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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 88 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 88/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वामदेवः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८८
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    ए॒वा पि॒त्रे वि॒श्वदे॑वाय॒ वृष्णे॑ य॒ज्ञैर्वि॑धेम॒ नम॑सा ह॒विर्भिः॑। बृह॑स्पते सुप्र॒जा वी॒रव॑न्तो व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । पि॒त्रे । वि॒श्वऽदे॑वाय । वृष्णे॑ । य॒ज्ञै: । वि॒धे॒म॒ । नम॑सा । ह॒वि:ऽभि॑: ॥ बृह॑स्पते । सु॒ऽप्र॒जा: । वी॒रऽव॑न्त: । व॒यम् । स्या॒म॒ । पत॑य: । र॒यी॒णाम् ॥८८.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा पित्रे विश्वदेवाय वृष्णे यज्ञैर्विधेम नमसा हविर्भिः। बृहस्पते सुप्रजा वीरवन्तो वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । पित्रे । विश्वऽदेवाय । वृष्णे । यज्ञै: । विधेम । नमसा । हवि:ऽभि: ॥ बृहस्पते । सुऽप्रजा: । वीरऽवन्त: । वयम् । स्याम । पतय: । रयीणाम् ॥८८.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 88; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वदेवाय) सबों से स्तुति योग्य, (वृष्णे) बलवान् (पित्रे) पिता [के समान पालन करनेवाले पुरुष को] (एव) निश्चय करके (नमसा) अन्न के साथ (यज्ञः) मेल-मिलापों और (हविर्भिः) देने योग्य पदार्थों से (विधेम) हम सेवा करें। (बृहस्पते) हे बृहस्पति ! [बड़ी विद्याओं के रक्षक पुरुष] (सुप्रजाः) श्रेष्ठ प्रजाओंवाले और (वीरवन्तः) वीर पुरुषोंवाले होकर (वयम्) हम (रयीणाम्) अनेक धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥६॥

    भावार्थ

    प्रजागण प्रजापालक नीतिज्ञ सभापति राजा का यथावत् आदर करके धनी और बलवान् होवें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(एव) निश्चयेन (पित्रे) पितृवत्पालकाय (विश्वदेवाय) सर्वस्तुत्याय (वृष्णे) बलवते (यज्ञैः) संगतिकरणैः (विधेम) परिचरेम (नमसा) अन्नेन सह (हविर्भिः) दातव्यपदार्थैः (बृहस्पते) बृहतां विद्यानां रक्षक (सुप्रजाः) श्रेष्ठप्रजावन्तः (वीरवन्तः) वीरपुरुषयुक्ताः (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) अनेकधनानाम् ॥

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    विषय

    'यज्ञैः नमसा हविर्भिः'

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार वलासुर को विनिष्ट करके हम (एवा) = सचमुच उस (पित्रे) = पालक (विश्वदेवाय) = सब दिव्य गुणों के पुञ्ज (वृष्णे) = शक्तिशाली व सुखवर्षक प्रभु के लिए (यज्ञैः) = श्रेष्ठतम कर्मों से (नमसा) = उन कमों के अहंकार को छोड़कर नम्रभाव से और (हविर्भिः) = सदा दानपूर्वक अदन से (विधेम) = पूजा करें। २. हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! इसप्रकार 'यज्ञों-नमन व हवियों' से आपका पूजन करते हुए (वयम्) = हम (सुप्रजा:) = उत्तम प्रजाओंवाले व (वीरवन्त:) = वीरत्व की भावनावाले तथा (रयीणां पतयः) = धनों के स्वामी-न कि धनों के दास (स्याम) = हों।

    भावार्थ

    'यज्ञ, नमन व हवियों' से प्रभु-पूजन करते हुए हम "उत्तम सन्तान, वीरता व धनों के स्वामित्व' को प्राप्त करें। यज्ञों से उत्तम प्रजा को, प्रभु के प्रति नमन से वीरता को तथा हवियों [दान] से धनों के स्वामित्व को प्रास करनेवाले हों। 'उत्तम प्रजा, वीरता व धन स्वामित्व' को अपनी ओर आकृष्ट करनेवाला यह 'कृष्ण' बनता है और इन्द्र का इसप्रकार आराधन करता है -

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    भाषार्थ

    (पित्रे) हम सबके पिता, (विश्वदेवाय) विश्व के देवता, (वृष्णे) आनन्दरसवर्षी बृहस्पति के लिए—(यज्ञैः) उपासना-यज्ञों द्वारा, (नमसा) नमस्कारों द्वारा, तथा (हविर्भिः) अग्निहोत्र की हवियों द्वारा (विधेम) हम निज सेवाएँ समर्पित करते हैं। (बृहस्पते) हे महाब्रह्माण्डपति! (सुप्रजाः) उत्तम सन्तानोंवाले, तथा (वीरवन्तः) वीर सन्तानोंवाले (वयम्) हम (रयीणाम्) आध्यात्मिक और सांसारिक सम्पत्तियों के (पतयः) स्वामी (स्याम) हों।

