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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - अतिथि सत्कार
    14

    उप॑ हरति ह॒वींष्या सा॑दयति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । ह॒र॒ति॒ । ह॒वींषि॑ । आ । सा॒द॒य॒ति॒ ॥७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप हरति हवींष्या सादयति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । हरति । हवींषि । आ । सादयति ॥७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अतिथि के सत्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [गृहस्थ] (हवींषि) हवनद्रव्यों को (उप हरति) भेंट करता है और (आ सादयति) समीप लाता है ॥३॥

    भावार्थ

    गृहस्थ हवनद्रव्यों को लाकर संन्यासी से हवन का लाभ पूँछता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(उप हरति) समर्पयति (हवींषि) हवनद्रव्याणि (आ सादयति) समीपं प्रापयति ॥

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    विषय

    अतिथियज्ञ से दीर्घजीवन

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (अतिथिपतिः) = अतिथि का पालक गृहस्थ (आहार्याणि) = अतिथि के लिए देने योग्य पदार्थों पर (प्रेक्षते) = दृष्टि करता है और प्रार्थना करता है कि (इदं भूया:) = यह और अधिक है, (इदम् इति) = यह और अधिक हो, ऐसा कहता है जो (एतत्) = इसप्रकार वह गृहस्थ उस विद्वान् अतिथि को (वै) = निश्चय से (यजमानखाह्मणम्) = यज्ञ में दीक्षित यजमान ब्राह्मण के समान (कुरुते) = कर लेता है। २. (यत् आह) = और जब गृहमेधि कहता है कि (भूयः उद्धर इति) = इस आहार योग्य पदार्थ में से कुछ और अधिक लीजिए तो (तेन) = उस प्रार्थना से (प्राणम् एव वर्षीयांसं कुरुते) = अपनी प्राणशक्ति को चिरस्थायी करता है और ३. जब (उपहरति) = अन्नादि पदार्थ उसके समीप लाता है तब (हवींषि आसादयति) = यज्ञ की हवियों को ही लाता है।

    भावार्थ

    अतिथियज्ञ के रूप में देवयज्ञ करते हुए हम दीर्घजीवन प्राप्त करते हैं।

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    भाषार्थ

    (उपहरति) समीप लाता है (हवींषि आसादयति) और हवियों अर्थात् भोज्य पदार्थों को समीप स्थापित करता है।

    टिप्पणी

    [हवींषि = अतिथिसेवा यतः यज्ञ है, इसलिये भोज्य पदार्थों को हवींषि कहा है। उपहरति= उपहार रूप में देता है]।

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    विषय

    अतिथि यज्ञ की देव यज्ञ से तुलना।

    भावार्थ

    और (यद्) जब गृहमेधी (आह) कहता है, प्रार्थना करता है कि भगवन् (भूयः उद्हर) इस आहार योग्य पदार्थ में से आप और अधिक ले लीजिये तो (तेन) उस कथन के करते हुए वह (प्राणम् एव) प्राण या जीवन शक्ति के देने वाले अन्न को (वर्षीयांसम्) और अधिक उपस्थित करता है और जब वह (उपहरति) अन्न आदि पदार्थ उसके समीप लाता है तो वह मानो यज्ञ की अन्नमय हवियें उसके समीप (आसादयति) उपस्थित करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अतिथिर्विद्या वा देवता। विराड् पुरस्ताद् बृहती। २, १२ साम्नी त्रिष्टुभौ। ३ आसुरी अनुष्टुप्। ४ साम्नी उष्णिक्। ५ साम्नी बृहती। ११ साम्नी बृहती भुरिक्। ६ आर्ची अनुष्टुप्। ७ त्रिपात् स्वराड् अनुष्टुप्। ९ साम्नी अनुष्टुप्। १० आर्ची त्रिष्टुप्। १३ आर्ची पंक्तिः। त्रयोदशर्चं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atithi Yajna: Hospitality

    Meaning

    When he takes up this more and brings it to the guest, it is as if he takes more of fragrant materials for the yajna, seats himself on the vedi and offers the oblation to Agni.

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    Translation

    When he brings viands (tó.the guest), he, as if, brings forth the libations (at sacrifice).

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    Translation

    When he brings the things near the guest he brings the oblations of yajna.

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    Translation

    When a householder brings materials near the guest, he brings them for oblations.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(उप हरति) समर्पयति (हवींषि) हवनद्रव्याणि (आ सादयति) समीपं प्रापयति ॥

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