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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - रात्रि सूक्त
    11

    ये रात्रि॑मनु॒तिष्ठ॑न्ति॒ ये च॑ भू॒तेषु॒ जाग्र॑ति। प॒शून्ये सर्वा॒न्रक्ष॑न्ति॒ ते न॑ आ॒त्मसु॑ जाग्रति॒ ते नः॑ प॒शुषु॑ जाग्रति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। रात्रि॑म्। अ॒नु॒ऽतिष्ठ॑न्ति। ये। च॒। भू॒तेषु॑। जाग्र॑ति। प॒शून्। ये। सर्वा॑न्। रक्ष॑न्ति। ते। नः॒। आ॒त्मऽसु॑। जा॒ग्र॒ति॒। ते। नः॒। प॒शुषु॑। जा॒ग्र॒ति॒ ॥४८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये रात्रिमनुतिष्ठन्ति ये च भूतेषु जाग्रति। पशून्ये सर्वान्रक्षन्ति ते न आत्मसु जाग्रति ते नः पशुषु जाग्रति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। रात्रिम्। अनुऽतिष्ठन्ति। ये। च। भूतेषु। जाग्रति। पशून्। ये। सर्वान्। रक्षन्ति। ते। नः। आत्मऽसु। जाग्रति। ते। नः। पशुषु। जाग्रति ॥४८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 48; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो [पुरुष] (रात्रिम्) रात्रि के (अनुतिष्ठन्ति) साथ चलते हैं [रात्रि में सावधान रहते हैं] (च) और (ये) जो (भूतेषु) सत्तावालों पर (जाग्रति) जागते हैं। (ये) जो (सर्वान्) सब (पशून्) पशुओं की (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं, (ते) वे (नः) हमारे (आत्मसु) आत्माओं [जीवों] पर (जाग्रति) जागते हैं, (ते) वे (नः) हमारे (पशुषु) पशुओं पर (जाग्रति) जागते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य रात्रि में सावधान रहकर संसार के सब पदार्थों, पशुओं और पुरुषों की रक्षा करें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(ये) जनाः (रात्रिम्) (अनुतिष्ठन्ति) अनुसृत्य वर्तन्ते (ये) (च) (भूतेषु) भवनवत्सु। सत्तावत्सु (जाग्रति) सावधानाः सन्ति (पशून्) गवादीन् (ये) (सर्वान्) (रक्षन्ति) पालयन्ति (ते) जनाः (नः) अस्माकम् (आत्मसु) जीवेषु (जाग्रति) (ते) (नः) अस्माकम् (पशुषु) गवादिषु (जाग्रति) जागरिता भवन्ति ॥

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    भाषार्थ

    (ये) जो लोग (रात्रिम्) रात्री में (अनुतिष्ठन्ति) अनुष्ठान करते हैं योग का अभ्यास करते हैं, (च) और (ये) जो (भूतेषु) प्राणियों की उन्नति के सम्बन्ध में (जाग्रति) जागरूक अर्थात् सावधान रहते हैं, (ये) तथा जो (सर्वान् पशून्) सब पशुओं की (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं, (ते) वे ही (नः) हमारी (आत्मसु) आत्माओं की उन्नति के सम्बन्ध में (जाग्रति) जागरूक अर्थात् सावधान रहते हैं, और (ते) वे (नः) हमारे (पशुषु) पशुओं की उन्नति के सम्बन्ध में (जाग्रति) जागरूक रहते हैं, सदा प्रयत्नशील होते हैं।

    टिप्पणी

    [रात्री के प्रकरण में रात्री के शान्त वायुमण्डल में, योगानुष्ठान का वर्णन है। योगिजन सब प्राणियों की सदा उन्नति में लगे रहते हैं। वे पशुओं तक की रक्षा करते और हिंसा से सदा परे रहते हैं, तथा सब लोगों की आत्मिक-उन्नति के लिये यत्नवान् रहते हैं।]

