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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - भगः छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या पुरउष्णिक् सूक्तम् - नवशाला सूक्त
    15

    भगो॑ युनक्त्वा॒शिषो॒ न्वस्मा अ॒स्मिन्य॒ज्ञे प्र॑वि॒द्वान्यु॑नक्तु सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भग॑: । यु॒न॒क्तु॒ । आ॒ऽशिष॑: । नु । अ॒स्मै । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । प्र॒ऽवि॒द्वान् । यु॒न॒क्तु॒ । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भगो युनक्त्वाशिषो न्वस्मा अस्मिन्यज्ञे प्रविद्वान्युनक्तु सुयुजः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भग: । युनक्तु । आऽशिष: । नु । अस्मै । अस्मिन् । यज्ञे । प्रऽविद्वान् । युनक्तु । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    समाज की वृद्धि करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रविद्वान्) बड़ा विद्वान्, (सुयुजः) सुयोग्य, (भगः) ऐश्वर्यवान् पुरुष (आशिषः) अपनी इष्ट प्रार्थनाओं को (नु) शीघ्र (अस्मै) इस [संसार के हित] के लिये (अस्मिन्) इस (यज्ञे) परस्पर मेल में (स्वाहा) सुन्दर वाणी से (युनक्तु) लगावे, (युनक्तु) लगावे ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य निरन्तर प्रयत्न करके संसार की भलाई में सदा लगा रहे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(भगः) भगवान्। ऐश्वर्यवान् (युनक्तु युनक्तु) नित्यवीप्सयोः। पा० ८।१।४। इति नित्ये द्विर्वचम्। नित्यं योजयतु (आशिषः) आङः शासु इच्छायाम्−क्विप्। इष्टप्रार्थनाः (अस्मै) दृश्यमानाय संसाराय। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    ऐश्वर्य व उत्तम इच्छाएँ

    पदार्थ

    १. (प्रविद्वान्) = प्रकृष्ट ज्ञानी, (सुयुजः) = हमें उत्तम कर्मों में लगानेवाला (भग:) = ऐश्वर्यशाली प्रभु (नु) = अब (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में (अस्मै) = इस संसार के हित के लिए (आशिषः) = उत्तम इच्छाओं को (युनत्तु) = हमारे साथ जोड़े। (स्वाहा) = हम उस 'भग' के प्रति अपना अर्पण करते हैं। वह हमें युनतु सदा उत्तम कर्मों में लगाए।

    भावार्थ

    हम ऐश्वर्य को प्राप्त करके उत्तम इच्छाओं से युक्त हों-संसार का हित करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (प्रविद्वान्) प्रज्ञानी या प्रकृष्ट-ज्ञानी, (भगः) षड़विध भगोंवाला परमेश्वर (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (नु) निश्चय से ( अस्मै ) इस यजमान के लिए (आशिषः) आशीर्वादों को (युनक्तु) संयुक्त करे, सम्बद्ध करे तथा (सुयुज:) उत्तम योजनाओं को (युनक्तु) संयुक्त करे, सम्बद्ध करे तथा स्वाहा का उच्चारण हो।

    टिप्पणी

    [ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशस: श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ॥ यज्ञ की समाप्ति पर यजमान को आशीर्वाद दिया जाता है। सर्वोत्तम-आशीर्वाददाता परमेश्वर है, जिसका दिया आशीर्वाद सदा सफल होता है। यजमान षडविध भगों से सम्पन्न हो,–यह भग नामक परमेश्वर द्वारा दिया आशीर्वाद है।]

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    विषय

    योग साधना।

    भावार्थ

    हे (सुयुजः) उत्तम योगियो ! (भगः) ऐश्वर्यवान् समस्त विभूतियों का स्वामी, प्रभु, परमात्मा (अस्मै नु) इस योगी या आत्मा की (आशिषः युनक्तु) समस्त उत्तम अभिलाषाओं को पूर्ण करे। और इसी कारण (अस्मिन् यज्ञे) इस ब्रह्ममय यज्ञ में (प्र विद्वान्) उत्तम ज्ञानी पुरुष (युनक्तु) समाधिमग्न हो। (स्वाहा) यही सबसे उत्तम आहुति है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yajna in the New Home

    Meaning

    May Bhaga, divine spirit of prosperity, holy and companionable friend, join us in this yajna and bring us divine blessings. Let the eminent scholar, friendly and cooperative, join us in this yajna and bring us manifold advantages. This is my prayer and submission in earnest.

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    Translation

    May the lord of all round prosperity (bhaga) use blessings for this sacrificer in this sacrifice. May He, the fore-knowing (pra-vidvan), use them appropriately. Svaha.

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    Translation

    Let the accomplished scholar of yajna-vidya shower blessing on the performer of yajna in this yajna. Whatever is uttered herein is correct.

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    Translation

    O excellent yogis, may the Omnipotent God, fulfill all the desires of thissoul. May a learned person concentrate on God in this spiritual yoga-yajna. This is the best oblation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(भगः) भगवान्। ऐश्वर्यवान् (युनक्तु युनक्तु) नित्यवीप्सयोः। पा० ८।१।४। इति नित्ये द्विर्वचम्। नित्यं योजयतु (आशिषः) आङः शासु इच्छायाम्−क्विप्। इष्टप्रार्थनाः (अस्मै) दृश्यमानाय संसाराय। अन्यद् गतम् ॥

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