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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१८
    25

    मा नो॑ नि॒दे च॒ वक्त॑वे॒ऽर्यो र॑न्धी॒ररा॑व्णे। त्वे अपि॒ क्रतु॒र्मम॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । नि॒दे । च॒ । वक्त॑वे । अ॒र्य: । र॒न्धी॒: । अरा॑व्णे ॥ त्वे इति॑ । अपि॑ । क्रतु॑: । मम॑ ॥१८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो निदे च वक्तवेऽर्यो रन्धीरराव्णे। त्वे अपि क्रतुर्मम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । निदे । च । वक्तवे । अर्य: । रन्धी: । अराव्णे ॥ त्वे इति । अपि । क्रतु: । मम ॥१८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 18; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (अर्यः) स्वामी तू (नः) हमको (निदे) निन्दक के, (च) और (वक्तवे) बकवादी (अराव्णे) अदानी पुरुष के (मा रन्धीः) वश में मत कर। (त्वे) तुझमें (अपि) ही (मम) मेरी (क्रतुः) बुद्धि है ॥॥

    भावार्थ

    राजा प्रजा में श्रेष्ठ कर्मों का प्रचार करे और गुणों में दोष लगानेवाले निन्दकों को हटावे ॥॥

    टिप्पणी

    −(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (निदे) निन्दकाय (च) (वक्तवे) सितनिगमि०। उ० १।६९। वच परिभाषणे-तुन्। परुषभाषिणे। बकवादिने (अर्यः) स्वामी त्वम् (मा रन्धीः) रध हिंसापाकयोः-लुङ्। रधिजभोरचि। पा० ७।१।६१। इति नुमागमः। रध्यतिर्वशगमनेऽपि-निरु० १०।४०। मा नाशय। मा वशीकुरु (अराव्णे) रा दाने-वनिप्। अदानिने (त्वे) त्वयि (अपि) एव (क्रतुः) प्रज्ञा (मम) ॥

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    विषय

    न निन्दा, न कठोरभाषण, न कृपणता

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! (अर्य:) = स्वामी आप (नः) = हमें (निदे) = निन्दक के लिए (मा रन्धी:) = मत वशीभूत कीजिए। (च) = और (वक्तवे) = बहुत व कठोर बोलनेवाले के लिए वशीभूत मत कीजिए। अराणे अदानशील के लिए वशीभूत मत कीजिए। हम निन्दा-कठोर-भाषण व कृपणता से दूर हों। २. हे प्रभो! (मम क्रतुः) = मेरा संकल्प व स्तुतिरूप कर्म (अपि) = भी (त्वे) = आपके विषय में ही हो। मैं आपको ही चाहूँ, आपका ही स्तवन करुं।

    भावार्थ

    हम निन्दा, कटुभाषण व कृपणता से दूर रहकर प्रभु की प्राप्ति की कामनावाले हों-प्रभु का ही स्तवन करें।

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    भाषार्थ

    (अर्यः) हे परमेश्वर! आप सर्वाधीश हैं। (निदे) आपकी निन्दा करनेवाले, (च) और (वक्तवे) बकवासी, तथा (अराव्णे) अदानी के (रन्धीः मा नः) वश में हमें न कीजिए। (मम) मुझ उपासक के (क्रतुः) कर्म और प्रज्ञाएँ (अपि) भी (त्वे) आपके प्रति समर्पित हैं।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    हे इन्द्र ! परमेश्वर एवं राजन् ! (नः) हमें (निदे) निन्दक पुरुष के (मा रन्धीः) अधीन मतकर, उसके वश में उसके अधिकार में मत रख। (अपि) तू हमारा स्वामी ईश्वर होकर भी (अराव्णे) अदानशील कंजूस और (वक्तवेः) कठोर एवं अपशब्द भाषी पुरुष के भी (मा रन्धीः) वश में हमें मत रख। (अपि) और (मे) मेरा (क्रतुः) सब संकल्प और ज्ञान, विचार सब कुछ (त्वे) तेरे ही लिये है। भक्तों का ब्रह्मार्पण इस मन्त्र से स्पष्ट है। यत् करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्। यत् तपस्यसि कौन्तेय तत् कुरुष्व मदर्पणम्॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ काण्वो मेधातिथिः रांगिरसः प्रियमेधश्च ऋषी। ४-६ वसिष्ठः। इन्द्रो देवता गायत्री। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surrender and Security

    Meaning

    O lord ruler of the nation, leave us not to the reviler, malignant scandaliser, and the selfish miser. My strength, intelligence and action sustains in you and flows from there.

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    Translation

    O God Almighty, you are the master. Please put me not under reproachful man, give me not to the calumny of talkative avaricious person. My strength and approach is only in you.

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    Translation

    O God Almighty, you are the master. Please put me not under reproachful man, give me not to the calumny of talkative avaricious person. My strength and approach is only in you.

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    Translation

    O Lord of ours, let us not be put under the control of a reviler, the harsh-tongued one, or the miserly person. All thoughts, knowledge or actions of mine are set on Thee alone.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (निदे) निन्दकाय (च) (वक्तवे) सितनिगमि०। उ० १।६९। वच परिभाषणे-तुन्। परुषभाषिणे। बकवादिने (अर्यः) स्वामी त्वम् (मा रन्धीः) रध हिंसापाकयोः-लुङ्। रधिजभोरचि। पा० ७।१।६१। इति नुमागमः। रध्यतिर्वशगमनेऽपि-निरु० १०।४०। मा नाशय। मा वशीकुरु (अराव्णे) रा दाने-वनिप्। अदानिने (त्वे) त्वयि (अपि) एव (क्रतुः) प्रज्ञा (मम) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে রাজন্!] (অর্যঃ) স্বামী তুমি (নঃ) আমাদের (নিদে) নিন্দুকের, (চ) এবং (বক্তবে) বাচাল (অরাব্ণে) অদানী পুরুষের (মা রন্ধীঃ) বশবর্তী করো না। (ত্বে) তোমার প্রতি (অপি)(মম) আমার (ত্রুতুঃ) বুদ্ধি।।৫।।

    भावार्थ

    রাজা প্রজাদের মাঝে শ্রেষ্ঠ কর্মসমূহের প্রচার করুক এবং গুণের মধ্যে দোষ স্থাপনকারী নিন্দুকদের বিতাড়িত করুক।।৫।।

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    भाषार्थ

    (অর্যঃ) হে পরমেশ্বর! আপনি সর্বাধীশ। (নিদে) আপনার নিন্দুক, (চ) এবং (বক্তবে) জল্পনাকারী/বাচাল, তথা (অরাব্ণে) কৃপণ/অদানী-এর (রন্ধীঃ মা নঃ) বশবর্তী আমাদের করবেন না। (মম) আমার [উপাসকের] (ক্রতুঃ) কর্ম এবং প্রজ্ঞা (অপি)(ত্বে) আপনার প্রতি সমর্পিত।

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