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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९
    16

    त्वां स्तोमा॑ अवीवृध॒न्त्वामु॒क्था श॑तक्रतो। त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । स्तोमा॑: । अ॒वी॒वृ॒ध॒न् । त्वाम् । उ॒क्था । श॒त॒क्र॒तो॒ ‍इति॑ शतऽक्रतो ॥ त्वाम् । व॒र्ध॒न्तु॒ । न॒: । गिर॑: ॥६९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां स्तोमा अवीवृधन्त्वामुक्था शतक्रतो। त्वां वर्धन्तु नो गिरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । स्तोमा: । अवीवृधन् । त्वाम् । उक्था । शतक्रतो ‍इति शतऽक्रतो ॥ त्वाम् । वर्धन्तु । न: । गिर: ॥६९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-८ पराक्रमी मनुष्य के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों व्यवहारों में बुद्धिवाले मनुष्य (त्वाम्) तुझको (स्तोमाः) बड़ाई योग्य गुणों ने और (त्वाम्) तुझको (उक्था) कहने योग्य कर्मों ने (अवीवृधन्) बढ़ाया है। (त्वाम्) तुझको (नः) हमारी (गिरः) स्ततियाँ (वर्धन्तु) बढ़ावें ॥६॥

    भावार्थ

    श्रेष्ठकर्मी मनुष्य सदा विद्वानों के सत्सङ्ग से उपकार शक्ति बढ़ाते रहें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(त्वाम्) (स्तोमाः) स्तुत्यगुणाः (अवीवृधन्) वृधु वृद्धौ ण्यन्ताल्लुङ्। वर्धितवन्तः (त्वाम्) (उक्था) पातॄतुदिवचि०। उ० २।७। वच परिभाषणे-थक्। वक्तव्यानि प्रशंसनीयानि कर्माणि (शतक्रतो) बहुव्यवहारेषु बुद्धियुक्त (त्वाम्) (वर्धन्तु) अन्तर्गतण्यर्थः। वर्धयन्तु (नः) अस्माकम् (गिरः) स्तुतयः ॥

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    विषय

    स्तोम+उक्थ-गी:

    पदार्थ

    १. हे (शतक्रतो) = अनन्त कर्मों व प्रज्ञानोंवाले प्रभो! (त्वाम्) = आपको (स्तोमा:) = हम सामगान करनेवालों के स्तोम [स्तुतिसमूह] (अवीवृधन्) = बढ़ानेवाले हों। हम हृदय में भक्ति की भावना से भरित होकर साममन्त्रों से आपके गुणों का गायन करें। २. ज्ञानी पुरुष के (उक्था) = स्तुतिवचन भी (त्वाम्) = आपकी महिमा को ही बढ़ाते हैं। (न:) = हम कर्मकाण्डियों की (गिर:) = वाणियाँ भी (त्वां वर्धन्तु) = आपको ही बढ़ानेवाली हैं।

    भावार्थ

    भक्तों के स्तोम, ज्ञानियों के उक्थ तथा कर्मकाण्डियों को गिराएँ-सभी प्रभु की महिमा का वर्धन करनेवाली हों।

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    भाषार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों अद्भुत कर्मोंवाले परमेश्वर! (स्तोमाः) वैदिक सामगानों ने (त्वा) आपके यश को (अवीवृधन्) बढ़ाया है। (उक्था) वैदिक सूक्तों ने (त्वा) आपके यश को बढ़ाया है। (नः) हमारी (गिरः) स्तुतिवाणियाँ भी (त्वा) आपके यश को (वर्धन्तु) बढ़ाएँ।

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    विषय

    राजा, सेनापति, परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे परमेश्वर ! (स्तोमाः) वेदमन्त्रसमूह (त्वां अवीवृधन्) तुझे बढ़ाते हैं (उक्था) अन्य वेदमन्त्र भी हे (शतक्रतो) सैकड़ों कर्मों और प्रज्ञानों वाले ! (त्वां) तुझ को ही बढ़ाते हैं। तेरी ही महिमा का गान करते हैं। (नः गिरः) हमारी वाणियों भी (त्वां वर्धन्तु) तुझे ही बढ़ावें। राजा के पक्ष में—(स्तोमाः) समस्त राजा के अधिकार और (उक्था) आज्ञाएं भी (त्वां अवीवृधन्) तुझे बढ़ाते हैं, पुष्ट करते हैं और (नः गिरः) हम प्रजाओं की वाणियां भी (त्वां वर्धन्तु) तुझे बढ़ावें, तेरे मान प्रतिष्ठा और उत्साह को बढ़ावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, supreme lord of omnipotence and majesty, the Stoma hymns of the Veda celebrate your glory. Lord infinite of countless acts of creation, the Uktha hymns sing of your power and action. So may all our songs of devotion and homage light up your presence and grandeur all round.

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    Translation

    O Lord of hundred powers, the set of prayers propagate your glory, praises glorify your merits and may our speeches duly praise you.

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    Translation

    O Lord of hundred powers, the set of prayers propagate your glory, praises glorify your merits and may our speeches duly praise you.

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    Translation

    O Performer of hundreds of acts of munificence, let our singing the collection of Vedic verses enhance Thy Glory. The Vedic songs also extol Thee. Let our speeches also enhance Thee, by preaching Thy good qualities to the people.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(त्वाम्) (स्तोमाः) स्तुत्यगुणाः (अवीवृधन्) वृधु वृद्धौ ण्यन्ताल्लुङ्। वर्धितवन्तः (त्वाम्) (उक्था) पातॄतुदिवचि०। उ० २।७। वच परिभाषणे-थक्। वक्तव्यानि प्रशंसनीयानि कर्माणि (शतक्रतो) बहुव्यवहारेषु बुद्धियुक्त (त्वाम्) (वर्धन्तु) अन्तर्गतण्यर्थः। वर्धयन्तु (नः) अस्माकम् (गिरः) स्तुतयः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৮ পরাক্রমিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে বহু ব্যবহারে বুদ্ধিযুক্ত মনুষ্য! (ত্বাম্) তোমাকে (স্তোমাঃ) প্রশংসনীয় গুণসমূহ এবং (ত্বাম্) তোমাকে (উক্থা) কথনযোগ্য কর্মসমূহ (অবীবৃধন্) বর্ধিত করেছে। (ত্বাম্) তুমি (নঃ) আমাদের (গিরঃ) স্তুতি (বর্ধন্তু) বর্ধিত করো ॥৬॥

    भावार्थ

    শ্রেষ্ঠকর্মী মনুষ্য সদা বিদ্বানদের সৎসঙ্গের মাধ্যমে হিতকারী শক্তি বৃদ্ধি করুক ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে শত কর্মশীল পরমেশ্বর! (স্তোমাঃ) বৈদিক সামগান-সমূহ (ত্বা) আপনার যশকে (অবীবৃধন্) বর্ধিত করেছে। (উক্থা) বৈদিক সূক্ত-সমূহ (ত্বা) আপনার যশ বৃদ্ধি করেছে। (নঃ) আমাদের (গিরঃ) স্তুতিবাণীও (ত্বা) আপনার যশ (বর্ধন্তু) বৃদ্ধি করুক।

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