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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भृगुः देवता - कालः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त
    19

    स ए॒व सं भुव॑ना॒न्याभ॑र॒त्स ए॒व सं भुव॑नानि॒ पर्यै॑त्। पि॒ता सन्न॑भवत्पु॒त्र ए॑षां॒ तस्मा॒द्वै नान्यत्पर॑मस्ति॒ तेजः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। ए॒व। सम्। भुव॑नानि। आ। अ॒भ॒र॒त्। सः। ए॒व। सम्। भुव॑नानि। परि॑। ऐ॒त्। पि॒ता। सन्। अ॒भ॒व॒त्। पु॒त्रः। ए॒षा॒म्। तस्मा॑त्। वै। न। अ॒न्यत्। पर॑म्। अ॒स्त‍ि॒। तेजः॑ ॥५३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स एव सं भुवनान्याभरत्स एव सं भुवनानि पर्यैत्। पिता सन्नभवत्पुत्र एषां तस्माद्वै नान्यत्परमस्ति तेजः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। एव। सम्। भुवनानि। आ। अभरत्। सः। एव। सम्। भुवनानि। परि। ऐत्। पिता। सन्। अभवत्। पुत्रः। एषाम्। तस्मात्। वै। न। अन्यत्। परम्। अस्त‍ि। तेजः ॥५३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    काल की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः एव) उसने ही (भुवनानि) सत्ताओं को (सम्) अच्छे प्रकार (आ) सब ओर से (अभरत्) पुष्ट किया है, (सः एव) उसने ही (भुवनानि) सत्ताओं को (सम्) अच्छे प्रकार (परि ऐत्) घेर लिया है। वह (एषाम्) इन [सत्ताओं] का (पिता) पिता [पिता समान पहिले] (सन्) होकर (पुत्रः) पुत्र [पुत्र समान पीछे] (अभवत्) हुआ है, (तस्मात्) उससे (परम्) बड़ा (अन्यत्) दूसरा (तेजः) तेज [सृष्टि के बीच] (वै) निश्चय करके (न) नहीं (अस्ति) है ॥४॥

    भावार्थ

    काल सब सत्ताओं में व्यापक है, काल ही सृष्टि का पिता और पुत्र है, अर्थात् पहिली, वर्तमान और आगामी सृष्टि काल से ही है, अर्थात् नित्य होने से वही पहिले और वही पीछे है, इसीसे वह संसार में बड़ा प्रताप है ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(सः) कालः (एव) निश्चयेन (सम्) सम्यक् (भुवनानि) सत्तावन्ति जगन्ति (आ) समन्तात् (अभरत्) भृञ् भरणे भौवादिकः-लङ्। पोषितवान् (सः) (एव) (सम्) (भुवनानि) (परि ऐत्) इण् गतौ-लङ्। आच्छादितवान् (पिता) पितृवत् पूर्वभावी (सन्) वर्तमानः (अभवत्) (पुत्रः) पुत्र इव पितुः। पश्चाद् भावी (एषाम्) भुवनानाम् (तस्मात्) कालात् (वै) (न) निषेधे (अन्यत्) इतरत् (परम्) उत्कृष्टम् (अस्ति) भवति (तेजः) ज्योतिः ॥

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    भाषार्थ

    (सः एव) उस काल ने ही (भुवनानि) भुवनों को (सम्) सम्यक् प्रकार से (आ भरत्) पूर्णतया धारित किया हुआ है। (सः एव) उस काल ने ही (भुवनानि) भुवनों को (सम्) सम्यक् (परि ऐत्) घेरा हुआ है। (पिता) वह काल पिता (सन्) होता हुआ (एषाम्) इन भुवनों का (पुत्रः) पुत्र (अभवत्) हुआ है। (वै) निश्चय से (तस्मात्) उससे (परम्) उत्कृष्ट (अन्यत्) और कोई (तेजः) भौतिक तेज (नः अस्ति) नहीं है।

