अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अश्विनौ
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - अभययाचना सूक्त
16
तर्द॒ है पत॑ङ्ग॒ है जभ्य॒ हा उप॑क्वस। ब्र॒ह्मेवासं॑स्थितं ह॒विरन॑दन्त इ॒मान्यवा॒नहिं॑सन्तो अ॒पोदि॑त ॥
स्वर सहित पद पाठतर्द॑ । है । पत॑ङ्ग । है । जभ्य॑ । है । उप॑ऽक्वस । ब्र॒ह्माऽइ॑व । अस॑म्ऽस्थितम् । ह॒वि: । अन॑दन्त: । इ॒मान् । यवा॑न् । अहि॑सन्त: । अ॒प॒ऽउदि॑त ॥५०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
तर्द है पतङ्ग है जभ्य हा उपक्वस। ब्रह्मेवासंस्थितं हविरनदन्त इमान्यवानहिंसन्तो अपोदित ॥
स्वर रहित पद पाठतर्द । है । पतङ्ग । है । जभ्य । है । उपऽक्वस । ब्रह्माऽइव । असम्ऽस्थितम् । हवि: । अनदन्त: । इमान् । यवान् । अहिसन्त: । अपऽउदित ॥५०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मा के दोष निवारण का उपदेश।
पदार्थ
(है) हे (तर्द) हे हिंसक काक आदि ! (है) हे (पतङ्ग) फुदकनेवाले टिड्डी आदि ! (हा) हे (जभ्य) वधयोग्य (उपक्वस) भूमि पर रेंगनेवाले कीड़े ! (ब्रह्मा इव) विद्वान् पुरुष ब्रह्मा के समान (असंस्थितम्) बिना संस्कार किये हुए (हविः) अन्न को, (इमाम्) इन् (यवान्) यव आदि अन्न को (अनदन्तः) न खाते हुए और (अहिंसन्तः) न तोड़ते हुए (अपोदित) उड़ जाओ ॥२॥
भावार्थ
जैसे विद्वान् पुरुष कुपथ्य अन्न को छोड़कर चला जाता है, इसी प्रकार हिंसक पशु आदि जवादि अन्नों के खेतों को छोड़कर चले जावें ॥२॥
टिप्पणी
२−(तर्द) हिंसककाकादे (है) हे (पतङ्ग) पतनशील शलभादे (है) (जभ्य) हिंस्य (हा) हे (उपक्वस) उप+कु+अस गतौ−अच्। उप हीनतया कौ भूमौ असति गच्छतीति यः सः, तत्सम्बुद्धौ। हे कीटादे (ब्रह्मा) ऋत्विक्। महाविद्वान् (इव) यथा (असंस्थितम्) असंस्कृतम्। अपथ्यम् (हविः) अन्नम् (अनदन्तः) अभक्षयन्तः (इमान्) समीपस्थान् (यवान्) यवाद्यन्नानि (अहिंसन्तः) अविनाशयन्तः (अपोदित) अप+उत्+इण् गतौ लोट्। उड्डीय गच्छत ॥
विषय
इमान् यवान् अहिंसन्तः
पदार्थ
१. है (तर्द) = हे हिंसक जन्तो! है (पतङ्ग) = हे टिड्डीदल! है (जभ्य) = हे हिंसा के योग्य (उपक्वस) = रेंगनेवाले कीट! (इव) = जैसे (ब्रह्मा) = ब्रह्मा (असंस्थितं हविः) = असंस्कृत हवि नहीं लेता, उसी प्रकार तुम (इमान् यवान्) = इन यवों को (अनदन्त:) = न खाते हुए (अहिंसन्त:) = इन्हें किसी प्रकार हिसित न करते हुए (अप उद् इत) = इस स्थान से दूर चले जाओ।
भावार्थ
धान्यरक्षक लोग कृषिनाशक जन्तुओं से कृषि को बचाएँ।
भाषार्थ
(है) हे (तर्द) हिंसक ! (है) हे (पतङ्ग) पतङ्ग के सदृश शीघ्रगतिक ! (जभ्य) हे हिंस्य ! (हा= है ) हे ( उपक्रम= उप +कु + अस ) ओ ! लगभग कुत्सित गति अर्थात् चाल वाले आखु ! चूहे ! (हविः) हवि को ( अनदन्तः) न खाते हुए (इमान् यवान्) इन जौं की (अहिंसन्तः) हिंसा न करते हुए (अपोदित) अपगत हो जाओ, भाग जाओ। (ब्रह्म इव हविः) ब्रह्म के सदृश यज्ञियहविः अन्न (असंस्थितम्) अनश्वर है [तुझ द्वारा खाया नहीं जा सकता, अतः सुरक्षित है]। तद, पतङ्ग आदि में जात्येकवचन है। उपक्वस में "अस" का अर्थ है, "गति" (भ्वादिः)। अथवा "ब्रह्म बन्ननाम" (निघं० २।