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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रचेता देवता - विश्वे देवाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
    15

    विश्वे॑ दे॒वा म॒रुत॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मान॒स्मिन्द्वि॒तीये॒ सव॑ने॒ न ज॑ह्युः। आयु॑ष्मन्तः प्रि॒यमे॑षां॒ वद॑न्तो व॒यं दे॒वानां॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑ । दे॒वा:। म॒रुत॑: । इन्द्र॑: । अ॒स्मान् । अ॒स्मिन् । द्वि॒तीये॑ । सव॑ने ।न । ज॒ह्यु॒: । आयु॑ष्मन्त: । प्रि॒यम् । ए॒षा॒म् । वद॑न्त: । व॒यम् । दे॒वाना॑म् । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ ॥४७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे देवा मरुत इन्द्रो अस्मानस्मिन्द्वितीये सवने न जह्युः। आयुष्मन्तः प्रियमेषां वदन्तो वयं देवानां सुमतौ स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे । देवा:। मरुत: । इन्द्र: । अस्मान् । अस्मिन् । द्वितीये । सवने ।न । जह्यु: । आयुष्मन्त: । प्रियम् । एषाम् । वदन्त: । वयम् । देवानाम् । सुऽमतौ । स्याम ॥४७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मा की उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वे) सब (देवाः) उत्तम गुण, (मरुतः) विद्वान् लोग और (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला जगदीश्वर (अस्मान्) हमको (अस्मिन्) इस (द्वितीये) दूसरे (सवने) यज्ञ में (न) नहीं (जह्युः=जहतु) त्याग करें (आयुष्मन्तः) उत्तम जीवन रखनेवाले, (प्रियम्) प्रिय (वदन्तः) बोलते हुए (वयम्) हम लोग (एषाम्) इन (देवानाम्) उत्तम गुणों की (सुमतौ) सुमति में (स्याम्) रहें ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर आदि सब उत्तम पदार्थों का विचार करके उत्तम बुद्धि प्राप्त करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणाः (मरुतः) अ० १।२०।१। विद्वांसः। ऋत्विजः−निघ० ३।१८। (इन्द्रः) जगदीश्वरः (अस्मान्) (अस्मिन्) वर्तमाने (द्वितीये) मध्याह्ने भवे (सवने) यज्ञे (न) निषेधे (जह्युः) ओहाक् त्यागे लोडर्थे लिट्। यकारश्छान्दसः। जहुः। जहतु। त्यजन्तु (आयुष्मन्तः) उत्तमेन जीवनेन युक्ताः (प्रियम्) प्रीतिकरम् (एषाम्) एतेषाम् (वदन्तः) कथयन्तः (वयम्) (देवानाम्) दिव्यगुणानाम् (सुमतौ) शोभनायां बुद्धौ (स्याम) ॥

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    विषय

    त्रैष्टुभं माध्यन्दिनं सवनम्

    पदार्थ

    १. (अस्मिन् द्वितीये सवने) = इस दूसरे माध्यन्दिन सवन में (विश्वेदेवाः) = सब दिव्य गुण, (मरुत:) = प्राण, (इन्द्रः) = जितेन्द्रियता (अस्मान् न जह्यु:) = हमें न छोड़ें। इस गृहस्थ जीवनरूप माध्यन्दिन सवन में हम दिव्य गुणों को धारण करें, प्राणसाधना में प्रवृत्त हों और इन्द्रियों के अधिष्ठाता बनने का प्रयत्न करें। २. ऐसा करते हुए (वयम्) = हम (आयुष्मन्त:) = प्रशस्त दीर्घजीवनवाले (एषाम्) = इन देवों-मरुत् व इन्द्र के विषय में (प्रियं वदन्त:) = प्रीतिकर बातों को कहते हुए (देवानाम्) = माता पिता, आचार्य व अतिथि आदि देवों की (सुमतौ स्याम) = कल्याणी मति में हों-इनकी प्रेरणा के

    अनुसार कार्य करनेवाले हों।

    भावार्थ

    गृहस्थ जीवन में हम दिव्य गुणों के धारण का सङ्कल्प लें, प्राणायाम करनेवाले हों, जितेन्द्रिय बनने का यत्न करें। प्रशस्त दीर्घजीवनवाले देवों, मरुतों व इन्द्र के विषय में प्रिय बातों को बोलते हुए 'माता-पिता, आचार्य व अतिथियों' की प्रेरणा के अनुसार चलें।

