेनाओं] से (अस्ता) [वैरियों का] गिरानेवाला है ॥४॥
भावार्थ
जो युद्धकुशल मनुष्य अपनी वीर सेनाओं को व्यूहरचना से खड़ा करके शत्रुओं को मारने में समर्थ हो, वही सेनाध्यक्ष बनाया जावे ॥४॥
टिप्पणी
४−(सः) (इषुहस्तैः) शस्त्रपाणिभिः (सः) (निषङ्गिभिः) खड्गधारिभिः (वशी) वशयिता (संस्रष्टा) संयोजकः (सः) (युधः) स्वयोद्धॄन् (इन्द्रः) महाप्रतापी सेनापतिः (गणेन) अधिकारिसमूहेन (संसृष्टजित्) संयुक्तानां शत्रूणां जेता (सोमपाः) ऐश्वर्यस्य पाता रक्षकः (बाहुशर्धी) बाह्वोः शर्धो बलं यस्य सः (उग्रधन्वा) प्रचण्डधनुर्धरः (प्रतिहिताभिः) प्रत्यक्षेण व्यूहेन स्थिताभिः सेनाभिः (अस्ता) शत्रूणां क्षेप्ता मारयिता ॥
विषय
असंग शस्त्रेण दृढेन छित्त्वा
पदार्थ
१. (सः) = वह उपासक (इषुहस्तै:) = प्रेरणारूप हाथों से [इष् प्रेरणे] (निषङ्गिभि:) = [निश्चय संग-आसक्ति] अनासक्ति के भावों से युक्त हुआ-हुआ (वशी) = इन्द्रियों को वश में करनेवाला, (गणेन संस्त्रष्टा) = समाज के साथ मेल करनेवाला-अपना अकेला जीवन न बितानेवाला (स:) = वह (युधः) = वासनाओं के साथ युद्ध करनेवाला (इन्द्रः) = इन्द्रियों का अधिष्ठाता (संस्त्रष्टजित्) = सब संसगों को-विषयसम्पकों को जीतनेवाला होता है। २. विषयसम्पकों को जीतकर यह (सोमपा:) = अपने अन्दर सोम [वीर्य] का रक्षण करनेवाल होता है। (बाहुशर्धी) = यह सोमपा बनकर प्रजाओं के साथ पराक्रम करनेवाला होता है। (उग्रधन्वा) = यह प्रणव रूप उन धनुष्वाला होता है। प्रणव का जप करता है और (प्रतिहिताभिः) = [प्रत्याहताभिः] इन्द्रियों को विषयों से वापस लाने की क्रियाओं के द्वारा यह (अस्ता) = शत्रुओं को परे फेंकनेवाला होता है।
भावार्थ
हम अनासक्ति के द्वारा विषय-संगों को जीतने का प्रयत्न करें। इन्द्रियों को विषय-व्यावृत्त करते हुए काम-क्रोध आदि शत्रुओं को दूर भगानेवाले हों।
भाषार्थ
(सः) वह सेनापति (इषुहस्तैः) अस्त्रशस्त्रों से सम्पन्न, तथा (सः) वह सेनापति (निषङ्गिभिः) सदा साथ रहनेवाले, बन्दूक-तोप आदि से सम्पन्न वीर योद्धाओं द्वारा (वशी) सब को अपने वश में रखता है। (सः) वह (इन्द्रः) सेनापति (युधः) योद्धाओं के (गणेन) समूह के द्वारा (संस्रष्टा) शत्रुओं के साथ संसर्ग करता वा भिड़ता है। (संसृष्टजित्) वह भिड़े शत्रुओं पर विजय पाता, (सोमपाः) सोम आदि बलकारी ओषधियों के रसों का पान करता, और वीर्य का रक्षक होता है। वह (बाहुशर्धी) बाहु में बल वाला, और (उग्रधन्वा) भयानक शस्त्रास्त्रों वाला होकर (प्रतिहिताभिः) प्रत्येक का हित करनेवाली निज सेनाओं के साथ (अस्ता) शत्रुओं को परास्त करता है।
टिप्पणी
[इषुहस्तैः= शस्त्रों को हाथों में रखने वाले; तथा निषङ्गिभिः= जिनके पास भुशुंडी (=बन्दूक) शतघ्नी (=तोप) और आग्नेय आदि बहुत से अस्त्र विद्यमान हैं ऐसे भृत्यों के साथ; प्रतिहिताभिः=प्रत्यक्षता से स्वीकार की गई सेना के साथ (यजुः০ १७.३५) महर्षि दयानन्द।]
विषय
इन्द्र, राजा और सेनापति का वर्णन।
भावार्थ
(सः सः) वह (निषङ्गिभिः) कवच धारण किये (इषुहस्तैः) धनुष् बाण हाथ में लिये (वशी) राष्ट्र और अपने देहेन्द्रियों पर वश करने वाला (युधः संस्रष्टा) युद्धों का करने हारा (गणेन) सेना के सुभटों की श्रेणियों सहित (इन्द्रः) ऐश्वर्यदान् राजा होता है। वह (संसृष्टजित्) भली प्रकार परस्पर दलबद्ध सेनाओं का जीतने वाला (सोमपाः) सोमरस का पान या शत्रुका भोग करनेहारा (बाहुशर्धी) अपने बाहुबल से शत्रुओं को पराजय करनेहारा (उग्रधन्वा) उग्र, भयंकर धनुर्धर (प्रतिहिताभिः) प्रतिपक्ष के लिये खड़ी की गई सेनाओं और फेंकी गई बाण परम्पराओं से (अस्ता) शत्रुओं को उखाड़ डालने और धुनदेने में समर्थ होता है।
