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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 65/ मन्त्र 2
    ऋषिः - विश्वमनाः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६५
    17

    अगो॑रुधाय ग॒विषे॑ द्यु॒क्षाय॒ दस्म्यं॒ वचः॑। घृ॒तात्स्वादी॑यो॒ मधु॑नश्च वोचत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अगो॑ऽरुधाय । गो॒ऽइषे॑ । द्युक्षाय॑ । दस्म्य॑म् । वच॑: ॥ घृ॒तात् । स्वादी॑य: । मधु॑न: । च॒ । वो॒च॒त॒ ॥६५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अगोरुधाय गविषे द्युक्षाय दस्म्यं वचः। घृतात्स्वादीयो मधुनश्च वोचत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अगोऽरुधाय । गोऽइषे । द्युक्षाय । दस्म्यम् । वच: ॥ घृतात् । स्वादीय: । मधुन: । च । वोचत ॥६५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 65; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अगोरुधाय) दृष्टि को न रोकनेवाले, (गविषे) स्तोताओं [गुणव्याख्याताओं] को चाहनेवाले, (द्युक्षाय) व्यवहारों में गतिवाले, [उस परमेश्वर] के लिये (घृतात्) घृत से (च) और (मधुनः) मधु [रस विशेष] से (स्वादीयः) अधिक स्वादु और (दस्म्यम्) दर्शनीय [विचारणीय] (वचः) वचन (वोचत) तुम बोलो ॥२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम परमेश्वर की स्तुति नम्रतापूर्वक करके अपना सामर्थ्य बढ़ाओ, वह जगदीश्वर अनन्त बली, अनन्त धनी और अनन्त दानी है ॥२, ३॥

    टिप्पणी

    २−(अगोरुधाय) गमेर्डोः। उ० २।६७। गच्छतेर्डो, रुधिर् आवरणे-कप्रत्ययः। अदृष्टिरोधकस्य (गविषे) गो+इषु इच्छायाम्-क्विप्। गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। स्तोतॄन् इच्छवे (द्युक्षाय) अ० २०।९।२। व्यवहारेषु गतिशीलाय (दस्म्यम्) अ० २०।१७।२। दस्म-यत्। दर्शनार्हम्। विचारणीयम् (वचः) वचनम् (घृतात्) आज्यात् (स्वादीयः) स्वादुतरम् (मधुनः) रसविशेषम् (च) (वोचत) लोडर्थे लुङ्, अडभावः। ब्रूत ॥

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    विषय

    'घृत व मधु' से अधिक स्वादिष्ट वचन

    पदार्थ

    १. (अगोरुधाय) = [गाः न रुणद्धि]-ज्ञान की वाणियों को न रोकनेवाले निरन्तर ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करानेवाले, (गविषे) [गो+इष] = हमारे लिए उत्तम इन्द्रियों को प्रेरित करनेवाले और इसप्रकार (घुक्षाय) = प्रकाश में निवास करानेवाले प्रभु के लिए-प्रभु की प्राप्ति के लिए दस्म्य वचः दु:ख का नाश करनेवालों में उत्तम वचन को (वोचत) = बोलो। दु:खियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व दु:खनिवारक वचनों को बोलनेवाला ही उस प्रभु को प्राप्त करता है, जो निरन्तर ज्ञान की वाणियों व उत्तम इन्द्रियों को प्राप्त कराके हमें प्रकाश में निवासवाला बनाते हैं। २.हे मनुष्यो! प्रभु की प्राप्ति के लिए घृतात् स्वादीयः-घृत से भी अधिक (स्वादिष्ट च) = तथा (मधुनः) = शहद से भी अधिक मधुर वचन [वोचत] बोलो। कटुवचन दूसरे के हृदय को काटते हुए अन्त:स्थित प्रभु के भी निरादर का कारण होते हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु-प्राप्ति के लिए 'दुःखनाशक, घृत से भी स्वादिष्ट और शहद से भी अधिक मधुर' वचनों को बोलें। प्रभु ज्ञान की वाणियों व उत्तम इन्द्रियों को प्राप्त कराके हमारे लिए प्रकाश को प्राप्त कराते हैं।

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    भाषार्थ

    (अगोरुधाय) अग्रगमन अर्थात् आगे बढ़ने में जो रुकावट नहीं डालता, अपितु (गविषे) आगे बढ़ने को जो चाहता है, (द्युक्षाय) द्युलोक तथा प्रकाश में जिसका निवास है, उसके प्रति, (दस्म्यं वचः) दर्शनीय स्तुतिगीत (वोचत) मधुर स्वरों से गाया करो, जो स्तुतिगीत कि (घृतात्) घृत से (च) और (मधुनः) शहद से भी (स्वादीयः) अधिक स्वादु अर्थात् मधुर हों।

