अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 16
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्यादूषणम् अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - चतुष्पदा भुरिग्जगती
सूक्तम् - प्रतिसरमणि सूक्त
18
अ॒यमिद्वै प्र॑तीव॒र्त ओज॑स्वान्संज॒यो म॒णिः। प्र॒जां धनं॑ च रक्षतु परि॒पाणः॑ सुम॒ङ्गलः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । इत् । वै । प्र॒ति॒ऽव॒र्त: । ओज॑स्वान् । स॒म्ऽज॒य: । म॒णि: । प्र॒ऽजाम् । धन॑म् । च॒ । र॒क्ष॒तु॒ । प॒रि॒ऽपान॑: । सु॒ऽम॒ङ्गल॑: ॥५.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमिद्वै प्रतीवर्त ओजस्वान्संजयो मणिः। प्रजां धनं च रक्षतु परिपाणः सुमङ्गलः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । इत् । वै । प्रतिऽवर्त: । ओजस्वान् । सम्ऽजय: । मणि: । प्रऽजाम् । धनम् । च । रक्षतु । परिऽपान: । सुऽमङ्गल: ॥५.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
हिंसा के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अयम्) यह (इत् वै) अवश्य ही (प्रतिवर्तः) प्रत्यक्ष घूमनेवाला, (ओजस्वान्) बलवान्, (संजयः) विजयी, (परिपाणः) परिरक्षक, (सुमङ्गलः) बड़ा मङ्गलकारी (मणिः) मणि [श्रेष्ठ नियम] (प्रजाम्) प्रजा (च) और (धनम्) धन की (रक्षतु) रक्षा करे ॥१६॥
भावार्थ
नियमवान् मनुष्य ही प्रजा और धन की रक्षा करते हैं ॥१६॥
टिप्पणी
१६−(अयम्) (इत्) अवश्यम् (वै) एव (प्रतिवर्तः) म० ४। प्रत्यक्षवर्तनशीलः (ओजस्वान्) बलवान् (संजयः) सम्यग् जेता (मणिः) म० १। श्रेष्ठनियमः (प्रजाम्) (धनम्) (च) (रक्षतु) (परिपाणः) म० १। परिरक्षकः (सुमङ्गलः) बहुश्रेयस्करः ॥
विषय
परिपाणः, सुमङ्गल:
पदार्थ
१. (अयं मणि:) = यह वीर्यरूपमणि (इत् वै) = निश्चय से (प्रतीवर्त:) = कृत्याओं के पराङ्मुख करने का साधन है। यह हमें रोगादि जनित छेदन-भेदन से बचानेवाली है। (ओजस्वान्) = यह हमें ओजस्वी बनाती है और (सञ्जयः) = सम्यक् विजयी करती है। २. शरीर में सुरक्षित यह वीर्यमणि (प्रजा धनं च) = प्रजा और धन की (रक्षतु) = रक्षा करे, अर्थात् हमें उत्तम प्रजावाला और उत्तम साधनों से धन कमाने योग्य बनाए। यह (परिपाण:) = सब प्रकार से हमारी रक्षक है और (सुमङ्गल:) = उत्तम कल्याण करनेवाली है।
भावार्थ
शरीर में सुरक्षित वीर्य सब छेदन-भेदन को दूर रखनेवाला है। यह हमें ओजस्वी बनाकर विजयी बनाता है, उत्तम प्रजा व उत्तम धनवाला बनाता है। यह हमारा रक्षण व मङ्गल करनेवाला है।
भाषार्थ
(अयम्) यह (मणिः) सेनाध्यक्ष पुरुषरत्न (इद् वै) निश्चय से ही (प्रतीवर्तः) शत्रुसेना को वापिस लौटा देता है, (ओजस्वान्) ओजस्वी है, (संजयः) सम्यक् जेता है। (परिपाणः) सब ओर से रक्षा करने वाला, (सुमङ्गलः) तथा उत्तम मंगलस्वरूप यह (प्रजाम् धनम्, च) प्रजा और धन की (रक्षतु) रक्षा करे।
विषय
शत्रुनाशक सेनापति की नियुक्ति।
भावार्थ
(अयम्) यह ही (मणिः) मणि के समान पदक का धारण करने वाला, शिरोमणि पुरुष (प्रतीवर्त्तः) शत्रु का मुख फेर देने में समर्थ, (ओजस्वान्) प्रभाव शाली होने के कारण (संजयः) जय लाभ करने में भली प्रकार समर्थ है। वह ही (परिपाणः) राष्ट्र की सब प्रकार से रक्षा करता हुआ या स्वयं चारों ओर से सुरक्षित रह कर और (सु-मंगलः) उत्तम मंगलजनक अभिषेक और राजतिलक आदि राजोचित संस्कारों से सुशोभित होकर (प्रजा धनम् च) प्रजा और धन की (रक्षतु) रक्षा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणमुत मन्त्रोक्ता देवताः। १, ६, उपरिष्टाद् बृहती। २ त्रिपाद विराड् गायत्री। ३ चतुष्पाद् भुरिग् जगती। ७, ८ ककुम्मत्यौ। ५ संस्तारपंक्तिर्भुरिक्। ९ पुरस्कृतिर्जगती। १० त्रिष्टुप्। २१ विराटत्रिष्टुप्। ११ पथ्या पंक्तिः। १२, १३, १६-१८ अनुष्टुप्। १४ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। १५ पुरस्ताद बृहती। १३ जगतीगर्भा त्रिष्टुप्। २० विराड् गर्भा आस्तारपंक्तिः। २२ त्र्यवसाना सप्तपदा विराड् गर्भा भुरिक् शक्वरी। द्वाविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Pratisara Mani
Meaning
This eminent hero of jewel distinction, dynamic in all directions, mighty powerful, all victorious, all protective and harbinger of good fortune may, we pray, protect and promote the wealth and people of the earth.
Translation
This powerful, all-conguering blessing, verily, is a reverser one. May this all round protector protect our progeny and wealth.
Translation
Let this Mani for you be of all-round fortune, O man ! let it be the means of strength, let it be the means of victory, let it be the means of safety, let it be the means of pleasure and prosperity, let it be the means of protecting progeny and wealth.
Translation
Verily, may this follower of Vedic teachings, foe-opposer, powerful, conqueror, protector, and fortunate, preserve our children and wealth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१६−(अयम्) (इत्) अवश्यम् (वै) एव (प्रतिवर्तः) म० ४। प्रत्यक्षवर्तनशीलः (ओजस्वान्) बलवान् (संजयः) सम्यग् जेता (मणिः) म० १। श्रेष्ठनियमः (प्रजाम्) (धनम्) (च) (रक्षतु) (परिपाणः) म० १। परिरक्षकः (सुमङ्गलः) बहुश्रेयस्करः ॥
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