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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - आर्च्यनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त
    22

    बृ॒हच्च॑ रथन्त॒रं च॒ द्वौ स्तना॒वास्तां॑ यज्ञाय॒ज्ञियं॑ च वामदे॒व्यं च॒ द्वौ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒हत् । च॒ । र॒थ॒म्ऽत॒रम् । च॒ । द्वौ । स्तनौ॑ । आस्ता॑म् । य॒ज्ञा॒य॒ज्ञिय॑म् । च॒ । वा॒म॒ऽदे॒व्यम् । च॒ । द्वौ ॥११.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहच्च रथन्तरं च द्वौ स्तनावास्तां यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च द्वौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत् । च । रथम्ऽतरम् । च । द्वौ । स्तनौ । आस्ताम् । यज्ञायज्ञियम् । च । वामऽदेव्यम् । च । द्वौ ॥११.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 2; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहत्) बृहत् बड़ा [आकाश] (च च) और (रथन्तरम्) रथन्तर [रमणीय पदार्थों से पार लगानेवाला, जगत्] (द्वौ) दो, (च) और (यज्ञायज्ञियम्) सब यज्ञों का हितकारी [वेदज्ञान] (च) और (वामदेव्यम्) वामदेव [मनोहर परमात्मा] से जताया गया [भूतपञ्चक] (द्वौ) दो (स्तनौ) स्तन [थन समान] (आस्ताम्) हुए ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे गौ के चार थन होते हैं, वैसे ही ईश्वरशक्ति से आकाश, जगत्, वेद और पञ्चभूत प्रकट हुए हैं ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(बृहत्) प्रवृद्धमाकाशम् (च च) समुच्चये (रथन्तरम्) हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। रमु क्रीडायाम्−क्थन्+संज्ञायां भृतॄवृजि०। पा० ३।२।४६। तॄ प्लवनतरणयोः−स्रच्, मुम् च। रथै रमणीयपदार्थैस्तरति येन तद् जगत् (द्वौ) (स्तनौ) स्तन शब्दे-घञ्। कुचरूपौ (आस्ताम्) (यज्ञायज्ञियम्) वीप्सायां द्वित्वम्। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ३।३।१३७। इति दीर्घः। यज्ञर्त्विग्भ्यां घखञौ। पा० ५।१।७१। यज्ञायज्ञ-घ प्रत्ययः। सर्वेभ्यो यज्ञेभ्यो हितं वेदज्ञानम् (वामदेव्यम्) अ० ४।३४।१। वामदेवेन प्रशस्यपरमात्मना विज्ञापितं भूतपञ्चकम् (च) (द्वौ) ॥

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    विषय

    विराट् रूप कामधेनु

    पदार्थ

    १. उल्लिखित विराट् को-विशिष्ट दीप्तिवाली शासन-व्यवस्था को कामधेनु के रूप में चित्रित करते हुए कहते हैं कि-(तस्या:) = उस विराटप कामधेनु का (इन्द्रः वत्सः आसीत्) = एक जितेन्द्रिय पुरुष बत्स [बछड़ा] है अथवा प्रिय पुत्र है। इस कामधेनु की (गायत्री अभिधानी) = गान करनेवाले का जाण करनेवाली [गायन्तं त्रायते] यह वेदवाणी बन्धन-रजु है। (अभ्रम् ऊध:) = इस विराटप कामधेनु का मेघ ही दुग्धाशय है। जहाँ विराट् होती है, वहाँ पुरुष जितेन्द्रिय होते हैं, वेदविद्या का गान करते हुए वे अपना त्राण करते हैं, उस राष्ट्र में मेघ समय पर बरसकर अन्नादि की कमी नहीं होने देता। २. इस विराट्रूप कामधेनु के (बृहत् च रथन्तरं च) = बृहत् और रथन्तर (द्वौ स्तनौ आस्ताम्) = दो स्तन हैं। (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च द्वौ) = और यज्ञायज्ञिय तथा वामदेव दो स्तन हैं। ('द्यौर्वै बृहत्') = शत०९।१।३।३७ के अनुसार बृहत् का अर्थ [लोक है। ('इयं पृथिवी वै रथन्तरम्') = शत०९।१।३।३६ के अनुसार पृथिवी 'रथन्तर' है। ('चन्द्रमा वै यज्ञायज्ञियम्') = शत०१।१२।३९ के अनुसार यज्ञायज्ञिय का अर्थचन्द्रमा है। ('प्राणो वै वामदेव्यम्') = शत०९।१।२।३८ में वामदेव्य का अर्थ प्राण किया गया है।