    टिप्पणी

    [एषाम्= काल भिन्न-भिन्न भुवनों को भिन्न-भिन्न काल में पैदा करता है, अतः काल इनका पिता है। भुवनों की विविध गतियों से वसन्त काल आदि तथा प्रातःकाल सायंकाल आदि पैदा हो रहे हैं, अतः काल इनका पुत्र भी है। तेजः=सभी भूत-भौतिक पदार्थों की उत्पत्ति स्थिति प्रलय काल द्वारा नियन्त्रित है। इसलिए कोई भी भूत= भौतिक पदार्थ काल की अपेक्षा उत्कृष्ट तेजवाला नहीं। केवल परमेश्वर ही काल से उत्कृष्ट तेजवाला है। क्योंकि काल परमेश्वराश्रित है (मन्त्र ३)। इसलिए परमेश्वर को “कालकालः” अर्थात् काल का भी काल कहा है। यथा—“ज्ञः कालकालो गुणी सर्वविद्यः” (श्वेता० उप० ६.२)।]

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    विषय

    पिता सत्रभवत्पुत्रः एषाम्

    पदार्थ

    १. (सः एव) = वे काल नामक प्रभु ही (भुवनानि) = सब भुवनों का (सम् आभरत्) = सम्यक् भरण [पानल] कर रहे हैं। (सः एव) = वे ही (भुवनानि संपर्यत्) = सब भुवनों को सम्यक् व्याप्त कर रहे हैं। २. पिता (सन्) = वे प्रभु पिता-उत्पादक होते हुए (एषां पुत्रः अभवत्) = इन लोकों के पुत्र [पुनाति त्रायते] सबके पवित्र करनेवाले व रक्षण करनेवाले हैं। (तस्मात्) = उस काल नामक प्रभु से (परम्) = उत्कृष्ट (अन्यत् तेज:) = और तेज (वै न अस्ति) = निश्चय से नहीं है। उस प्रभु के तेज से हो तो ये सब लोक-लोकान्तर तेजस्वी हो रहे हैं।

    भावार्थ

    प्रभ ही सब भुवनों का पोषण करते हैं। वे इन सबमें व्याप्त हैं। इनके वे उत्पादक हैं, पवित्र करनेवाले और रक्षण करनेवाले हैं। उससे अधिक और कोई तेज नहीं है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kala

    Meaning

    He alone bears and sustains all the worlds of existence. He alone transcends all the worlds of existence. He alone, though being the father of all these worlds, becomes his own manifestive begotten child, chronological time form, in the life of these creatures. There is no other, higher refulgence and power beyond him.

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    Translation

    He alone sustains the beings completely. He alone pervades the beings thoroughly. Being father, He becomes their son. Surely, there is no other majesty superior to Him.

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    Translation

    Only this Kala subsists all the worlds, only this encompasses all the worlds, this Kala being the father i.e. The cause of these becomes the son, i.e., the effect-forms. There is there- fore no other power so strong as this Kala is.

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    Translation

    He alone pervades all the spheres. He also thoroughly surrounds them all. Being Father, the Creator, becomes their son, the Protector. No other energy is greater than He.

    Footnote

    In this verse, the Father becoming the Son seems to be an enigma. But God, being the Creator is naturally the Father. The son’s duty is to look after and remove all difficulties and troubles of his parents, so in this restricted sense of taking care of His own creation, He is called the son. Or it may point to the days, nights, weeks, fortnights, months, years, parts of the time, i.e., Kala from the earth, the moon, and the sun, created by God, the Kala.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(सः) कालः (एव) निश्चयेन (सम्) सम्यक् (भुवनानि) सत्तावन्ति जगन्ति (आ) समन्तात् (अभरत्) भृञ् भरणे भौवादिकः-लङ्। पोषितवान् (सः) (एव) (सम्) (भुवनानि) (परि ऐत्) इण् गतौ-लङ्। आच्छादितवान् (पिता) पितृवत् पूर्वभावी (सन्) वर्तमानः (अभवत्) (पुत्रः) पुत्र इव पितुः। पश्चाद् भावी (एषाम्) भुवनानाम् (तस्मात्) कालात् (वै) (न) निषेधे (अन्यत्) इतरत् (परम्) उत्कृष्टम् (अस्ति) भवति (तेजः) ज्योतिः ॥

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