अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - इळा, सरस्वती, भारती
छन्दः - द्विपदा साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - अग्नि सूक्त
21
दे॒वो दे॒वेषु॑ दे॒वः प॒थो अ॑नक्ति॒ मध्वा॑ घृ॒तेन॑ ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒व: । दे॒वेषु॑ । दे॒व: । प॒थ: । अ॒न॒क्ति॒ । मध्वा॑ । घृ॒तेन॑ ॥२७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
देवो देवेषु देवः पथो अनक्ति मध्वा घृतेन ॥
स्वर रहित पद पाठदेव: । देवेषु । देव: । पथ: । अनक्ति । मध्वा । घृतेन ॥२७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ
(देवेषु) व्यवहारकुशल लोगों के बीच (देवः) व्यवहारकुशल और (देवः) विजय चाहनेवाला पुरुष (मध्वा) ज्ञान से और (घृतेन) प्रकाश से (पथः) मार्गों को (अनक्ति) खोलता है ॥२॥
भावार्थ
विद्वानों में महाविद्वान् सत्यप्रतिज्ञावाला पुरुष संसार में सन्मार्ग का प्रचार करता है ॥२॥
टिप्पणी
२−(देवः) व्यवहारकुशलः (देवेषु) व्यवहारिषु विद्वत्सु (देवः) विजिगीषुः (पथः) मार्गान् (अनक्ति) व्यनक्ति व्यक्तीकरोति (मध्वा) अ० १।४।१। मन ज्ञाने−उ, नस्य धः। मधुना। ज्ञानेन (घृतेन) प्रकाशेन ॥
विषय
मध्वा घृतेन
पदार्थ
१. गतमन्त्र का ब्रह्मा (देवः) = देववृत्ति का बनता है, (देवेषु देवः) = देवों में देव, अर्थात् अतिशयेन उत्कृष्ट देव बनता है। यह (पथ:) = अपने जीवन मार्गों को (मध्वा:) = माधुर्य से-वाणी की मिठास से तथा (घृतेन) = ज्ञानदीसि व नैर्मल्य [मल-क्षरण] से (अनक्ति) = अलंकृत करता है।
भावार्थ
ब्रह्मा वह है जो देव बनता है, मधुर होता है तथा ज्ञानदीत व निर्मल बनता है।
भाषार्थ
(देवेषु देवः) देवाधिदेव (देवः) परमेश्वर-देव (घृतेन) क्षरित तथा प्रदीप्त हुए (मध्वा) मधुर [रश्मिसमूह] द्वारा (पथः) हमारे मार्गों को (अनक्ति) अभिव्यक्त कर रहा है।
टिप्पणी
[घृतेन= घृ क्षरणदीप्त्योः (जुहोत्यादिः)। अनक्ति=अञ्जू व्यक्तिभ्रक्षणकान्ति्गतिषु (रुधादिः)। मध्वा= मधुरूप आदित्यरश्मयः (छान्दोग्य उपनिषद्, अध्याय ३, खण्ड १-४)।]
विषय
ब्रह्मोपासना।
भावार्थ
(देवेषु) समस्त दिव्यगुणयुक्त प्रकाशमान् पदार्थों में से (देवः) वह एकमात्र देव सबका प्रकाशक है। वह (देवः) परमदेव (मध्वा) अमृतमय आनन्द और (घृतेन) तेजः-प्रकाश से (पथः) समस्त मार्गों को (अनक्ति) प्रकाशित करता है। देखो० ऋ० १। १४२। ३ ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। २ द्विपदा साम्नी भुरिगनुष्टुप्। ३ द्विपदा आर्ची बृहती। ४ द्विपदा साम्नी भुरिक् बृहती। ५ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ६ द्विपदा विराड् नाम गायत्री। ७ द्विपदा साम्नी बृहती। २-७ एकावसानाः। ८ संस्तार पंक्तिः। ९ षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा परातिजगती। १०-१२ परोष्णिहः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Agni and Dynamics of Yajna
Meaning
Divine among divinities, self-refulgent and generous, it opens and illumines new paths of life and sprinkles them with honey sweets of light and ghrta.
Translation
May the Lord, bounteous among the bounties of Nature, bedew our paths with honey and purified butter. (Also Yv. XXVII.12 (Tanünapát)
Translation
This fire is the wondrous in among other physical forces of nature and it makes the ways for other yajna-devas with honey and ghee.
Translation
God is the Illuminator of all luminous bodies. He sheds joy and knowledge on all walks of life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(देवः) व्यवहारकुशलः (देवेषु) व्यवहारिषु विद्वत्सु (देवः) विजिगीषुः (पथः) मार्गान् (अनक्ति) व्यनक्ति व्यक्तीकरोति (मध्वा) अ० १।४।१। मन ज्ञाने−उ, नस्य धः। मधुना। ज्ञानेन (घृतेन) प्रकाशेन ॥
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