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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
    ऋषिः - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४
    29

    स्वा॒दुष्टे॑ अस्तु सं॒सुदे॒ मधु॑मान्त॒न्वे॒ तव॑। सोमः॒ शम॑स्तु ते हृ॒दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वा॒दु: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । स॒म्ऽसुदे॑ । मधु॑ऽमान् । त॒न्वे॑ । तव॑ । सोम॑: । शम् । अ॒स्तु॒ । ते॒ । हृदे ॥४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वादुष्टे अस्तु संसुदे मधुमान्तन्वे तव। सोमः शमस्तु ते हृदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वादु: । ते । अस्तु । सम्ऽसुदे । मधुऽमान् । तन्वे । तव । सोम: । शम् । अस्तु । ते । हृदे ॥४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    महौषधियों के रसपान का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (सोमः) सोम [उत्तम ओषधियों का रस] (ते) तेरे (संसुदे) स्वीकार करने के लिये (स्वादुः) स्वादु [रोचक] और (तव) तेरे (तन्वे) शरीर के लिये (मधुमान्) मधुर रसवाला (अस्तु) होवे और (ते) तेरे (हृदे) हृदय के लिये (शम्) शान्तिकारक (अस्तु) होवे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य ऐसी उत्तम ओषधियों का रससेवन करें जो खाने में स्वादिष्ट हों, शरीर को पुष्ट और हृदय को शान्त करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(स्वादुः) रोचकः (ते) तव (अस्तु) (संसुदे) षूद आश्रुतिहत्योः-क्विप्, छान्दसो ह्रस्वः, आश्रुतिरङ्गीकारः। सम्यक् स्वीकरणाय (मधुमान्) माधुर्योपेतः (तन्वे) शरीराय (तव) (सोमः) सदौषधिरसः (तन्वे) शरीराय (शम्) सुखकरः (अस्तु) (ते) तव (हृदे) हृदयाय ॥

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    विषय

    आनन्द-माधुर्य-शान्ति

    पदार्थ

    १. (संसुदे) = उत्तम दानशील (ते) = तेरे लिए यह सोम (स्वादुः अस्तु) = जीवन को मधुर बनानेवाला हो। (तव तन्वे) = तेरे शरीर के लिए (मधुमान्) = प्रशस्त माधुर्यवाला हो। जब व्यक्ति कर्मशील बनता है तब भोगासक्ति से ऊपर उठता है। भोगों से ऊपर उठा हुआ यह जीवन को मधुर बना पाता है-इसके शरीर के सब अंगों की क्रियाएँ माधुर्य को लिये हुए होती हैं। २. (सोमः) = शरीर में सुरक्षित यह सोम (ते हृदे शम् अस्तु) = तेरे हृदय के लिए शान्ति देनेवाला हो। सोमी पुरुष के हृदय में राग-द्वेष क्षोभ पैदा करनेवाले नहीं होते-यह राग-द्वेष से शून्य जीवनवाला बनता है।

    भावार्थ

    सोम-रक्षण द्वारा हमारा जीवन आनन्दमय हो, व्यवहार मधुर हो तथा हृदय शान्ति से युक्त हो। अगले सूक्त का ऋषि भी 'इरिम्बिठिः' ही है -

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    भाषार्थ

    हे उपासक शिष्य! (मधुमान्) मधुर भक्तिरस (ते) तेरे लिए (स्वादुः) स्वादिष्ठ (अस्तु) हो। ताकि तू (संसुदे) सांसारिक भोगों का सम्यक् रूप में निषूदन कर सके। यह मधुर भक्तिरस (तव) तेरे (तन्वे) समग्र शरीर के लिए (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो। (सोमः) यह मधुर भक्तिरस (ते) तेरे (हृदे) हृदय के लिए भी (शम् अस्तु) शान्तिप्रद हो।

    टिप्पणी

    [स्वादुः—आध्यात्मिक मधुर-स्वाद के होते, सांसारिक भोगों का स्वाद फीका पड़ जाता है। धावतु=गति और विशुद्धि; धावु गतिशुद्ध्योः।]

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    विषय

    ईश्वर की उपासना।

    भावार्थ

    हे इन्द्र ! (संसुदे) उत्तम दानशील (ते) तेरे लिये (मधुमान्) मधुर गुणयुक्त यह (सोमः) सोम (स्वादुः) उत्तम स्वादिष्ठ हो और (तव तन्वे शम्) तेरे शरीर के लिये शान्तिदायक हो। और (ते हृदे) तेरे हृदय के लिये भी (शम् अस्तु) शान्तिदायक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बिठि ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    May the soma be delicious to your taste, O connoisseur of soma, may the honey sweets be exhilarating to your body, and may the soma bring peace and joy to your heart.

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    Translation

    O king let it be palatable for benevolent you, let it be of sweet effect for your body and let the Soma-juice be sweet for your heart.

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    Translation

    O king let it be palatable for benevolent you, let it be of sweet effect for your body and let the Soma-juice be sweet for your heart.

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    Translation

    O noble donor, let this sweet Soma be tasteful to thee. Let it be peaceful to thy body and wholesome to thy heart.

    Footnote

    (1-3) cf. Rig, 8.17 (4-6)

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(स्वादुः) रोचकः (ते) तव (अस्तु) (संसुदे) षूद आश्रुतिहत्योः-क्विप्, छान्दसो ह्रस्वः, आश्रुतिरङ्गीकारः। सम्यक् स्वीकरणाय (मधुमान्) माधुर्योपेतः (तन्वे) शरीराय (तव) (सोमः) सदौषधिरसः (तन्वे) शरीराय (शम्) सुखकरः (अस्तु) (ते) तव (हृदे) हृदयाय ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মহৌষধিরসপানোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে রাজন্ !] (সোমঃ) সোম [উত্তম ঔষধিসমূহের রস] (তে) তোমাকে (সংসুদে) স্বীকার করার জন্য (স্বাদুঃ) সুস্বাদু [রোচক] এবং (তব) তোমার (তন্বে) শরীরের জন্য (মধুমান্) মধুর রসযুক্ত (অস্তু) হোক এবং (তে) তোমার (হৃদে) হৃদয়ের জন্য (শম্) শান্তিকারক (অস্তু) হোক॥৩॥

    भावार्थ

    ভাবার্থ- মানুষ্য এমন উত্তম ঔষধিসমূহের রস সেবন করুক, যা সুস্বাদু, শরীরকে পুষ্ট করে এবং হৃদয়কে শান্ত করে॥৩॥

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    भाषार्थ

    হে উপাসক শিষ্য! (মধুমান্) মধুর ভক্তিরস (তে) তোমার জন্য (স্বাদুঃ) সুস্বাদু (অস্তু) হোক। যাতে তুমি (সংসুদে) সাংসারিক ভোগ-সমূহের সম্যক্ রূপে নাশ করতে পারো। এই মধুর ভক্তিরস (তব) তোমার (তন্বে) সমগ্র শরীরের জন্য (শম্) শান্তিদায়ক (অস্তু) হোক। (সোমঃ) এই মধুর ভক্তিরস (তে) তোমার (হৃদে) হৃদয়ের জন্যও (শম্ অস্তু) শান্তিপ্রদ হোক।

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