अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा
देवता - विश्वदेवाः
छन्दः - विराड्जगती
सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
21
यस्य॑ ते॒ वासः॑ प्रथमवा॒स्यं॑१ हरा॑म॒स्तं त्वा॒ विश्वे॑ऽवन्तु दे॒वाः। तं त्वा॒ भ्रात॑रः सु॒वृधा॒ वर्ध॑मान॒मनु॑ जायन्तां ब॒हवः॒ सुजा॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । ते॒ । वास॑: । प्र॒थ॒म॒ऽवा॒स्य᳡म् । हरा॑म: । तम् । त्वा॒ । विश्वे॑ । अ॒व॒न्तु॒ । दे॒वा: । तम् । त्वा॒ । भ्रात॑र: । सु॒ऽवृधा॑ । वर्ध॑मानम् । अनु॑ । जा॒य॒न्ता॒म् । ब॒हव॑: । सुऽजा॑तम् ॥१३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य ते वासः प्रथमवास्यं१ हरामस्तं त्वा विश्वेऽवन्तु देवाः। तं त्वा भ्रातरः सुवृधा वर्धमानमनु जायन्तां बहवः सुजातम् ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । ते । वास: । प्रथमऽवास्यम् । हराम: । तम् । त्वा । विश्वे । अवन्तु । देवा: । तम् । त्वा । भ्रातर: । सुऽवृधा । वर्धमानम् । अनु । जायन्ताम् । बहव: । सुऽजातम् ॥१३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मचारी के समावर्त्तन, विद्यासमाप्ति पर वस्त्र आदि के लिये उपदेश।
पदार्थ
[हे ब्रह्मचारिन्] (यस्य) जिस (ते) तेरे (प्रथमवास्यम्) प्रधानता से धारणयोग्य (वासः) वस्त्र को (हरामः) हम लाते हैं [धारण कराते हैं] (तम्) उस (त्वा) तेरी (विश्वे) सब (देवाः) उत्तम गुण (अवन्तु) रक्षा करें। और (तम्) उस (सुवृधा) उत्तम सम्पत्ति से (वर्धमानम्) बढ़ते हुए, (सुजातम्) पूजनीय जन्मवाले (त्वा) तेरे (अनु) पीछे (बहवः) बहुत से (भ्रातरः) भाई (जायन्ताम्) प्रकट हों ॥५॥
भावार्थ
जब ब्रह्मचारी इस प्रकार विद्वानों में बड़ा मान पावे, तब वह उत्तम गुणों की प्राप्ति से ऐसी वृद्धि और उन्नति करे कि उसी के समान उसके दूसरे भ्रातृगण संसार में यश प्राप्त करें ॥५॥
टिप्पणी
टिप्पणी–इस सूक्त में (वासः) पद का चोला अर्थात् मनुष्यशरीर अर्थ करने से आध्यात्मिक विषय का विनियोग भी हो सकता है। यथा मन्त्र २ देखिये ॥ ५–वासः। वस्त्रम्। शरीरम्। प्रथमवास्यम्। प्रथ ख्यातौ–अमच्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति वस आच्छादने–कर्मणि ण्यत्। तित् स्वरितम्। पा० ६।१।१८५। इति स्वरितम्। प्रथमं प्रधानत्वेन वास्यं परिधानीयम्। हरामः। प्रापयामः। तम्। तादृशम्। त्वा। त्वां ब्रह्मचारिणमात्मानं वा। अवन्तु। रक्षन्तु। भ्रातरः। नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृपोतृ०। उ० २।९५। इति टुभ्राजृ दीप्तौ–तृन्। यद्वा। भृञ् भरणे–तृन्। भ्राजमानाः परस्परं दीप्यमानाः। परस्परपोषकाः। सहोदराः। भ्रातृवत् परस्परपोषणशीलाः पुरुषाः। सुवृधा। वृधु वृद्धौ–क्विप्। महावृद्ध्या। समृद्ध्या। वर्धमानम्। वृधु–शानच्। वृद्धिविशिष्टम्। अनु। अनुसृत्य जायन्ताम्। जनी प्रादुर्भावे। प्रादुर्भवन्तु। उत्पद्यन्ताम्। बहवः। अनेकाः। सु–जातम्। जनी–क्त। प्रशस्तजन्मानम् ॥
विषय
कई भाई
पदार्थ
१. (यस्य ते) = जिस तेरे (प्रथमवास्यम्) = धारण करने योग्यों में प्रथम; अर्थात् उत्तम (वास:) = वस्त्र को (हरामः) = प्राप्त करते हैं, (तं त्वा) = उस तुझको (विश्वेदेवा:) = सब देव (अवन्तु) = रक्षित करें। वस्त्र उत्तम हों, दीर्घायु के लिए किसी भी प्रकार से विघातक न हों। सूर्य-किरणों के प्रभाव को व वायु-प्रवेश को एकदम रोक देनेवाले न हों। २. (सुजातम्) = इसप्रकार उत्तम विकासवाले (वर्धमानम्) = दिन प्रतिदिन बढ़ते हुए (तं त्वा अनु) = उस तेरे पश्चात् (सुवृधा) = उत्तम वृद्धिवाले (बहवः) = बहुत (भातरः)= भाई (जायन्ताम्) = उत्पन्न हों। जब प्रथम बालक का ठीक विकास हो जाए तभी दूसरे बालक का उत्पन्न होना ठीक है। 'सुजातम् अनु' शब्दों से यह भाव बहुत अच्छी प्रकार संकेतित हो रहा है।
