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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५७
    23

    उप॑ नः॒ सव॒ना ग॑हि॒ सोम॑स्य सोमपाः पिब। गो॒दा इद्रे॒वतो॒ मदः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । न॒: । सव॑ना । आ । ग॒हि॒ । सोम॑स्य । सोम॒ऽपा॒: । पि॒ब॒ ॥ गो॒ऽदा: । इत् । रे॒वत॑: । मद॑: ॥५७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप नः सवना गहि सोमस्य सोमपाः पिब। गोदा इद्रेवतो मदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । न: । सवना । आ । गहि । सोमस्य । सोमऽपा: । पिब ॥ गोऽदा: । इत् । रेवत: । मद: ॥५७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (4)

    विषय

    १-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (सोमपाः) हे ऐश्वर्य के रक्षक ! [राजन्] (नः) हमारे लिये (सवना) ऐश्वर्ययुक्त पदार्थों को (उप) समीप से (आ गहि) तू प्राप्त हो और (सोमस्य) सोम [तत्त्व रस] का (पिब) पान कर, (रेवतः) धनवान् पुरुष का (मदः) हर्ष (इत्) ही (गोदाः) दृष्टि का देनेवाला है ॥२॥

    भावार्थ

    राजा ऐश्वर्यवान् और दूरदर्शी होकर प्रसन्नतापूर्वक प्रजा को ज्ञानवान् बनावे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(उप) समीपे (नः) अस्मभ्यम् (सवना) ऐश्वर्ययुक्तानि वस्तूनि (आ) समन्तात् (गहि) गच्छ। प्राप्नुहि (सोमस्य) तत्त्वरसस्य (सोमपाः) हे ऐश्वर्यरक्षक (पिब) पानं कुरु (गोदाः) क्विप् च। पा० ३।२।७६। गो+ददातेः-क्विप्। गोर्दृष्टेर्दाता (इत्) एव (रेवतः) धनवतः पुरुषस्य (मदः) हर्षः ॥

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    विषय

    सवन+सोमपान दान

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! (नः सवना उप आगहि) = हमारे यज्ञों में आप समीपता से प्राप्त होइए। आपने ही तो इन यज्ञों को पूर्ण करना है। (सोमपा:) = सोम का रक्षण करनेवाले प्रभो! आप (सोमस्य पिब) = सोम का पान कीजिए। आप ही वासना-विनाश द्वारा हमारे जीवन में सोम का रक्षण करेंगे। २. (रेवत:) = एक धनी पुरुष का (मदः) = वास्तविक हर्ष (इत्) = निश्चय से (गोदा:) = गौओं को देनेवाला है। यज्ञमय जीवनवाला धनी पुरुष निश्चय से दानशील होता है। वस्तुतः यह दानशीलता ही उसके हर्ष का कारण बनती है।

    भावार्थ

    हम यज्ञों को करानेवाले हों, सोम का रक्षण करें और सम्पन्न होकर दानशील बनें। देने में हम आनन्द का अनुभव करें।

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    भाषार्थ

    (सोमपाः) हे परमेश्वर! आप भक्तिरस चाहते हैं। (नः) हमारे (सवना) उपासना-यज्ञों में आप (उप आ गहि) हमारे हृदयस्थ हूजिए, और (सोमस्य) भक्तिरस को (पिब) स्वीकार कीजिए। (रेवतः) सब सम्पत्तियों के स्वामी आपकी (मदः) प्रसन्नता (गोदा इत्) हमें अवश्य ज्ञान प्रकाश देती है। [गो=किरणें प्रकाश+दा।]

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    विषय

    ईश्वरस्तुति।

    भावार्थ

    हे इन्द्र ! तू (नः) हमारे (सवना) उपासनाओं में (उप आगहि) प्राप्त हो और हमें (सवना उपागहि) ऐश्वर्य युक्त पदार्थ प्रदान करने के लिये प्राप्त हो। तू (सोमस्य) राष्ट्र एवं जगत् के बीच में (सोमपाः) समस्त ऐश्वर्य का पालक होकर उसका (पिब) पानकर, भोग कर। (रेवतः) ऐश्वर्यवान् आत्मा को (मदः) परम आनन्द प्रद होकर भी उसको (गोदाः) इन्द्रिय सामर्थ्य और उत्तम भूमि तथा पशु आदि का प्रदान करने हारा है। अथवा—(रेवतः) तुझ ऐश्वर्यवान् का (मदः) परमानन्द भी (गो-दाः) वेद वाणी का ज्ञान करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। शेषाः पूर्वोक्ताः। षोडशचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, lord of light, protector of yajnic joy, promoter of sense and mind, come to our yajna, accept our homage of soma and give us the light and ecstasy of the soul.

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    Translation

    O King, you come to our Yajnas and prayers held, you are the drinker of juices of fruits plants etc. so you drink it. The pleasure of the rich one is the giver of cow, land etc.

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    Translation

    O King, you come to our Yajnas and prayers held, you are the drinker of juices of fruits plants etc. so you drink it. The pleasure of the rich one is the giver of cow, land etc.

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    Translation

    O Lord of bounties, come to us in our sacrificial ceremonies. Latest Thee, the Protector of all creation, protect this essence of herbs produced by us. Verily Thou art the Giver of all articles of enjoyment and means thereof like cow, vigour of all sense-organs and Vedic lore and land to the fortunate devotee (soul).

    Footnote

    (1-2) Coming of God to the devotees means being realised by them els He is present everywhere, even in their innermost recesses of their hearts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(उप) समीपे (नः) अस्मभ्यम् (सवना) ऐश्वर्ययुक्तानि वस्तूनि (आ) समन्तात् (गहि) गच्छ। प्राप्नुहि (सोमस्य) तत्त्वरसस्य (सोमपाः) हे ऐश्वर्यरक्षक (पिब) पानं कुरु (गोदाः) क्विप् च। पा० ३।२।७६। गो+ददातेः-क्विप्। गोर्दृष्टेर्दाता (इत्) एव (रेवतः) धनवतः पुरुषस्य (मदः) हर्षः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-১০ মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সোমপাঃ) হে ঐশ্বর্যের রক্ষক ! [রাজন্] (নঃ) আমাদের জন্য (সবনা) ঐশ্বর্যযুক্ত পদার্থকে (উপ) সম্মুখে (আ গহি) তুমি প্রাপ্ত হও এবং (সোমস্য) সোম রস [তত্ত্ব রস] (পিব) পান করো, (রেবতঃ) ধনবান্ পুরুষের (মদঃ) হর্ষ (ইৎ)(গোদাঃ) দৃষ্টি প্রদাতা॥২॥

    भावार्थ

    রাজা ঐশ্বর্যবান্ এবং দূরদর্শী হয়ে প্রসন্নতাপূর্বক প্রজাকে জ্ঞানবান্ করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (সোমপাঃ) হে পরমেশ্বর! আপনি ভক্তিরস কামনা করেন। (নঃ) আমাদের (সবনা) উপাসনা-যজ্ঞে আপনি (উপ আ গহি) আমাদের হৃদয়স্থ হন, এবং (সোমস্য) ভক্তিরস (পিব) স্বীকার করুন। (রেবতঃ) সব সম্পত্তির স্বামী আপনার (মদঃ) প্রসন্নতা (গোদা ইৎ) আমাদের অবশ্যই জ্ঞান প্রকাশ প্রদান করে। [গো=কিরণ প্রকাশ+দা।]

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