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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
    21

    वर्म॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी वर्माह॒र्वर्म॒ सूर्यः॑। वर्म॑ मे॒ विश्वे॑ दे॒वाः क्र॒न्मा मा॒ प्राप॑त्प्रतीचि॒का ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वर्म॑। मे॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। वर्म॑। अहः॑। वर्म॑। सूर्यः॑। वर्म॑। मे॒। विश्वे॑। दे॒वाः। क्र॒न्। मा। मा॒। प्र। आ॒प॒त्। प्र॒ती॒चि॒का ॥२०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वर्म मे द्यावापृथिवी वर्माहर्वर्म सूर्यः। वर्म मे विश्वे देवाः क्रन्मा मा प्रापत्प्रतीचिका ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वर्म। मे। द्यावापृथिवी इति। वर्म। अहः। वर्म। सूर्यः। वर्म। मे। विश्वे। देवाः। क्रन्। मा। मा। प्र। आपत्। प्रतीचिका ॥२०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (मे) मेरे लिये (द्यावापृथिवी) आकाश और भूमि ने (वर्म) कवच, (अहः) दिन ने (वर्म) कवच, (सूर्यः) सूर्य ने (वर्म) कवच, (विश्वे) सब (देवाः) उत्तम पदार्थों ने (वर्म) कवच (मे) मेरे लिये (क्रन्) किया है, (मा) मुझको (प्रतीचिका) उलटी चलनेवाली [विपत्ति] (मा प्र आपत्) कभी न प्राप्त हो ॥४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य संसार के बीच सब पदार्थों से सर्वदा उपकार लेते हैं, वह सुखी रहते हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(वर्म) कवचम् (मे) मह्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (वर्म) (अहः) दिनम् (वर्म) (सूर्यः) भास्करः (वर्म) (मे) (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यपदार्थाः (क्रन्) छान्दसो लुङ्। अकार्षुः (मा) निषेधे (मा) माम् (प्र आपत्) अप्नोतेर्लुङ्। प्राप्नोत् (प्रतीचिका) प्रतीची-कन् स्वार्थे। केऽणः। पा०७।४।१३। इति ह्रस्वः। प्रतिकूलाञ्चना विपत्तिः ॥

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    विषय

    मा मा प्रापत् प्रतीचिका

    पदार्थ

    १. (मे) = मेरे लिए (द्यावापृथिवी) = द्युलोक और पृथिवीलोक (वर्म) = कवच का काम करें। (अहः) = दिन मेरे लिए (वर्म) = कवच हो। (सूर्य:) = सूर्य (वर्म) = कवच बने। २. (विश्वेदेवाः) = माता, पिता, आचार्य आदि सब देव मे मेरे लिए (वर्म क्रन) = कवच बनें, जिससे (मा) = मुझे (प्रतीचिका) = मेरे विरुद्ध आनेवाली आसुरसेना-आसुरी वृत्तियों की सेना (मा प्रापत्) = मत प्राप्त हो। 'घुलोक, पृथिवीलोक, दिन व सूर्य' आदि की अनुकूलता [रक्षण] मुझे रोगों से बचाएँ। माता आदि का उत्तम शिक्षण वासनाओं से।

    भावार्थ

    सारा संसार [सब प्राकृतिक देव] मेरा रक्षण करें, जिससे मैं स्वस्थ शरीर रहूँ। माता, पिता व आचार्य आदि सबका रक्षण मुझे वासनामय जीवनवाला न बनने दे। यह नीरोग व निर्वासन पुरुष उन्नत होता हुआ अन्तत: 'ब्रह्मा' बनता है। ब्रह्मा' ही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (मे) मेरे लिए (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक (वर्म) कवच हैं, रक्षासाधन हैं; (अहः) दिन (वर्म) कवच है; (सूर्यः) सूर्य (वर्म) कवच है, (विश्वेदेवाः) सब दैवी शक्तियों ने (मे) मेरे लिए (वर्म) कवच अर्थात् रक्षासाधन (क्रन्) उपस्थित किये हुए हैं, ताकि (मे) मुझे (प्रतीचिका) प्रतिकूल परिस्थिति (मा)(प्रापत्) प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में द्युलोक और सूर्य की किरणों को, पृथिवी की मिट्टी आदि को, दिन के प्रकाश को, तथा संसार के अन्य दिव्य पदार्थों को कवच अर्थात् रक्षा के साधन कहा है। ये प्राकृतिक रक्षासाधन हैं। इस प्रकार समग्र सूक्त में ४ रक्षा साधन दर्शाएं हैं— (१) राष्ट्रों के नेताओं द्वारा पारस्परिक समझौते से युद्धों को समाप्त कर देना। (२) आन्तरिक विप्लवों को न होने देने के लिए देशों और प्रदेशों में स्थान-स्थान पर सेना और पुलिस आदि का प्रबन्ध करना। (३) महात्माओं के सदुपदेशों के अनुसार जीवन ढालने। तथा (४) प्राकृतिक शक्तियों का सेवन। प्रतीचिका =प्रतिकूलताएँ यथा रोग चिन्ता आदि।]

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    विषय

    रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (द्यावा पृथिवी) आकाश और पृधिवी दोनों (में वर्म) मेरे लिये रक्षाकारी कवच हों, (अहः) दिन (सूर्यः) सूर्य, और (विश्वेदेवाः) समस्त दिव्य पदार्थ या देव विद्वान् जन सभी (ये वर्म ३) मेरे रक्षाकारी कवच (क्रम) बनावें। जिससे (प्रतीचिका) मेरे विरुद्ध उठने वाली शत्रु सेना (या) मुझतक (मा प्रापत्) न पहुंच सके।

    टिप्पणी

    (च०) ‘योमा’ इति क्वचित्। (तृ० च०) ‘वर्म मे ब्रह्मणस्पतिर्मामाप्रा पदतो भयम्’ इत्याप०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। नाना देवताः। १ त्रिष्टुप्, २ जगती, ३ पुरस्ताद् बृहती, ४ अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protection

    Meaning

    May heaven and earth provide me the armour of defence and protection. May the day provide me the armour. May the sun provide me the armour. May all divinities of the world, of nature and humanity, provide me the armour of defence and protection. Let no opposition, no negativity, no calamity touch and hurt me.

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    Translation

    May heaven and earth be my armour; (my) armour be the day; armour be the sun. May all thé bounties of Nature make my armour. May the calamity (army of enemies) never reach me.

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    Translation

    My defending means are the heaven and earth, my shield is day and my defense is sun. All the natural forces have been made shield for me. Let not calamities fall on me.

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    Translation

    Let the energy derived from the earth as well as from the cosmos, the day and the Sun, be all a shield for me. Let all the divine things and beings protect me, so that no evil or misfortune befall me (or let not the army of the enemy come near me).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(वर्म) कवचम् (मे) मह्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (वर्म) (अहः) दिनम् (वर्म) (सूर्यः) भास्करः (वर्म) (मे) (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यपदार्थाः (क्रन्) छान्दसो लुङ्। अकार्षुः (मा) निषेधे (मा) माम् (प्र आपत्) अप्नोतेर्लुङ्। प्राप्नोत् (प्रतीचिका) प्रतीची-कन् स्वार्थे। केऽणः। पा०७।४।१३। इति ह्रस्वः। प्रतिकूलाञ्चना विपत्तिः ॥

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