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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त
    21

    बृ॑ह॒तः परि॒ सामा॑नि ष॒ष्ठात्पञ्चाधि॒ निर्मि॑ता। बृ॒हद्बृ॑ह॒त्या निर्मि॑तं॒ कुतोऽधि॑ बृह॒ती मि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒ह॒त: । परि॑ । सामा॑नि । ष॒ष्ठात् । पञ्च॑ । अधि॑ । नि:ऽमि॑ता । बृ॒हत् । बृ॒ह॒त्या: । नि:ऽमि॑तम् । कुत॑ :। अधि॑ । बृ॒ह॒ती । मि॒ता ॥९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहतः परि सामानि षष्ठात्पञ्चाधि निर्मिता। बृहद्बृहत्या निर्मितं कुतोऽधि बृहती मिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत: । परि । सामानि । षष्ठात् । पञ्च । अधि । नि:ऽमिता । बृहत् । बृहत्या: । नि:ऽमितम् । कुत :। अधि । बृहती । मिता ॥९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (षष्ठात्) छठे (बृहतः) बड़े [ब्रह्म] से (पञ्च) पाँच (सामानि) कर्म समाप्त करनेवाले [पाँच पृथिवी आदि भूत] (परि) सब ओर (अधि) अधिकारपूर्वक (निर्मिता) बने हैं। (बृहत्) बड़ा [जगत्] (बृहत्याः) बड़ी [विराट्, प्रकृति] से (निर्मितम्) बना है, (कुतः) कहाँ से (अधि) फिर (बृहती) बड़ी [प्रकृति] (मिता) बनी है ॥४॥

    भावार्थ

    पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पाँच तत्त्वों की अपेक्षा जो छठा ब्रह्म है, उससे वे पञ्चभूत प्रकट हुए हैं और उसी की शक्ति से वह जगत् बना है और उसी शक्तिमान् से वह शक्ति उत्पन्न हुई है ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(बृहतः) प्रवृद्धाद् ब्रह्मणः (परि) सर्वतः (सामानि) सातिभ्यां मनिन्मनिणौ। उ० ४।१५३। षो अन्तकर्मणि-मनिन्। कर्मसमापकानि पृथिव्यादिभूतानि (षष्ठात्) (पञ्च) पञ्चसंख्याकानि (अधि) अधिकारे (निर्माता) रचितानि (बृहत्) प्रवृद्धं जगत् (बृहत्याः) प्रवृद्धायाः विराडाख्यायाः प्रकृतेः सकाशात् (निर्मितम्) रचितम् (कुतः) कस्मात् (अधि) (पुनः) (बृहती) महती विराट् (मिता) रचिता ॥

