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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 82/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भग देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - जायाकामना सूक्त
    73

    येन॑ सू॒र्यां सा॑वि॒त्रीम॒श्विनो॒हतुः॑ प॒था। तेन॒ माम॑ब्रवी॒द्भगो॑ जा॒यामा व॑हता॒दिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । सू॒र्याम् । सा॒वि॒त्रीम् । अ॒श्विना॑ । ऊ॒हतु॑: । प॒था । तेन॑ । माम् । अ॒ब्र॒वी॒त् । भग॑: । जा॒याम् । आ । व॒ह॒ता॒त् । इति॑ ॥८२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन सूर्यां सावित्रीमश्विनोहतुः पथा। तेन मामब्रवीद्भगो जायामा वहतादिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । सूर्याम् । सावित्रीम् । अश्विना । ऊहतु: । पथा । तेन । माम् । अब्रवीत् । भग: । जायाम् । आ । वहतात् । इति ॥८२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 82; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विवाह संस्कार का उपदेशः।

    पदार्थ

    (येन पथा) जिस मार्ग से (अश्विना) दिन और रात्री ने (सावित्रीम्) सूर्यसम्बन्धी (सूर्याम्) ज्योति को (ऊहतुः) प्राप्त किया है। (तेन) उसी [मार्ग से] (जायाम्) वीरों को उत्पन्न करनेवाली भार्या को (आ) मर्यादापूर्वक (वहतात्) तू प्राप्त कर, (इति) यह बात (भगः) बड़े ऐश्वर्यवाले भगवान् ने (माम्) मुझसे (अब्रवीत्) कही है ॥२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर ने आज्ञा दी है कि जिस प्रकार दिन और रात सूर्य की गति के आश्रित होकर उपकार करते हैं, इसी प्रकार स्त्री-पुरुष धर्म के लिये ही विवाह संस्कार करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(येन) (सूर्याम्) सूर्य−अर्शआद्यच् सूर्यदीप्तिम् (सावित्रीम्) सवितृ−अण्, ङीप्। सूर्यसम्बन्धिनीम् (अश्विना) अ० २।२९।६। अहोरात्रौ (ऊहतुः) वह प्रापणे−लिट्। प्राप्तवन्तौ (पथां) मार्गेण (तेन) पथा (माम्) (अब्रवीत्) (भगः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वरः (जायाम्) वीरजननीं (पत्नीम्) (आ) मर्यादायाम् (वहतात्) वह। प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

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    विषय

    अश्विना सूर्या

    पदार्थ

    १. (येन पथा) = जिस मार्ग से (अश्विना) = अश्विनी देव-दिन और रात (सावित्री सूर्याम्) = सविता सम्बन्धी सूर्य को ज्योति को (ऊहतः) = धारण करते हैं, (तेन) = उसी मार्ग से तू (जायाम् आवहतात) = पत्नी को प्राप्त करनेवाला हो, (इति) = यह बात (माम्) = मुझे (भग:) = उस ऐश्वर्यवान् प्रभु ने (अब्रवीत्) = कही है। २. दिन और रात अत्यन्त नियमित गति में चलते हुए 'सूर्या' को प्राप्त करते हैं। एक वर भी उसी प्रकार नियमित गतिवाला होता हुआ तथा प्राणसाधना को अपनाता हुआ [अश्विना प्राणापानौ] पत्नी को प्रास करे।

    भावार्थ

    पति को 'अश्विनौ' [दिन-रात] की भौति नियमित गतिवाला होना चाहिए । इसे प्राणसाधना की प्रवृत्तिवाला होना चाहिए [अश्विना-प्राणापानौ]। पत्नी को 'सूर्या' बनना, क्रियाशील [सरति] व प्रकाशमय जीवनवाला होना चाहिए।

