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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 100 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 100/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-१००
    21

    यु॒ञ्जन्ति॒ हरी॑ इषि॒रस्य॒ गाथ॑यो॒रौ रथ॑ उ॒रुयु॑गे। इ॑न्द्र॒वाहा॑ वचो॒युजा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जन्ति । हरी॒ इति॑ । इ॒षि॒रस्य॑ । गाथ॑या । उ॒रौ । रथे॑ । उ॒रुऽयु॑गे ॥ इ॒न्द्र॒ऽवाहा॑ । व॒च॒:ऽयुजा॑ ॥१००.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जन्ति हरी इषिरस्य गाथयोरौ रथ उरुयुगे। इन्द्रवाहा वचोयुजा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जन्ति । हरी इति । इषिरस्य । गाथया । उरौ । रथे । उरुऽयुगे ॥ इन्द्रऽवाहा । वच:ऽयुजा ॥१००.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 100; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गाथया) प्रशंसा के साथ (इषिरस्य) शीघ्रगामी [राजा] के (उरुयुगे) बड़े जुएवाले, (उरौ) बड़े (रथे) रथ में (इन्द्रवाहा) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को ले चलनेवाले, (वचोयुजा) वचन से जुतनेवाले (हरी) दो घोड़ों को (युञ्जन्ति) वे [सारथी आदि] जोतते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    राजा धर्म की रक्षा के लिये सुशिक्षित शीघ्रगामी घोड़ों के रथ से चलकर प्रशंसा पावें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(युञ्जन्ति) योजयन्ति (हरी) अश्वौ (इषिरस्य) शीघ्रगामिनो राज्ञः (गाथया) गायनीयया प्रशंसया (उरौ) महति (रथे) याने (उरुयुगे) महायुगयुक्ते (इन्द्रवाहा) इन्द्रस्य वोढारौ (वचोयुजा) वचनेन युज्यमानौ। सुशिक्षितौ ॥

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    विषय

    १.(इषिरस्य) = उस सर्वप्रेरक-सबको गति देनेवाले प्रभु की (गाथया) = गुणगाथा के साथ (हरी) = इन्द्रियाश्वों को (उरौ रथे) = इस विशाल शरीर-रथ में (युञ्जन्ति) = जोतते हैं। उस शरीर-रथ में इन्हें जोतते हैं, जोकि (उरुयुगे) = विशाल युगवाला है। मन ही युग है। यह आत्मा व इन्द्रियों को जोड़नेवाला है। २. ये इन्द्रियाश्व (इन्द्रवाहा) = जितेन्द्रिय पुरुष को लक्ष्य की ओर वहन करनेवाले हैं-इस जितेन्द्रिय पुरुष को ये प्रभु के समीप प्राप्त कराते हैं। (वचोयुजा) = वे इन्द्रियाश्व वेदवाणी के अनुसार कार्यों में प्रवृत्त होनेवाले हैं।

    पदार्थ

    भावार्थ-प्रेरक प्रभु का गुणगान करनेवाला व्यक्ति इन्द्रियाश्वों को शरीर-रथ में वेदवाणी के निर्देश के अनुसार युक्त करके प्रभुरूप लक्ष्य की ओर बढ़ता है।

    भावार्थ

    यह प्रभुरूप लक्ष्य की ओर बढ़नेवाला व्यक्ति 'मेध्यातिथि' बनता है। प्रभु को प्राप्त करके पवित्र प्रभु [मेध्य] का अतिथि होता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है

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    भाषार्थ

    (इषिरस्य) अभीष्टों को सिद्ध करनेवाले परमेश्वर के (गाथया) स्तुति-गानों द्वारा, उपासक (हरी) अपने द्विविध इन्द्रियाश्वों को—(उरौ रथे) बहुमूल्य और प्रशस्त शरीर-रथ में लगे (उरुयुगे) प्रशस्त युगों में, (युञ्जन्ति) योग-विधियों द्वारा, प्रत्याहार आदि साधनों द्वारा योगयुक्त करते हैं। तब ये इन्द्रियाश्व (इन्द्रवाहा) परमेश्वर का वहन करने लगते हैं, और (वचोयुजा) वेदवचनों की विधियों द्वारा योगयुक्त होते हैं।