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    विषय

    संसार का निर्माण

    पदार्थ

    १. 'अमोऽहमस्मि सा त्वं सा त्वमस्यमोऽहम्' इस [पार० कां० १०६।३] वाक्य के अनुसार पुरुष स्त्री का द्वन्द्व 'साम' है। इन इन्द्रों के शरीर प्रभु ने पञ्चमहाभूतों के द्वारा बनाये [तं वेधा विदधे नूनं महाभूतसमाधिना]। (षष्ठात्) = उस छठे प्रभु के द्वारा (पञ्च सामानि) = पाँच स्त्री पुरुषों के द्वन्द्वरूप शरीर-'ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व निषाद' सभी द्वन्द्व (बृहत: परि) = [परि from, out of] महाभूत [बृहत्-महान्] समाधि में से (अधिनिर्मिता) = बनाये गये। पाँच साम हैं, छठा इनका अधिष्ठाता प्रभु है। (बृहत्) = ये महाभूतसमूह (बृहत्या) = बृहती से-महत्तत्त्व से [प्रकृतेर्महान्] (निर्मितम्) = बनाया गया। अब प्रश्न होता है कि यह (बृहती) = महत्तत्त्व (कुत:) = कहाँ से (अधिमिता) = निर्मित हुआ? इस प्रश्न का उत्तर अगले मन्त्र में देते हैं कि-२. (बृहती) = महत्तत्व (मात्राया: परि) = [मात्रा-matter=मूल प्रकृति] प्रकृति में से निर्मित हुआ। (मातु:) = इस निर्माता प्रभु की अध्यक्षता में (मात्रा अधिनिर्मिता) = ['माता प्रजाता'-माता ने बच्चे को जन्म दिया] प्रकृति ने इस महत्तत्त्वरूप सन्तान को जन्म दिया। ३. 'इस संसार को बनाने के लिए प्रभु को प्रज्ञान कहाँ से उत्पन्न हुआ'? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि (माया) = प्रज्ञा (ह) = निश्चय से (मायाया: जज्ञे) = प्रज्ञा से ही प्रादुर्भूत हुई, अर्थात् प्रभु की प्रज्ञा कहीं और से उत्पन्न हो' ऐसी बात नहीं। प्रभु 'प्रज्ञानघन' ही है। (मायाया:) = इस प्रज्ञा के (परि मातली) = परे [beyond, more than] प्रभु हैं। प्रभु केवल सर्वज्ञ न होकर सर्वशक्तिमान् व सर्वेश्वर्यवान् भी हैं। 'माया व प्रज्ञा' प्रभु का एक रूप है। प्रभु उससे अधिक हैं। 'मातली' इन्द्र-सारथि कहलाता है। 'इन्द्र' जीव है, प्रभु इन जीवों को घुमा रहे हैं। जीवों के शरीररूप रथों के सञ्चालक प्रभु ही हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ने पञ्चमहाभूतों से ब्राह्मण आदि पाँच वर्गों के स्त्री-पुरुषों के शरीरों के इन्द्रों का निर्माण किया है। ये महाभूत महत्तत्त्व से हुए। महत्तत्त्व प्रकृति से। प्रभु की अध्यक्षता में प्रकृति ने इन महत्तत्त्व आदि को जन्म दिया। प्रभु की प्रज्ञा किसी और से प्रादुर्भूत नहीं हुई। प्रभु केवल प्रज्ञानस्वरूप न होकर सर्वशक्तिमान् व सर्वेश्वर भी हैं।

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    भाषार्थ

    (बृहतः, षष्ठात्१ परि अधि) ५ बृहत् पादों सहित छठे बृहत् अर्थात् ६ बृहत् पादों से (पञ्च सामानि) ५ साम [सामगान] (निर्मिता=निर्मितानि) निर्मित होते हैं। (बृहत्) बृहत् पाद (बृहत्याः) से (निर्मितम्) निर्मित होता है। (बृहती) बृहती छन्द (कुतः) किस से (मिता) निर्मित होता है ?

    टिप्पणी

    [सम्भवतः ५ बृहत्-पादों द्वारा ४ सामगान निर्मित होते हों, और ६ बृहत् पादों द्वारा ५वां बड़ा सामगान निर्मित होता हो, इसलिये षष्ठात् पृथक् वर्णन हुआ हो। बृहत्-पाद बृहती छन्द द्वारा निर्मित होता है। बृहती में ३६ अक्षर होते हैं। बृहती छन्द अनुष्टुप् छन्द से ४ अक्षरों द्वारा निर्मित होता है। साम के सम्बन्ध में कहा है कि "सहस्रवर्त्मा सामवेदः"। एक ही छन्दोमयी रचना को विविध नाना स्वरों में गाया जा सकता है। साम है स्वर। इस लिये सामवेद के मन्त्रों को अर्थात् हजार स्वरों में गाए जा सकने का निर्देश हुआ है। छान्दोग्य उपनिषद में कहा है कि "का साम्नो गतिः, स्वर इति" (अध्याय १। खण्ड ८।सन्दर्भ या कण्डिका ४)। अथर्ववेद में सामों के नाम प्रतिपादित हैं। यथा "बृहत्, रथन्तर, यज्ञायज्ञिय, वामदेव्य, वैरूप, वैराज, श्यैत, नौधस" (काण्ड १५। सूक्त ४। मन्त्र ३, ५, ८, ११]। [१. "षष्ठाद् बृहतः" के कथन से "पञ्चबृहतः" अन्य आक्षिप्त होते हैं। मन्त्रपठित "पञ्च" पद का अन्वय उभयत्र जानना चाहिये। यथा "पञ्चबृहतः" तथा “पञ्चसामानि"।]