भावार्थ
वस्त्र इसप्रकार के हों कि सूर्यादि देवों के साथ निरन्तर सम्पर्क बना रहे। ऐसे ही वस्त्र स्वास्थ्य वर्धक होते हैं।
विशेष
सूक्त के प्रथम मन्त्र में गोघृत से अग्निहोत्र का विधान है, इसप्रकार गोघृत को दीर्घायुष्य के लिए आवश्यक बताया है। द्वितीय मन्त्र में 'सौम्य वेश' का संकेत है। तृतीय मन्त्र में गोपालन व क्रियाशीलता द्वारा धनार्जन को दीर्घ जीवन का साधक बताया गया है। चतुर्थ मन्त्र में शरीर को पाषाणतुल्य दृढ बनाने का उपदेश है। पाँचवें मन्त्र में सब देवों की अनुकूलता की प्रार्थना करके दो सन्तानों के बीच में कम-से-कम तीन-चार वर्ष का अन्तर होना आवश्यक बताया गया है। अब अगले सूक्त में घर को, आनेवाली आपत्तियों से, बचाने के उपायों का निर्देश है। इन विपत्तियों का नष्ट करनेवाला 'चातन' ही सूक्त का ऋषि है'चातयति नाशयति ।
यह संकल्प करता है कि -
भाषार्थ
हे ब्रह्मचारिन् ! (यस्य ते) जिस तेरे लिए (प्रथमवास्यम्) प्रथम पहिनने योग्य (वासः) वस्त्र को ( हराम: ) हम तेरे पितृपक्ष के लोग लाते हैं, (तम्, त्वा) उस तुझको (विश्वे देवा:) सब गुरुदेव (अवन्तु) सुरक्षित करें। (सुवृधा वर्धमानम्) उत्तमवृद्धि से बढ़ते हुए (तम् त्वा) उस तुझ के (अनु) पश्चात् (भ्रातरः) सतीर्थ्य भाई (बहवः) बहुसंख्या में (जायन्ताम्) हों, (सुजातम्) विद्यामाता से द्विजन्मा तुझको देखकर।
टिप्पणी
[ब्रह्मचारी जब गुरुकुल में प्रविष्ट हो तो उसके प्रथम पहिनने के वस्त्र पितृपक्ष के लोग लाते हैं। ब्रह्मचारी द्विजन्मा बन कर जब स्नातक हो जाय, तब उसके पश्चात् भी जो ब्रह्मचारी गुरुकुल में प्रविष्ट होते रहें, उन्हें भी अपना सतीर्थ्य भाई बह समझता रहे तथा देखो ब्रह्मचर्यसूक्त (अथर्व० ११।५)।]
विषय
ब्रह्मचर्य व्रत में आयु, बल बल और दृढ़ता की प्रार्थना
भावार्थ
हे बालक ! ब्रह्मचरिन् ! (यस्य ते) जिस तेरे लिये हम (प्रथमवास्यं) प्रथम आश्रम में पहनने योग्य वस्त्र को (हरामः) लाते हैं। (तं त्वा) उस तेरी ( विश्व ) समस्त ( देवाः ) विद्वान्गण (अवन्तु) रक्षा करें। (सुवृधा) उत्तम वृद्धि, उन्नति से. (वर्धमानं) उन्नति पथ पर सदा बढ़ते और (सुजातं ) उत्तम रूप में विद्यासम्प्रव होते हुए ( तं त्वा ) उस तेरे ( अनु ) पीछे पीछे तेरा अनुकरण करते हुए (बहवः) बहुत (भ्रातरः) भाई अर्थात् सब्रह्मचारी (जायन्ताम् ) और भी हों ।
टिप्पणी
(प्र०) ‘यस्य ते विश्वे, प्रवरस्यं’ इति हि० गृ० सू० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। १ अग्निर्देवता। २, ३ बृहस्पतिः। ४, ५ विश्वेदेवाः। १ अग्निस्तुतिः। २, ३ चन्द्रमसे वासः प्रार्थना। ४, ५ आयुः प्रार्थना। १-३ त्रिष्टुभः। ४ अनुष्टुप्। ५ विराड् जगती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Investiture
Meaning
While we bring for you the first vestments to wear, may all the Vishvedevas, divinities of nature and humanity, protect and promote you. Nobly born you are, fortunate, rising and advancing, may many brothers follow in your foot steps.
Subject
Agni
Translation
May all the bounties of Nature protect you for whom we have brought this garment to wear for the first time. May many prospering brothers be born after you, who is one of good birth and always prospering.