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    भाषार्थ

    (येन पथा) जिस मार्ग अर्थात् विधि द्वारा (अश्विना) घुड़सवार माता-पिता ने [पुत्र के लिये] (सावित्रीम्) जीवित पिता की पुत्री (सूर्याम्) सूर्या-स्नातिका को (ऊहतुः) [पुत्र के घर] प्राप्त किया, (तेन) उस मार्ग अर्थात् विधि द्वारा (भगः) ऐश्वर्यशाली इन्द्र (मन्त्र १) अर्थात् सम्राट् ने (माम्) मुझे (अब्रव्रीत्) कहा है कि (जायाम्) पत्नी का (आ वहतात्) तू आवहन कर (इति) यह।

    टिप्पणी

    [सावित्री =जन्मदाता पिता को पुत्री, अर्थात् जीवित पिता की पुत्री। वेद ने जैसे अभ्रातिका भगिनी के विवाहसम्बन्ध को नियन्त्रित किया है [निरुक्त अ० २। पाद १1 खंड १-६] वेसे जीवित-पितृका-पुत्री के विवाह को भी नियन्त्रित किया है (अथर्व० काण्ड १४, सूक्त १।२)। इस १४ वें काण्ड में विवाह की विधि भी निर्दिष्ट की है। जैसे आदित्य-स्नातक का विवाह सर्वोत्कृष्ट है वैसे सूर्या-स्नातिका का विवाह भी सर्वोत्कृष्ट है। आदित्य-स्नातक के विवाह के लिये सूर्या-स्नातिका सुयोग्या है। अश्विनौ = अश्व+इनिः (अत इनिठनौ, अष्टा० ५।२।१२५), अर्थात् घुड़सवार माता-पिता, वर के]।

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    विषय

    वर-वरण का उपदेश।

    भावार्थ

    (अश्विनौ) दिन और रात (येन पथा) जिस मार्ग से, जिस विधि से (सावित्रीं सूर्याम्) प्रकाश उत्पन्न करने वाली प्रभा को (ऊहतुः) बड़े आदर से समस्त विश्व में फैलाते हैं उसी प्रकार (अश्विना) वर के माता पिता (सावित्रीम्) पुत्र उत्पन्न करने में समर्थ नवयुवती, नवोढ़ा कन्या को उसी मान आदर से (ऊहतुः) अपने घर लेजावें। इसलिये वर कहता है कि (भगः) ऐश्वर्यवान् मेरा पिता (माम् इति अब्रवीत्) मुझे यह उपदेश करता है कि (जायाम्) अपनी स्त्री को भी (तेन) उसी आदर से (आ वहतात्) रथ पर बैठाकर लेजाओ। इस विवाह प्रकरण का विशेष विवरण (ऋ० मं० १०। सू० २५) में देखो। उसका विवरण (ऐ० ब्रा० ४। ७) में स्पष्ट है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जायाकामो भग ऋषिः। इन्द्रो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Marriage Match

    Meaning

    By the path the Ashvin stars conduct the dawn, daughter of the sun, for the day, the parents bring up the daughter to marriageable maturity. May the bridegroom take the bride and conduct her to her new bright home. So has Bhaga, lord of conjugal good fortune said to me, so has the lord directed me.

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    Translation

    The Lord of good fortune has spoken to me; bring a wife by the same path, by which the twins divine have brought the maiden of marriageable age, the daughter of the impeller (house-holder)

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    Translation

    Says bride-groom, the well-to-do father of mine has advised me to bring my consort by that way whereby the day and night carry the solar light.

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    Translation

    The way in which Day and Night have accepted the light of the sun, in the same way God hath ordered thus to me, to ceremoniously accept this wife.

    Footnote

    Pt. Damodar Sātavalekar interprets Bhaga as father of the girl.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(येन) (सूर्याम्) सूर्य−अर्शआद्यच् सूर्यदीप्तिम् (सावित्रीम्) सवितृ−अण्, ङीप्। सूर्यसम्बन्धिनीम् (अश्विना) अ० २।२९।६। अहोरात्रौ (ऊहतुः) वह प्रापणे−लिट्। प्राप्तवन्तौ (पथां) मार्गेण (तेन) पथा (माम्) (अब्रवीत्) (भगः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वरः (जायाम्) वीरजननीं (पत्नीम्) (आ) मर्यादायाम् (वहतात्) वह। प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

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