टिप्पणी
(च०) ‘ऊर्ध्वधन्या’ तै० सं०। (द्वि०) ‘संसृष्टासुयुरिन्द्रोगणेषु’। इति मै० सं०। (च०) ‘प्रतिहिताभिरस्तत्’ इति प्रायः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अप्रतिरथ ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Sole Hero
Meaning
Indra is the warrior with bows and arrows in hand, and, with joint armed forces, conquers multiple enemy hosts and wins over concentrated forces. Protector and promoter of soma peace and joy of life, strong of arms wielding a terrible bow, he throws out the enemies with the shots of his unfailing arrows.
Translation
That army-chief, commanding the soldiers who carry arrows and quivers, organizes them into battalions and with them he captures enemies. He, the enjoyer of the herbal drinks, depending on the strength of his arms only, carrying a mighty bow, scatters the hosts of united enemies with his well-shot arrows. (Yv. XVII.35)
Translation
He the mighty ruler rules with the men who carry shafts and quivers. He has control over him and his kingdom, he is fighter of battles with the group of heroes, he is the conqueror of hosts, he drinks juice of the herbs, he brings down the foes with his arms, he is equipped with mighty bows and he shoots with the well-aimed arrows.
Translation
He alone is the fit commander of the armies, who can fully control him¬ self and the nation, with soldiers bearing armours and carrying missiles in their hands, can wage wars with the help of the swarms of his armies, is the subduer of the well-trained armies, drinks the juice of the herbs to enervate himself, defeats the enemy with the strength of arms, has terrific fire-power, and is the feller of the enemy in battle by directing the same terrific fire¬ power against him.
Footnote
cf. Rig, 10.103.3 ‘Ishu’—does not simply mean ‘arrow.’ It means any means of destruction capable of killing the enemy. Grenades, bombs and missiles, are all Ishva in the Vedic terminology and the mechanisms by which they are hurled at the enemy are Dhanus which does not simply mean a ‘bow’.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(सः) (इषुहस्तैः) शस्त्रपाणिभिः (सः) (निषङ्गिभिः) खड्गधारिभिः (वशी) वशयिता (संस्रष्टा) संयोजकः (सः) (युधः) स्वयोद्धॄन् (इन्द्रः) महाप्रतापी सेनापतिः (गणेन) अधिकारिसमूहेन (संसृष्टजित्) संयुक्तानां शत्रूणां जेता (सोमपाः) ऐश्वर्यस्य पाता रक्षकः (बाहुशर्धी) बाह्वोः शर्धो बलं यस्य सः (उग्रधन्वा) प्रचण्डधनुर्धरः (प्रतिहिताभिः) प्रत्यक्षेण व्यूहेन स्थिताभिः सेनाभिः (अस्ता) शत्रूणां क्षेप्ता मारयिता ॥
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