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    विषय

    परमेश्वर और राजा।

    भावार्थ

    हे मित्रो ! आप लोग (गविषे) गौ=स्तुति या वेदवाणियों को प्रेरणा करने वाले और (अगोरुधाय) अपने ज्ञानकिरणों को न रोक रखने वाले, उनको प्रसार करने वाले (द्युक्षाय) प्रकाशस्वरूप, उस परमेश्वर की स्तुति के लिये (घृतात् स्वादीयः) घृत, जल से भी अधिक स्वादु,अधिक स्निग्ध और (मधुनः च स्वादीयः) मधु से भी मधुर (दस्म्यं) दर्शनीय (वचः) वचन का (वोचत) उच्चारण करो। राजा के पक्ष में—(गविषे) गौ = आज्ञा के दाता और (अगोरुधाय) गौ भूमियों पर अपना स्वत्व न रखने वाले वा लोगों की भूमि आदि न छीनने वाले, दानशील राजा के प्रति घी से अधिक स्नेहमय और मधु से अधिक मधुर वचन का प्रयोग करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमनाः वैयश्व ऋषिः। इन्द्रो देवता। उष्णिहः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Sing delightful songs of adoration in words more delicious than the taste of ghrta and sweetness of honey in honour of lndra, heavenly lord of light, who loves sweet speech and never feels satiated with songs of exaltation.

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    Translation

    O men, you speak wondrous speech sweeter than butter and sweeter than honey for Almighty God who favours devotees who is all-luminous and who does not hinder the diffusion of knowledge.

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    Translation

    O men, you speak wondrous speech sweeter than butter and sweeter than honey for Almighty God who favors devotees, who is all-luminous and who does not hinder the diffusion of knowledge.

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    Translation

    Friends, for the praises of the Refulgent God, Who does not keep back His rays of Light and Learning, but spreads the Vedic lore, speaks beautiful words, far sweeter than butter and honey even. Note:—The verse can also apply to the king.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अगोरुधाय) गमेर्डोः। उ० २।६७। गच्छतेर्डो, रुधिर् आवरणे-कप्रत्ययः। अदृष्टिरोधकस्य (गविषे) गो+इषु इच्छायाम्-क्विप्। गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। स्तोतॄन् इच्छवे (द्युक्षाय) अ० २०।९।२। व्यवहारेषु गतिशीलाय (दस्म्यम्) अ० २०।१७।२। दस्म-यत्। दर्शनार्हम्। विचारणीयम् (वचः) वचनम् (घृतात्) आज्यात् (स्वादीयः) स्वादुतरम् (मधुनः) रसविशेषम् (च) (वोचत) लोडर्थे लुङ्, अडभावः। ब्रूत ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অগোরুধায়) দৃষ্টিকে অপ্রতিহতকারী/অনবরোধকারী/অনবরুদ্ধকারী, (গবিষে) স্তোতাদের [গুণ ব্যাখ্যাতাদের] অভিলাষী/কামনাকারী, (দ্যুক্ষায়) ব্যবহারে গতিশীল, [পরমেশ্বরের] জন্য (ঘৃতাৎ) ঘৃত (চ) এবং (মধুনঃ) মধু [রস বিশেষ] থেকেও (স্বাদীয়ঃ) অধিক স্বাদু এবং (দস্ম্যম্) দর্শনীয় [বিচারণীয়] (বচঃ) বচন (বোচত) তুমি বলো ॥২॥

    भावार्थ

    হে মনুষ্য ! তুমি পরমেশ্বরের স্তুতি নম্রতাপূর্বক করে নিজ সামর্থ্য বৃদ্ধি করো, জগদীশ্বর অনন্ত বলবান্, অনন্ত ঐশ্বর্যবান্ এবং অনন্ত দাতা ॥২, ৩॥

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    भाषार्थ

    (অগোরুধায়) অগ্রগমনে যিনি বাধা দেন না, অপিতু (গবিষে) যিনি অগ্রসর হতে চান, (দ্যুক্ষায়) দ্যুলোক তথা প্রকাশময় লোকে যার নিবাস, উনার প্রতি, (দস্ম্যং বচঃ) দর্শনীয় স্তুতিগীত (বোচত) মধুর স্বরে গান করো, যে স্তুতিগীত (ঘৃতাৎ) ঘৃত থেকে (চ) এবং (মধুনঃ) মধু থেকেও (স্বাদীয়ঃ) অধিক স্বাদু অর্থাৎ মধুর।

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