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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 132 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 5
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    22

    कुला॑यन् कृणवा॒दिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कुला॑यन् । कृणवा॒त् । इति॑ ॥१३२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुलायन् कृणवादिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुलायन् । कृणवात् । इति ॥१३२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (कुलायन्) स्थानों को (कृणवात्) वह [परमात्मा] बनाता है, (इति) ऐसा [मानते हैं] ॥॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने यह सब बड़े लोक बनाये हैं। मनुष्य अपने हृदय को सदा बढ़ाता जावे, कभी संकुचित न करे ॥-७॥

    टिप्पणी

    −(कुलायन्) अ० २०।१२।८। कुलायन्। स्थानानि (कृणवात्) लडर्थे लेट्। करोति रचयति परमेश्वरः (इति) एवं मन्यते ॥

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    विषय

    'उदारता' व 'उत्तम घर का निर्माण'

    पदार्थ

    १. (कुलायम्) = घर को कृणवात् इति बनानेवाला हो। इस कारण से (उग्रम्) = अतिशयेन तेजस्वी (आततम्) = सर्वत्र फैले हुए सर्वव्यापक प्रभु की ही (वनिषद्) = याचना करे-प्रभु को ही पाने की प्रार्थना करे। तेजस्वी, व्यापक प्रभु का आराधन करनेवाला व्यक्ति घर को सदा उत्तम बनाता है। इस आराधक के घर में सबका जीवन उत्तम होता है। २. (अनाततम्) = जो व्यापक नहीं, उसकी पूजा न करे, अर्थात् व्यक्ति को गुरु धारण करके उसकी पूजा में ही न लग जाए। * पति घर में रोटी पकाये चूँकि पत्नी गुरुजी के दर्शन को गई हुई है' यह भी कोई घर है? और इन गुरुओं के कारण परस्पर फटाव व अकर्मण्यता उत्पन्न हो जाती है, चूंकि उनका विचार होता है कि गुरुजी का आशीर्वाद ही सब-कुछ कर देगा। अविस्तृत-संकुचित व अनुदार की (न वनिषत्) = याचना न करे। 'उदारं धर्ममित्याहुः'उदार ही धर्म है। संकुचित तो कभी धर्म होता ही नहीं। महत्ता ही उपादेय हो। यह महान् पुरुष ही उत्तम घर का निर्माण करनेवाला होता है।

    भावार्थ

    जो यह चाहता है कि वह उत्तम घर का निर्माण करे-उसे तेजस्वी, सर्वव्यापक प्रभु की ही याचना करनी चाहिए। यह कभी अनुदारता व अल्पता की ओर नहीं जाता।

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    भाषार्थ

    अतः उपासक हम ब्रह्म को ही (कुलायम्) अपना घोंसला अर्थात् आश्रय (कृणवात् इति) बनाए। अर्थात् जैसे पक्षी-शावक घोंसले में विश्राम पाता है, वैसे उपासक ब्रह्मरूपी घोंसले को अपना विश्राम-स्थान बनाए।

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    वह (कुलायं) गृह, आश्रय, बड़ा संगठन (कृणवात्) बनावे (इति) इस कारण से।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    It is that who makes and directs the homes and families of humanity, nests for birds and dens for animals.

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    Translation

    God makes the rehabilitating places, it is known.

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    Translation

    God makes the rehabilitating places, it is known.

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    Translation

    He then enjoys a vast and huge fortune.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(कुलायन्) अ० २०।१२।८। कुलायन्। स्थानानि (कृणवात्) लडर्थे लेट्। करोति रचयति परमेश्वरः (इति) एवं मन्यते ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (কুলায়ন্) স্থানসমূহ (কৃণবাৎ) সেই [পরমাত্মা] নির্মান করেন, (ইতি) এরূপ [মান্য] ॥৫॥

    भावार्थ

    পরমাত্মাই এই সকল লোক-সমূহের নির্মাণ করেছেন। মনুষ্য নিজের হৃদয় সর্বদা প্রসারিত করুক, কখনো সঙ্কুচিত না করুক ॥৫-৭॥

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    भाषार्थ

    অতঃ উপাসক [আমরা] ব্রহ্মকেই (কুলায়ম্) নিজের কুল অর্থাৎ আশ্রয় (কৃণবাৎ ইতি) করি। অর্থাৎ যেমন পক্ষী-শাবক নীড়ের মধ্যে বিশ্রাম পায়, তেমনই উপাসক ব্রহ্মরূপী নীড়কে নিজের বিশ্রাম-স্থান করুক।

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