अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 8
ऋषिः - शुक्रः
देवता - अपामार्गो वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
23
अ॑पामा॒र्ग ओष॑धीनां॒ सर्वा॑सा॒मेक॒ इद्व॒शी। तेन॑ ते मृज्म॒ आस्थि॑त॒मथ॒ त्वम॑ग॒दश्च॑र ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पा॒मा॒र्ग: । ओष॑धीनाम् । सर्वा॑साम् । एक॑: । इत् । व॒शी । तेन॑ । ते॒ । मृ॒ज्म॒: । आऽस्थि॑तम् । अथ॑ । त्वम् । अ॒ग॒द: । च॒र॒ ॥१७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अपामार्ग ओषधीनां सर्वासामेक इद्वशी। तेन ते मृज्म आस्थितमथ त्वमगदश्चर ॥
स्वर रहित पद पाठअपामार्ग: । ओषधीनाम् । सर्वासाम् । एक: । इत् । वशी । तेन । ते । मृज्म: । आऽस्थितम् । अथ । त्वम् । अगद: । चर ॥१७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(अपामार्गः) सब दोषों का शोधनेवाला परमेश्वर (सर्वासाम्) सब (ओषधीनाम्) तापनाशक अन्न आदि पदार्थों का (एकः इत्) एक ही (वशी) वश में रखनेवाला है। (तेन) उस [के आश्रय] से [हे राजन् !] (ते) तेरे (आस्थितम्) उपस्थित [भय] को (मृज्मः) हम शोधते हैं, (अथ) इसलिये (त्वम्) तू (अगदः) नीरोग होकर (चर) विचर ॥८॥
भावार्थ
प्रजागण कहते हैं “परमात्मा सब संसार का स्वामी है, उसी सहारे से हम आप पर यह राज्य भार रखते हैं, आप भी उसी के सहारे से निश्चिन्त होकर अपना कर्तव्य करें” ॥८॥
टिप्पणी
८−(अपामार्गः) म० ६। सर्वदोषशोधकः परमेश्वरः (ओषधीनाम्) तापनाशयित्रीणाम् अन्नादिपदार्थानाम् (सर्वासाम्) अशेषाणाम् (एकः) अद्वितीयः (इत्) एव (वशी) वशयिता (तेन) अपामार्गेण परमेश्वरेण (ते) तव (मृज्मः) मार्जयामः शोधयामः (आस्थितम्) आपतितं राज्यभाररूपं भयम् (अथ) अनन्तरम् (त्वम्) राजन् (अगदः) गद व्यक्तायां वाचि रोगे च-अच्। रोगशून्यः स्वस्थः (चर) चिरकालं वर्तस्व ॥
विषय
अगदता
पदार्थ
१. हे (अपामार्ग) = अपामार्ग! तू (सर्वासाम्) = सब (ओषधीनाम्) = ओषधियों का (एकः इत्) = अकेला ही (वशी) = वश में करनेवाला है। तू ओषधियों का सम्राट् है। २. हे रुग्ण पुरुष! (तेन) = उस अपामार्ग के प्रयोग से (ते) = तेरे (आस्थितम्) = शरीर में समन्तात् स्थित रोग को (मृज्म:) = साफ़ कर डालते हैं। (अथ) = अब (त्वम्) = तू (अगदः) = नीरोग होकर (चर) = विचारनेवाला हो।
भावार्थ
अपामार्ग सब ओषधियों के गुणों से सम्पन्न है। इसके प्रयोग से शरीर में कहीं भी स्थित रोग को हम दूर करते हैं। यह रुग्ण पुरुष नीरोग होकर विचरण करे।अपामार्ग का ही विषय अगले सूक्त में भी है।
भाषार्थ
(अपामार्ग) हे व्याधियों को अपगत कर, पृथक् कर, शुद्ध करनेवाले अपामार्ग औषध ! तू (सर्वासाम् ओषधीनाम्) सब औषधियों में से (एक: इत्) एक ही (वशी) व्याधियों का वशीकर्त्ता है। (तेन) उस द्वारा, हे रुग्ण ! (ते) तेरे (आस्थितम्) सर्वत्र स्थित हुए रोग को (मृज्म:) हम शुद्ध करते हैं, (अथ) तदनन्तर (त्वम्) तू (अगद:) रोगरहित हुआ (चर) विचर।
टिप्पणी
[यौगिकार्थ में अपामार्ग द्वारा, सर्वरोगापहारी, शोधक परमेश्वर भी अभिप्रेत हो सकता है। परमेश्वर भेषज है, यथा “भेषजमसि भेषजं गवे अश्वाय पुरुषाय भेषजम्” (यजुः० ३।५९)। मृज्म: मृजूष् शुद्धौ (अदादि:)। अपामार्ग=आप +आ + मार्ग (मुजूष् शुद्धौ)।]
विषय
अपामार्ग और अपामार्ग विधान का वर्णन।
भावार्थ
(अपामार्गः) रोगनिवारक ओषधि (सर्वासां ओषधीनाम्) सब ओषधियों में से (एक इत्) एक ही सब से अधिक (वशी) रोगों पर वश करने हारी है, (तेन) उससे हे रोगिन् ! (ते) तेरे (आस्थितं) शरीर में बैठे रोग को (मृज्मः) दूर करें और (त्वम् अगदः चर) तू नीरोग होकर विचर, जीवन यापन कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apamarga Herb
Meaning
Of all the medicines, Apamarga is the one all conquering against disease. O patient, with that we cure and eliminate the chronic disease from you so that you live and enjoy life healthy, happy and free from disease.
Translation
Apamarga (the wipe off) is surely the only sovereign of all the plants. With that we wipe away your chronic disease. Now you may move about free from affliction.
Translation
This Apamarga is alone the Sovereign of all herbs. With this we remove the disease rooted in you, O man! and you lead the life of happiness being free from diseases.
Translation
The Apamarga is alone the lord of all plants that grow. With this we wipe away whatever disease bath attacked thee, O patient, Get rid of it and live long!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(अपामार्गः) म० ६। सर्वदोषशोधकः परमेश्वरः (ओषधीनाम्) तापनाशयित्रीणाम् अन्नादिपदार्थानाम् (सर्वासाम्) अशेषाणाम् (एकः) अद्वितीयः (इत्) एव (वशी) वशयिता (तेन) अपामार्गेण परमेश्वरेण (ते) तव (मृज्मः) मार्जयामः शोधयामः (आस्थितम्) आपतितं राज्यभाररूपं भयम् (अथ) अनन्तरम् (त्वम्) राजन् (अगदः) गद व्यक्तायां वाचि रोगे च-अच्। रोगशून्यः स्वस्थः (चर) चिरकालं वर्तस्व ॥
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