    टिप्पणी

    [उरु=excellent, valuable (आपटे)। युगे=A yoke (आपटे), रथ का अगला डण्डा, जिसके साथ बैलों को बाँधा जाता है। इन्द्रिय गोलोकों को शरीर-रथ के ‘युग’ कहा है।]

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    विषय

    बलवान् राजा और आत्मा।

    भावार्थ

    (इषिरस्य) अति शीघ्रगामी इन्द्र राजा के (उरुयुगे) बड़े भारी जुए वाले (रथे) रथ में जिस प्रकार (हरी) वेगवान् दो अश्वों को लोग जोड़ते हैं उसी प्रकार (इषि-रस्य) इच्छा, आत्मसंकल्प में रमण करने वाले या सर्वप्रेरक आत्मा के (उरु-युगे) बड़े भारी योग बल से युक्त (उरौ) बड़े भारी (रथे) रमण योग्य रसमय स्वरूप में (वचोयुजा) वाणी के साथ ही सदा योग करने वाले (इन्द्रवाहा) इन्द्र, जीवात्मा का निरोधवृत्ति द्वारा वहन करने वाले (हरी) सदा गतिशील प्राण और अपान को (गाथया) गुण स्तुति के साथ (युञ्जन्ति) युक्त करते हैं अर्थात् योगाभ्यास द्वारा प्राणों का आयमन करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नृमेध ऋषिः। इन्द्रो देवता। उष्णिहः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Two motive forces like chariot horses, controlled by word, carry Indra, the soul, in the wide yoked spacious body-chariot by the power of the adorations of the universal mover, Indra, cosmic energy.

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    Translation

    The natural forces with their praiseworthy functioning yoke the electricity and air (Hari) as carrier which are the bearers of powerful actions and disseminators of the words (sounds) with the chariot-linke world of this Divinity lasting for many ages.

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    Translation

    The natural forces with their praiseworthy functioning yoke the electricity and air (Hari) as carrier which are the bearers of powerful actions and disseminators of the words (sounds) with the chariot-linke world of this Divinity lasting for many ages.

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    Translation

    We (the devotees) espouse the Refulgent God, leader or the learnedperson or fire (light) as our messenger, who is the showerer of all joys and fortunes, master of all fortunes and sciences and expert performer of this great sacrifice of the creation or the nation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(युञ्जन्ति) योजयन्ति (हरी) अश्वौ (इषिरस्य) शीघ्रगामिनो राज्ञः (गाथया) गायनीयया प्रशंसया (उरौ) महति (रथे) याने (उरुयुगे) महायुगयुक्ते (इन्द्रवाहा) इन्द्रस्य वोढारौ (वचोयुजा) वचनेन युज्यमानौ। सुशिक्षितौ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গাথয়া) প্রশংসার সহিত (ইষিরস্য) শীঘ্রগামীর [রাজার] (উরুযুগে) প্রশস্ত সন্ধিযুক্ত, (উরৌ) বৃহৎ (রথে) রথে (ইন্দ্রবাহা) ইন্দ্রকে [মহা ঐশ্বর্যবান রাজাকে] বহনকারী, (বচোয়ুজা) বচন দ্বারা সংযুক্তকারী/সুশিক্ষিত (হরী) দুটি ঘোড়াকে (যুঞ্জন্তি) সেই [সারথী আদি] যুক্ত করে ॥৩॥

    भावार्थ

    ধর্মের রক্ষার জন্য রাজা সুশিক্ষিত শীঘ্রগামী ঘোড়ার রথে চলে প্রশংসা লাভ করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (ইষিরস্য) অভীষ্ট-সমূহ সিদ্ধকারী/পরিপূর্ণকারী পরমেশ্বরের (গাথয়া) স্তুতি-গান দ্বারা, উপাসক (হরী) নিজের দ্বিবিধ ইন্দ্রিয়াশ্বকে—(উরৌ রথে) বহুমূল্য এবং প্রশস্ত শরীর-রথে যুক্ত (উরুযুগে) প্রশস্ত যুগে, (যুঞ্জন্তি) যোগ-বিধি দ্বারা, প্রত্যাহার আদি সাধন দ্বারা যোগযুক্ত করে। তখন এই ইন্দ্রিয়াশ্ব (ইন্দ্রবাহা) পরমেশ্বরের বহন করে, এবং (বচোযুজা) বেদবচনের বিধি দ্বারা যোগযুক্ত হয়।

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