Translation
O Brahmacharin; you, for whom we bring this first garment to wrap, be protected by the learned persons. Let there be born many brothers following you who is growing with nice growth and celebrated with meritorious qualities.
Translation
O Brahmchari may all learned persons protect thee, for whom we bring raiment to be worn in the first Ashrama. May many thriving fellow-students follow thee, scion of a noble family, and ever marching on the path of advancement.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
टिप्पणी–इस सूक्त में (वासः) पद का चोला अर्थात् मनुष्यशरीर अर्थ करने से आध्यात्मिक विषय का विनियोग भी हो सकता है। यथा मन्त्र २ देखिये ॥ ५–वासः। वस्त्रम्। शरीरम्। प्रथमवास्यम्। प्रथ ख्यातौ–अमच्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति वस आच्छादने–कर्मणि ण्यत्। तित् स्वरितम्। पा० ६।१।१८५। इति स्वरितम्। प्रथमं प्रधानत्वेन वास्यं परिधानीयम्। हरामः। प्रापयामः। तम्। तादृशम्। त्वा। त्वां ब्रह्मचारिणमात्मानं वा। अवन्तु। रक्षन्तु। भ्रातरः। नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृपोतृ०। उ० २।९५। इति टुभ्राजृ दीप्तौ–तृन्। यद्वा। भृञ् भरणे–तृन्। भ्राजमानाः परस्परं दीप्यमानाः। परस्परपोषकाः। सहोदराः। भ्रातृवत् परस्परपोषणशीलाः पुरुषाः। सुवृधा। वृधु वृद्धौ–क्विप्। महावृद्ध्या। समृद्ध्या। वर्धमानम्। वृधु–शानच्। वृद्धिविशिष्टम्। अनु। अनुसृत्य जायन्ताम्। जनी प्रादुर्भावे। प्रादुर्भवन्तु। उत्पद्यन्ताम्। बहवः। अनेकाः। सु–जातम्। जनी–क्त। प्रशस्तजन्मानम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
হে ব্রহ্মচারী ! (যস্য তে) যে তোমার জন্য (প্রথমবাস্যম্) প্রথম পরিধানের যোগ্য (বাসঃ) বস্ত্র, (হরামঃ) আমরা তোমার পিতৃপক্ষের লোকজন নিয়ে আসি, (তম্, ত্বা) সেই তোমাকে (বিশ্বে দেবাঃ) সমস্ত গুরুদেব (অবন্তু) সুরক্ষিত করুক। (সুবৃধা বর্ধমানম্) উত্তমবৃদ্ধিতে বর্ধমান (তম্ ত্বা) সেই তোমার (অনু) পশ্চাৎ/পরের (ভ্রাতরঃ) সতীর্থ্য ভাই (বহবঃ) বহুসংখ্যায় (জায়ন্তাম্) হোক, (সুজাতম্) বিদ্যামাতা থেকে দ্বিজন্মা তোমাকে দেখে।
टिप्पणी
[ব্রহ্মচারী যখন গুরুকুলে প্রবিষ্ট হবে তখন তাঁর প্রথম পরিধানের বস্ত্র পিতৃপক্ষের লোকজন নিয়ে আসে। ব্রহ্মচারী দ্বিজন্মা হয়ে যখন স্নাতক হয়ে যায়, তখন তাঁর পরে যে ব্রহ্মচারী গুরুকুলে প্রবিষ্ট হতে থাকে, তাঁকেও নিজের সতীর্থ্য ভাই সে মনে করুক। তথা দেখো ব্রহ্মচর্যসূক্ত (অথর্ব০ ১১।৫) ।]
मन्त्र विषय
ব্রহ্মচারিণঃ সমাবর্ত্তনে বস্ত্রাদিধারণোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে ব্রহ্মচারিন্] (যস্য) যে (তে) তোমার (প্রথমবাস্যম্) প্রধানতা দ্বারা ধারণযোগ্য (বাসঃ) বস্ত্রকে (হরামঃ) আমরা নিয়ে আসি [ধারণ করাই] (তম্) সেই (ত্বা) তোমার (বিশ্বে) সব (দেবাঃ) উত্তম গুণ (অবন্তু) রক্ষা করুক। এবং (তম্) সেই (সুবৃধা) উত্তম সম্পত্তি দ্বারা (বর্ধমানম্) বর্ধিত হয়ে, (সুজাতম্) পূজনীয় জন্মবিশিষ্ট (ত্বা) তোমার (অনু) অনুক্রমে (বহবঃ) অনেক (ভ্রাতরঃ) ভাই (জায়ন্তাম্) প্রকট হোক ॥৫॥
भावार्थ
যখন ব্রহ্মচারী এইভাবে বিদ্বানদের পক্ষ থেকে সম্মান পাবে, তখন সে উত্তম গুণের প্রাপ্তি দ্বারা এমন বৃদ্ধি ও উন্নতি করুক যে, তাঁর সমান তাঁর অনান্য ভ্রাতৃগণ সংসারে যশ প্রাপ্ত করে॥৫॥
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