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    विषय

    परमेश्वर सेनापति राजा।

    भावार्थ

    (एवा) इस उक्त प्रकार के ज्ञानवान् (पित्रे) सबके पालक (विश्वदेवाय) समस्त विजिगीषु पुरुषों के आश्रय या स्वामी एवं समस्त विद्वानों के अध्यक्ष, समस्त दिव्य शक्तियों के आश्रय, (वृष्णे) अति बलवान् पुरुष को हम (यज्ञैः) सत्संगों, यज्ञानुष्ठानों द्वारा (नमसा) आदर पूर्वक नमस्कार और (हविभिः) अन्नों द्वारा (विधेम) सेवा करें। हे (बृहस्पते) विद्वन् ! राजन् ! परमेश्वर (वयम्) हम (सुप्रजाः) उत्तम प्रजा वाले (वीरवन्तः) वीर पुरुषों और पुत्रों से युक्त और (रयीणां) ऐश्वर्यों के (पतयः) पति स्वामी (स्याम) हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः। बृहस्पतिदेवता। त्रिष्टुभः। षडृर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Thus do we, O lord Brhaspati, offer homage to the father, divine giver of light and rain showers, with food, and salutations, yajnas and oblations of fragrant havis, and we pray that we may be blest with noble and brave progeny, and we may be masters of the wealths of life.

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    Translation

    For so, let us serve this fire which is the wondrous power of the world, which is the preserver of us and which is strongest one with Yajna, obloation and cerial preparation. May we having offspring, good family and heroes be lord of riches.

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    Translation

    For so, let us serve this fire which is the wondrous power of the world, which is the preserver of us and which is strongest one with Yajna, oblation and cereal preparation. May we having offspring, good family and heroes be lord of riches.

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    Translation

    O soul, just as the archer continues hurling afar swift-moving arrows and the decorator goes on ornamenting, similarly shouldst thou go on offering the song-verses profusely to Him, This Lord of thine. O Wise persons, just as the warriors overwhelm the voice of the enemy by their own vehement voice, similarly should you cross the Divine Lore by your fervent prayers. O devout soul, completely cheer up thy soul in the Blissful God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(एव) निश्चयेन (पित्रे) पितृवत्पालकाय (विश्वदेवाय) सर्वस्तुत्याय (वृष्णे) बलवते (यज्ञैः) संगतिकरणैः (विधेम) परिचरेम (नमसा) अन्नेन सह (हविर्भिः) दातव्यपदार्थैः (बृहस्पते) बृहतां विद्यानां रक्षक (सुप्रजाः) श्रेष्ठप्रजावन्तः (वीरवन्तः) वीरपुरुषयुक्ताः (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) अनेकधनानाम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বিদ্বৎকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বিশ্বদেবায়) সকলের স্তুতি যোগ্য, (বৃষ্ণে) বলবান্ (পিত্রে) পিতাকে [পিতার সমান পালনকারী পুরুষকে] (এব) নিশ্চিতরূপে (নমসা) অন্নের সহিত (যজ্ঞঃ) সঙ্গতিপূর্বক এবং (হবির্ভিঃ) প্রদান যোগ্য হবির/পদার্থের মাধ্যমে (বিধেম) আমরা সেবা করি। (বৃহস্পতে) হে বৃহস্পতি ! [শ্রেষ্ঠ বিদ্যার রক্ষক পুরুষ] (সুপ্রজাঃ) শ্রেষ্ঠ প্রজাযুক্ত ও (বীরবন্তঃ) বীর পুরুষযুক্ত হয়ে (বয়ম্) আমরা যেন (রয়ীণাম্) বহু ধনের (পতয়ঃ) স্বামী (স্যাম) হই ॥৬॥

    भावार्थ

    প্রজাগণ প্রজাপালক নীতিজ্ঞ সভাপতি রাজার যথাবৎ আদর-সম্মান পূর্বক ধনী ও বলবান্ হোক ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (পিত্রে) আমাদের সকলের পিতা, (বিশ্বদেবায়) বিশ্বের দেবতা, (বৃষ্ণে) আনন্দরসবর্ষী বৃহস্পতির জন্য—(যজ্ঞৈঃ) উপাসনা-যজ্ঞ দ্বারা, (নমসা) নমস্কার দ্বারা, তথা (হবির্ভিঃ) অগ্নিহোত্রের হবি দ্বারা (বিধেম) আমরা নিজ সেবা সমর্পিত করি। (বৃহস্পতে) হে মহাব্রহ্মাণ্ডপতি! (সুপ্রজাঃ) উত্তম সন্তানযুক্ত, তথা (বীরবন্তঃ) বীর সন্তানযুক্ত (বয়ম্) আমরা (রয়ীণাম্) আধ্যাত্মিক এবং সাংসারিক সম্পত্তির (পতয়ঃ) স্বামী (স্যাম) হই।

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