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    विषय

    सावधान रक्षक

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (रात्रिम्) = सारी रात (अनुतिष्ठन्ति) = अर्चना व जपोपासनारूप कर्म करते हुए रक्षण का कार्य करते हैं (ये च) = और जो (भूतेषु जाग्रति) = प्राणियों के विषय में रक्षणार्थ सावधान होते हैं। (ये) = जो (सर्वान् पशून् रक्षन्ति) = सब पशुओं का रक्षण करते हैं, (ते) = के रक्षक (न:) = हमारे (आत्मस) = शरीरों के विषय में भी जाग्रति जागते हैं-रक्षणार्थ सावधान होते हैं, (ते) = वे (न:) = हमारे (पशषु) = पशुओं के विषय में भी (जाग्रति) = जागते हैं। हमारे पशुओं के रक्षण में भी अप्रमत्त होते हैं।

    भावार्थ

    रक्षापुरुषों का यह कर्तव्य है कि अप्रमत्त होकर रात्रि में प्रभु का स्मरण करते हुए रक्षणकार्य में जागरित रहें।

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    विषय

    राष्ट्रशक्ति रूप ‘रात्रि’।

    भावार्थ

    (ये) जो (रात्रिम्) रात्रि, उस सुखप्रद और दुष्टों को दण्ड देने वाली व्यवस्था को या सर्वोपरि राजमान् राष्ट्री शक्ति को (अनुतिष्ठन्ति) ठीक प्रकार से चलाते हैं और (ये) जो (भूतेषु) समस्त भूतों और प्राणियों में (जाग्रति) जागते हैं, सदा सावधान रहते हैं। और (ये) जो (सर्वान्) समस्त (पशून्) पशुओं की (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं (ते) वे सब व्यवस्थापक राज्य कार्यों को चलाने हारे पुरुष (नः आत्मसु) हमारे शरीरों पर भी उनकी रक्षा के निमित्त सावधान (जाग्रति) जागते हैं। और (ते) वे (नः) हमारे (पशुषु) पशुओं के रक्षा-कार्य में भी (जाग्रति) सावधान होकर रहते हैं। व्यापक ईश्वरीय शक्ति के पक्ष में भी स्पष्ट है।

    टिप्पणी

    ‘जाग्रतु’ इति ह्विटनिदशितः। (द्वि०) ‘येषु भूतेषु’ (च० पं०) तेन त्वमसि जाग्रतु ते नः पशुभिर्जाग्रतु’। इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपथ ऋषिः। रात्रिर्देवता। १ त्रिपदा आर्षी गायत्री। २ त्रिपदा विराड् अनुष्टुप। ३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। ५ पथ्यापंक्तिः। शेषाः अनुष्टुभः। षडृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    Those who keep awake by night and practice holy vigil, those who keep awake among living beings while others sleep, and those who guard all the animals, they keep awake in our very souls, they keep awake among our animals.

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    Translation

    They, who perform rituals at night, and ______ awake within the beings, and they, who protect all cattle may they keep awake within (watch over) our selves, keep awake with in (watch-over) our cattle.

    Comments / Notes

    Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation

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    Translation

    They who do good works (concentration, contemplation etc.) in the night, they who watch over the creatures and they who protect all the cattle, keep watch and ward over our lives and watch and ward over our, animals.

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    Translation

    The sentinels, who keep vigilance all the night long and keep watch and ward over the living beings and who protect ail the cattle, are also watchful over bodies and our cattle as well.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(ये) जनाः (रात्रिम्) (अनुतिष्ठन्ति) अनुसृत्य वर्तन्ते (ये) (च) (भूतेषु) भवनवत्सु। सत्तावत्सु (जाग्रति) सावधानाः सन्ति (पशून्) गवादीन् (ये) (सर्वान्) (रक्षन्ति) पालयन्ति (ते) जनाः (नः) अस्माकम् (आत्मसु) जीवेषु (जाग्रति) (ते) (नः) अस्माकम् (पशुषु) गवादिषु (जाग्रति) जागरिता भवन्ति ॥

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