७); अर्थात् जैसे हमारा खाद्य-अन्न सुरक्षित है, वैसे यज्ञयोग्य हविः अन्न भी सुरक्षित है इसे आखु खा नहीं सकता।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह प्रतीत होता है कि जब नया अन्न कृषि से प्राप्त हो, तब इस के दो विभाग कर "नवसस्येष्टि'" तथा अन्य यज्ञों के लिये एक विभाग अलग रख लेना चाहिये, और खाद्य अन्न का विभाग उस से अलग। पतंग=पतन् गच्छतीति, जो उड़ता हुआ जाता है, पतङ्गा]।
विषय
अन्नरक्षा के लिए हानिकारक जन्तुओं का नाश।
भावार्थ
(है तर्द) हे हिंसक जन्तो ! (है पङ्ग) हे टिड्डीदल ! (है जभ्य) हे हिंसा योग्य वा विनाश करने योग्य और (है उपक्कस) है टिड्डे आदि कीटो (ब्रह्मा इव) जिस प्रकार ब्रह्मा (असंस्थितम् इविः) असमाप्त या असंस्कृत हवि को नहीं लेता उसी प्रकार तुम लोग भी (असंस्थितं हविः) असंस्थित, अपरिपक्क, अधकची, अरक्षित अन्न को (अनदन्तः) न खाते हुए और (इमान् यवान्) इन जौ धान्यों को (अहिंसन्तः) हानि न पहुँचाते हुए (अप उदित) परे चले जाओ। धान्यरक्षक लोग उक्त कृषि-नाशक जन्तुओं से खेती को बचावें और ऐसा प्रबन्ध करें कि वे उनको हानि न पहुँचा सके।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अभयकामोऽथर्वा ऋषिः। अश्विनौ देवते। १ विराड् जगती। २-३ पथ्या पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Grain Protection
Meaning
O damaging bird, O creeping insect, dangerous, worth elimination, just as the priest leaves aside the havi not properly prepared, similarly you also leave the barley fields undamaged and go away.
Translation
Hey, borer (tarda), hey, locust (patatna), hey, grinder (upakvasa), just as a priest leaves the incomplete sacrifice, goes away without devouring or injuring this corn. (Hai and Ha = oh = Hey; interjections)
Translation
Let the injurious insects, birds and locusts, noxious insects and grass-hoppers fly away devouring not and injuring not the corn like the priest who does not accept uncleaned things for oblation.
Translation
Ho! crow, ho! thou locust, ho! obnoxious grass-hopper. As a priest rejects the not well-prepared oblation, so go hence devouring not, injuring not this corn.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(तर्द) हिंसककाकादे (है) हे (पतङ्ग) पतनशील शलभादे (है) (जभ्य) हिंस्य (हा) हे (उपक्वस) उप+कु+अस गतौ−अच्। उप हीनतया कौ भूमौ असति गच्छतीति यः सः, तत्सम्बुद्धौ। हे कीटादे (ब्रह्मा) ऋत्विक्। महाविद्वान् (इव) यथा (असंस्थितम्) असंस्कृतम्। अपथ्यम् (हविः) अन्नम् (अनदन्तः) अभक्षयन्तः (इमान्) समीपस्थान् (यवान्) यवाद्यन्नानि (अहिंसन्तः) अविनाशयन्तः (अपोदित) अप+उत्+इण् गतौ लोट्। उड्डीय गच्छत ॥
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