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    भाषार्थ

    (विश्वे देवाः) सब इन्द्रियां, (मरुतः) प्राण, (इन्द्रः) आत्मा (अस्मिन् द्वितीये सवने) इस ४४ वर्षों के द्वितीय सवन अर्थात् रुद्र कोटि के ब्रह्मचर्य काल में (अस्मान्) हमें (न जह्यु:) न त्यागें, अर्थात् यथावत् हमारे शरीरों में विद्यमान रहें। (आयुष्मन्तः) ताकि दीर्घायु से सम्पन्न हम (एषाम्) इन विश्वेदेव आदि के होते, (प्रियम्) परस्पर प्रेमयुक्त वाणी (वदन्तः) बोलते हुए (वयम्) हम (देवानाम्) गुरुदेवों की (सुमतौ) सुमति में (स्याम) हों, रहें।

    टिप्पणी

    [प्रथम कोटि के ब्रह्मचारियों की संज्ञा है "वसु", द्वितीय कोटि के ब्रह्मचारियों की संज्ञा है "रुद्र"; (छान्दोग्य उपनिषद्, सन्दर्भ १३)। एषाम् ="एषाम् सताम्" इन के विद्यमान रहते]।

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    विषय

    दीर्घायु, सुखी जीवन और परम सुख की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (अस्मिन् द्वितीये सवने) इस द्वितीय सवन अर्थात् रुद्रब्रह्मचर्य के अवसर पर (इन्द्रः) हमारा राजा, आत्मा और (विश्वेदेवाः) समस्त देव, इन्द्रियगण, विद्वान् पुरुष और (मरुतः) समस्त प्रजाएं और प्राणगण (अस्मान्) हमें (न जह्युः) परित्याग न करें। (आयुष्मन्तः) दीर्घ आयु से सम्पन्न होकर (एषां प्रियं वदन्तः) इन सब के प्रति प्रिय भाषण करते हुये (वयम्) हम (देवानाम्) विद्वान् पुरुषों की (सु-मतौ) शुभ मति में, उत्तम उपदेशों के अनुसार (स्याम) रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। १ अग्निर्देवता। २ विश्वेदेवाः। ३ सुधन्वा देवता। १-३ त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection

    Meaning

    May the Vishvedevas, cosmic divinities, Maruts, cosmic energies and vibrant sages, and Indra, lord omnipotent of glory, join us without fail and bless us at this second session of the day’s yajna. And may we all, living together happy and healthy, speaking together, enjoy the love and good will of these divinities together.

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    Subject

    Visvedevals

    Translation

    May all the bounties of nature, cloud-bearing winds and the resplendent Lord not fail us at this second sacrifice (of the day) (duitiya savana). May we have long life and be in good books of the enlightened ones,.always speaking what is _ pleasing to them.

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    Translation

    Let all the physical forces and learned persons, priests of the yajna and Almighty God never miss us in the second meeting of the yajna and may we blest with long life span speaking pleasant words for the other remain always under the guidance and good advice of the learned men.

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    Translation

    May all noble qualities, learned persons and God, forsake us not during the second stage of our life. Enjoying a long life and speaking words that please them, may we act according to the sound advice of the learned.

    Footnote

    Second stage: The period of Rudra Brahmcharya.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणाः (मरुतः) अ० १।२०।१। विद्वांसः। ऋत्विजः−निघ० ३।१८। (इन्द्रः) जगदीश्वरः (अस्मान्) (अस्मिन्) वर्तमाने (द्वितीये) मध्याह्ने भवे (सवने) यज्ञे (न) निषेधे (जह्युः) ओहाक् त्यागे लोडर्थे लिट्। यकारश्छान्दसः। जहुः। जहतु। त्यजन्तु (आयुष्मन्तः) उत्तमेन जीवनेन युक्ताः (प्रियम्) प्रीतिकरम् (एषाम्) एतेषाम् (वदन्तः) कथयन्तः (वयम्) (देवानाम्) दिव्यगुणानाम् (सुमतौ) शोभनायां बुद्धौ (स्याम) ॥

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