    भावार्थ

    विराट्रूप कामधेनु का वत्स 'इन्द्र' है, अभिधानी 'गायत्री' है तथा ऊधस् [अभ्र] है, अर्थात् दोस शासन-व्यवस्थावाले राष्ट्र में पुरुष जितेन्द्रिय होते हैं, वेदविद्या का गान होता है, वहाँ समय पर बादल बरसता है। इस कामधेनु के धुलोक व पृथिवीलोक, चन्द्र व प्राण-चार स्तन है।

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    भाषार्थ

    (बृहत् च रथंतरम् च) वृहत् और रथन्तर (द्वौ) दो (स्तनौ आस्ताम्) स्तन थे, (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च) यज्ञायज्ञिय और वामदेव्य (द्वौ) दो स्तन थे।

    टिप्पणी

    [गौ के चार स्तन होते हैं। बृहत् आदि चार को विराट्-गौ के चार स्तन कहा है]।

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    विषय

    विराट के ४ रूप ऊर्ग, स्वधा, सूनृता, इरावती, उसका ४ स्तनों वाली गौ का स्वरूप।

    भावार्थ

    उस विराड् रूप गौ के (बृहत् च रथन्तरं च) बृहत् और रथन्तर, (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च) यज्ञायज्ञिय और वामदेव्य (द्वौ द्वौ स्तनौ) दो और दो (चार) स्तन (आस्ताम्) थे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः। विराड् देवता। १ त्रिपदा अनुष्टुप्। २ उष्णिग् गर्भा चतुष्पदा उपरिष्टाद् विराड् बृहती। ३ एकपदा याजुषी गायत्री। ४ एकपदा साम्नी पंक्तिः। ५ विराड् गायत्री। ६ आर्ची अनुष्टुप्। ८ आसुरी गायत्री। ९ साम्नो अनुष्टुप्। १० साम्नी बृहती। ७ साम्नी पंक्तिः। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    Brhat and Rathantara Samans were two udders of the Virat, Universal Cow. Yajnayajniya and Vamadevya Samans were the other two. (Brhat and Rathantara have also been interpreted as the wide space and the beautiful world. Yajnayajniya and Vamadevya have been explained as Vedic knowledge and the world of five elements.)

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    Translation

    Brhat and Rathantara were her two teats (stanau); yajnayajniya and Vamadevya the other two.

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    Translation

    Brihat and Rathantar Seaman become like its two teats and yajnayajniya and Vamdevya became another two teats (thus four teats in number).

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    Translation

    Sky and world are the two powers of God, Vedic knowledge, and five elements are the other two powers of God.

    Footnote

    Just as a cow has four teats, so God has fourfold powers. Five elements: Earth, water, Air, Fire, Atmosphere. For detailed explanation see Pt. Khem Karan Das Trivedi’s commentary.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(बृहत्) प्रवृद्धमाकाशम् (च च) समुच्चये (रथन्तरम्) हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। रमु क्रीडायाम्−क्थन्+संज्ञायां भृतॄवृजि०। पा० ३।२।४६। तॄ प्लवनतरणयोः−स्रच्, मुम् च। रथै रमणीयपदार्थैस्तरति येन तद् जगत् (द्वौ) (स्तनौ) स्तन शब्दे-घञ्। कुचरूपौ (आस्ताम्) (यज्ञायज्ञियम्) वीप्सायां द्वित्वम्। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ३।३।१३७। इति दीर्घः। यज्ञर्त्विग्भ्यां घखञौ। पा० ५।१।७१। यज्ञायज्ञ-घ प्रत्ययः। सर्वेभ्यो यज्ञेभ्यो हितं वेदज्ञानम् (वामदेव्यम्) अ० ४।३४।१। वामदेवेन प्रशस्यपरमात्मना विज्ञापितं भूतपञ्चकम् (च) (द्वौ) ॥

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