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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
    18

    अ॒ग्निर्वन॒स्पती॑ना॒मधि॑पतिः॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि: ।वन॒स्पती॑नाम् । अधि॑ऽपति: । स: । मा॒ । अ॒व॒तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्वनस्पतीनामधिपतिः स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नि: ।वनस्पतीनाम् । अधिऽपति: । स: । मा । अवतु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्निः) [पार्थिव] अग्नि (वनस्पतीनाम्) सेवकों के रक्षकों वा वृक्षों का (अधिपतिः) अधिष्ठाता है, (सः) वह (मा) मुझे (अवतु) बचावे... म० १ ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य पार्थिव अग्नि के प्रभाव से उत्पन्न हुए पदार्थों द्वारा बल बढ़ा कर अपनी रक्षा करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अग्निः) पार्थिवाग्निः (वनस्पतीनाम्) अ० १।१२।३। स्वसेवकानां पालकानां वृक्षाणां वा। अन्यद् यथा म० १ ॥

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    विषय

    'वनस्पतीनाम् अधिपतिः' अग्नि

    पदार्थ

    १. (अग्निः) = पृथिवी का मुख्य देवता अग्नि (वनस्पतीनाम्) = सब वनस्पतियों का (अधिपतिः) = स्वामी है। भूमि में इस अग्नि की उष्णता न होने पर किसी भी बनस्पति का प्ररोहण सम्भव नहीं है। (स:) = वह (अनि मा अवतु) = मेरा रक्षण करे। शरीर के स्वास्थ्य के लिए उचित मात्रा में अग्नितत्त्व का होना आवश्यक है। इसके अभाव में शरीर शान्त ही हो जाता है। २. इसके रक्षित होने पर मैं ज्ञान-प्राप्ति आदि कर्मों में अपना अर्पण करूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    वनस्पतियों का अधिपति अग्नि मेरा रक्षण करे। मैं इन वनस्पतियों का ही सेवन करनेवाला बनूं। उस अग्नि से रक्षित होकर मैं ज्ञानादि कर्मों में अपना अर्पण करूँ।

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    भाषार्थ

    (अग्निः) अग्नि (वनस्पतीनाम् अधिपतिः) वनस्पतियों का अधिपति है, (सः) वह (मा) मेरी (अवतु) रक्षा करे। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    जिस प्रकार सब (वनस्पतीनाम् अधि-पतिः) वनस्पतियों का स्वामी (अग्निः) अग्नि है, उनको काष्ठरूप में जलाता और रस रूप से पुष्ट करता है उसी प्रकार वह प्रकाशरूप परमात्मा भी सब (वनस्पतीनाम्) भोग साधन इन्द्रियों के पति जीवात्मानों का (अधिपतिः) स्वामी परमेश्वर है (सः) वह (माम् अवतु) मेरी (अस्मिन् ब्रह्मणि०) इस वेदाध्ययन ब्रह्मोपासना आदि कार्यों में रक्षा करे यह मेरी शुभ प्रार्थना है॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    Agni is the presiding power of the life of herbs and trees. May Agni protect and promote in this pursuit of divine knowledge, in this particular act, in this priestly undertaking, in this settled position of responsibility, in this plan, in this resolution, in this discipline and benediction, and in this yajna in honour of divinities. This is the inner voice.

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    Translation

    The fire (Agni) is the lord of vegetation; may he favour me in this prayer, in this rite, in this priestly representation, in this firm-standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction and in this invocation of the bounties of Nature. Svaha.

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    Translation

    Agni, the fire is the mater-power of plants and trees, let it protect me in this my attainment of knowledge. In this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life’s stability, in this intention, in this my deliberate activity in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever is uttered herein is correct.

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    Translation

    Just as fire is the Lord of forest trees, so is God, the Lord of souls. May He protect me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble-performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अग्निः) पार्थिवाग्निः (वनस्पतीनाम्) अ० १।१२।३। स्वसेवकानां पालकानां वृक्षाणां वा। अन्यद् यथा म० १ ॥

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