अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 4
वरु॑णो मादि॒त्यैरे॒तस्या॑ दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवरु॑णः। मा॒। आ॒दि॒त्यैः। ए॒तस्याः॑। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
वरुणो मादित्यैरेतस्या दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठवरुणः। मा। आदित्यैः। एतस्याः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रक्षा करने का उपदेश।
पदार्थ
(वरुणः) सबमें उत्तम परमेश्वर (आदित्यैः) प्रकाशमान गुणों के साथ (मा) मुझे (एतस्याः) इस [बीचवाली] (दिशः) दिशा से (पातु) बचावे, (तस्मिन्) उसमें.... [म०१] ॥४॥
भावार्थ
मन्त्र १ समान है ॥४॥
टिप्पणी
४−(वरुणः) सर्वोत्तमः परमेश्वरः (आदित्यैः) अ०१।९।१। आङ्+दीपी दीप्तौ-यक्, पृषोदरादिरूपम्। आदीप्यमानैः प्रकाशमानेर्गुणैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
आदित्यों के साथ 'वरुण' दक्षिण-पश्चिम के मध्य में
पदार्थ
१. (वरुण:) = सब बुराइयों का निवारण करनेवाले श्रेष्ठ प्रभु (आदित्यैः) [आदानात्] = अच्छाइयों को ग्रहण करने की वृत्तियों के साथ (मा) = मुझे (एतस्याः दिशा) = इस दक्षिण-पश्चिम के बीच की दिशा से (पातु) = रक्षित करें। २. (तस्मिन् क्रमे) = आदित्यों के साथ होनेवाले वरुण का मैं दक्षिण पश्चिम के मध्य में ध्यान करूँ और उसमें स्थित हुआ-हुआ कर्तव्यकर्मों को करूं। शेष पूर्ववत् |
भावार्थ
मैं दक्षिण-पश्चिम के मध्य में बुराइयों का निवारण करनेवाले श्रेष्ठ प्रभु का ध्यान करूँ। वे मुझे सब अच्छाइयों को प्राप्त करानेवाले हैं। उन्हीं में स्थित होकर मैं गति करूँ।
भाषार्थ
(आदित्यैः) आदित्य अर्थात् सूर्य की किरणों के साथ वर्तमान (वरुणः) वरुण में प्रविष्ट वरुण नामक परमेश्वर (एतस्याः दिशः) इसी दक्षिण दिशा से (मा) मेरी (पातु) रक्षा करे। तस्मिन्—पूर्ववत्।
टिप्पणी
[वरुणः=अपामधिपतिः (पारस्कर १.५.१०.९); संस्कारविधि विवाह प्रकरण; तथा (अथर्व० ५.२४.४)। तथा “अप्सु ते राजन्, वरुण गृहः” (अथर्व० ७.८३.१), अर्थात् हे वरुण राजन्! तुम्हारा घर जलों में है। आदित्यैः१ =आदित्यकिरणैः। दक्षिण दिशा से समुद्र पर जब आदित्य-रश्मियाँ पड़कर जल को वाष्पीभूत कर, अन्तरिक्ष में मेघरूप में जल को प्रकट करती हैं, तब मेघ अन्तरिक्ष पर आवरण डाल देता है। आवरण डालने के कारण मेघस्थ जल ‘वरुण’ कहाते हैं। इसमें प्रविष्ट परमेश्वर को भी मन्त्र में ‘वरुण’ कहा है। क्योंकि परमेश्वर की शक्ति के कारण ही मेघरूपजल में आवरण करने की शक्ति होती है। वाष्परूप में जल सोम हैं, और मेघरूप में जल वरुण है। अतः वाष्परूप में जल में प्रविष्ट परमेश्वर भी सोम है। और मेघरूप में प्रविष्ट परमेश्वर वरुण है, ऐसा अभिप्राय इन मन्त्रों में प्रतीत होता है। सोम और वरुण शब्द यौगिक दृष्ट्या इनसे भिन्न अन्य अर्थों के भी वाचक हैं।] [१. आदित्यः= आदत्ते रसान् (निरु० २.४.१३)।]
विषय
रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
(वरुणः) वरुण सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर (मां) मुझे (आदित्यैः) आदित्य, १२ मासों द्वारा (एतस्याः) उसी दक्षिण दिशा से रक्षा करें। शेष पूर्ववत्।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः । १-४ जगत्यः। ५, ७, १० अतिजगत्यः, ६ भुरिक्, ९ पञ्चपदा अति शक्वरी। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Protection and Security
Meaning
May Varuna, cosmic umbrella of life, with Adityas, life rays of the sun, from the same direction protect and promote me. Therein I advance. Therein I rest for my mainstay. That same light of life I attain to. May that guard me. May that save me. To that I surrender myself life and soul in truth of word and deed.
Translation
May the venerable Lord (Varuna), along with Adityas (old - sages), guard me from this direction (middle of the south and the west). I step in Him; in Him I take shelter; to that castle do I go. May He defend me; may He protect me. To Him I totally surrender myself. Svaha.
Translation
Varuna, God to whom all worship is due guard me with Adityas (The twelve Adityas) from this region (the south)……. soul to Him........, appreciation.
Translation
May the most Adorable God protect me, through Adityas, from this mid-quarter i.e., south-west. I .... so on.
Footnote
Adityas: Twelve months of the year; also 48 years old celibates.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(वरुणः) सर्वोत्तमः परमेश्वरः (आदित्यैः) अ०१।९।१। आङ्+दीपी दीप्तौ-यक्, पृषोदरादिरूपम्। आदीप्यमानैः प्रकाशमानेर्गुणैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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