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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 9
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यापरिहरणम् छन्दः - त्रिपदा विराडनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    16

    कृत॑व्यधनि॒ विद्य॒ तं यश्च॒कार॒ तमिज्ज॑हि। न त्वामच॑क्रुषे व॒यं व॒धाय॒ सं शि॑शीमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृत॑ऽव्यधनि । विध्य॑ । तम् । य: । च॒कार॑ । तम् । इत् । ज॒हि॒ । न । त्वाम् । अच॑क्रुषे । व॒यम् । व॒धाय॑ । सम् । शि॒शी॒म॒हि॒ ॥१४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृतव्यधनि विद्य तं यश्चकार तमिज्जहि। न त्वामचक्रुषे वयं वधाय सं शिशीमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृतऽव्यधनि । विध्य । तम् । य: । चकार । तम् । इत् । जहि । न । त्वाम् । अचक्रुषे । वयम् । वधाय । सम् । शिशीमहि ॥१४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृतव्यधनि) हे छेदनेवाली शस्त्रयुक्त सेना ! (तम्) चोर को (विध्य) छेद ले। (यः) जिसने (चकार) हिंसा की है, (तम्) उसको (इत्) अवश्य (जहि) नाश कर। (अचक्रुषे) हिंसा न करनेवाले पुरुष को (वधाय) मारने के लिये (वयम्) हम लोग (त्वाम्) तुझे (न) नहीं (सम् शिशीमहि) तीक्ष्ण करें ॥९॥

    भावार्थ

    सेनापति लोग दुष्कर्मियों पर ही सेना चढ़ावें और सत्पुरुषों पर कभी नहीं ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(कृतव्यधनि) व्यध ताडने−ल्युट्, ङीप्। कृतानि उद्यतानि व्यधनानि छेदनसाधनानि आयुधानि यया सा कृतव्यधनी, सेना तत्सम्बुद्धौ (विध्य) छिन्धि (तम्) तर्द हिंसायाम्−ड। चोरम् (यः) शत्रुः (चकार) कृञ् हिंसायाम्−लिट्। हिंसितवान् (तम्) (इत्) एव (जहि) नाशय (न) निषेधे (त्वाम्) सेनाम् (अचक्रुषे) कृञ् हिंसायाम्−क्वसु। अहिंसां कृतवते पुरुषाय (वयम्) सेनापतयः (वधाय) हननाय (सम्) सम्यक् (शिशीमहि) शो तनूकरणे। श्यनः श्लुः। विधौ लिङि छान्दसं रूपम्। श्येम तीक्ष्णीकुर्याम ॥

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    विषय

    रक्षणात्मक न कि आक्रमणात्मक

    पदार्थ

    १. (कृतव्यनि) = [कृतानि व्यधनानि यया] जिसने शत्रु-विनाश के लिए आयुध तैयार किये हुए हैं, ऐसी सेने! (य: चकार) = जो राष्ट्र पर आक्रमण करता है, (तम्) = उसे तू (विध्य) = अपने अस्त्रों से विद्ध कर। (इत्) = उसे ही (जहि) = विनष्ट कर। २. (अचक्रुषे) = आक्रमण न करनेवाले के लिए (वयम्) = हम (त्वाम्) = मुझे (वधाय) = वध के लिए (न संशिशीमहि) = नहीं उत्तेजित करते-तीक्ष्ण नहीं बनाते।

    भावार्थ

    हम सेनाओं द्वारा आक्रान्ता के आक्रमणो को रोकने के लिए ही यत्नशील हों, अनाक्रमकों पर स्वयं आक्रमण न करने लगे।

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    भाषार्थ

    (कुतव्यधनि) हे किये बेधनोंवाली [शत्रुओं के बींधने में अभ्यस्त] हमारी सेना ! (तम्, विध्य) उसे तु बींध (य:) जिसने कि सेना को ( चकार ) निर्मित या संगृहीत किया है, (तम्, इत् ) उसका ही (जहि) तु हनन कर। (अचक्रुषे वधाय) जिसने विरोधी सेना का निर्माण नहीं किया उसके वध के लिए (वयम् ) हम ( त्वाम् ) तुझे ( न ) नहीं (सं शिशामहि) तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों द्वारा सम्यक् तीक्ष्ण करते।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में दो सेनाओं का वर्णन हुआ है। एक है कृतव्यधनी। यह तो निजसेना है, सम्राट् की या साम्राज्य की है (मन्त्र ९)। दूसरी है शत्रु-निर्मित सेना [जोकि "यः चकार" द्वारा निर्दिष्ट की गई है।] जिस व्यक्ति ने शत्रुसेना का निर्माण किया है उन अकेले के हनन के लिए ही आज्ञा हुई है, शत्रुसेनिकों के हनन के लिए नहीं। यह वैदिक युद्ध-नीति को उदारता और सहानुभूति का प्रदर्शन हुआ है।]

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    भावार्थ

    कैसे अपराधियों को कैसा दण्ड दिया जाय इसका उपदेश करते हैं। (कृतव्यधनि) जिस पुरुष ने किसी को बाण आदि शस्त्र से मारा है उसको ताड़ने वाली हे शक्ति ! तू उसको भी (विध्य) उसी प्रकार वेध, (यः चकार) जो जैसा करे (तमित् जहि) उसको वैसा ही दण्ड देकर नाश कर। हे राजन् ! (त्वाम्) तुझको (अचकुषे) अपराध न करने वाले के (वधाय) वध करने के लिये हम (न संशिशीमहि) उत्तेजित नहीं करते।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। कृत्याप्रतिहरणं सूक्तम्। १, २, ४, ६, ७, ९ अनुष्टुभः। ३, ५, १२ भुरित्रः। ८ त्रिपदा विराट्। १० निचृद् बृहती। ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। १३ स्वराट्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Krtyapratiharanam

    Meaning

    O destroyer of the perpetrator of evil and violence, punish that who commits evil and violence, eliminate him for sure, only him, for we do not arouse you to smite him that does no evil.

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    Translation

    O capable of piercing, may you pierce him. Smite him, who has made you, We do instigate you to slay the person who has not made you.

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    Translation

    Let this plant become the means of piercing him who works it out and kill him. Let us not use this plant for destroying him who is not responsible for such a violent act.

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    Translation

    Thou who hast piercing weapons, pierce him who hath wrought violence; conquer him. O king, we do not excite thee to slay the man who hath not practised violence!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(कृतव्यधनि) व्यध ताडने−ल्युट्, ङीप्। कृतानि उद्यतानि व्यधनानि छेदनसाधनानि आयुधानि यया सा कृतव्यधनी, सेना तत्सम्बुद्धौ (विध्य) छिन्धि (तम्) तर्द हिंसायाम्−ड। चोरम् (यः) शत्रुः (चकार) कृञ् हिंसायाम्−लिट्। हिंसितवान् (तम्) (इत्) एव (जहि) नाशय (न) निषेधे (त्वाम्) सेनाम् (अचक्रुषे) कृञ् हिंसायाम्−क्वसु। अहिंसां कृतवते पुरुषाय (वयम्) सेनापतयः (वधाय) हननाय (सम्) सम्यक् (शिशीमहि) शो तनूकरणे। श्यनः श्लुः। विधौ लिङि छान्दसं रूपम्। श्येम तीक्ष्णीकुर्याम ॥

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