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    विषय

    सर्वोत्पादक, सर्वाश्रय परम शक्ति ‘विराट’।

    भावार्थ

    (पञ्च* सामानि*) पञ्च अर्थात् परिणामस्वरूप, ‘विस्तृत’ या व्यक्त रूप पञ्च भूत (षष्ठात्*) उस षष्ठ अर्थात् सर्वव्यापक, उनमें लीन (बृहतः) बृहत् उस महान् तत्व में से (परि) पृथक् (अधि निर्मिता) बने और (बृहत्) वह ‘बृहत्’ महान् तत्व (बृहत्याः) उस ‘बृहती’ प्रकृति से (निर्मितम्) बना या प्रकट हुआ। (प्रश्न) अब प्रश्न यह है कि (बृहती) वह ‘बृहती’ प्रकृति (कुतः अधि निर्मिता) कहां से बन गई, प्रकट हुई ?

    टिप्पणी

    *‘डुपचष् पाके’ (भ्वादिः), पचि विस्तारवचने (चुरादिः), पचिव्यक्ति करणे (भ्वादिः) । *समी परिणामे (दिवादिः)। *‘षस् षस्ति स्वप्ने’ (अदादिः)।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा काश्यपः सर्वे वा ऋषयो ऋषयः। विराट् देवता। ब्रह्मोद्यम्। १, ६, ७, १०, १३, १५, २२, २४, २६ त्रिष्टुभः। २ पंक्तिः। ३ आस्तारपंक्तिः। ४, ५, २३, २४ अनुष्टुभौ। ८, ११, १२, २२ जगत्यौ। ९ भुरिक्। १४ चतुष्पदा जगती। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat Brahma

    Meaning

    Five basic elements, i.e., Akasha, Vayu, Agni, Apah, Prthivi, are evolved from Brhat, the great sixth, ahankara, from which they evolve and into which they devolve. That great sixth is evolved from the great Brhati, Mahat. Whence is Brhati, the great Mahat, evolved?

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    Translation

    From the sixth brhat five Samans have been composed. Brhat was fashioned out of brhat? Wherefrom the brhati was composed ?

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    Translation

    The five Somans are formed and revealed by Brihat, the great Divinity who is Shastha, the All-conquering force. Brihat saman is formed from Brihati metre and whence was the Brihati composed?

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    Translation

    Five elements were fashioned forth by the sixth Mighty God. From Matter was this vast universe formed whence was the Matter composed.

    Footnote

    Five elements: Panch Bhut, Air, Water, Fire, Earth, Atmosphere, i.e., Vayu, Jal, Agni, Prithivi and Akash.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(बृहतः) प्रवृद्धाद् ब्रह्मणः (परि) सर्वतः (सामानि) सातिभ्यां मनिन्मनिणौ। उ० ४।१५३। षो अन्तकर्मणि-मनिन्। कर्मसमापकानि पृथिव्यादिभूतानि (षष्ठात्) (पञ्च) पञ्चसंख्याकानि (अधि) अधिकारे (निर्माता) रचितानि (बृहत्) प्रवृद्धं जगत् (बृहत्याः) प्रवृद्धायाः विराडाख्यायाः प्रकृतेः सकाशात् (निर्मितम्) रचितम् (कुतः) कस्मात् (अधि) (पुनः) (बृहती) महती विराट् (मिता) रचिता ॥

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