ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 11/ मन्त्र 5
मर्ता॒ अम॑र्त्यस्य ते॒ भूरि॒ नाम॑ मनामहे । विप्रा॑सो जा॒तवे॑दसः ॥
स्वर सहित पद पाठमर्ताः॑ । अम॑र्त्यस्य । ते॒ । भूरि॑ । नाम॑ । म॒ना॒म॒हे॒ । विप्रा॑सः । जा॒तऽवे॑दसः ॥
स्वर रहित मन्त्र
मर्ता अमर्त्यस्य ते भूरि नाम मनामहे । विप्रासो जातवेदसः ॥
स्वर रहित पद पाठमर्ताः । अमर्त्यस्य । ते । भूरि । नाम । मनामहे । विप्रासः । जातऽवेदसः ॥ ८.११.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 11; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 35; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 35; मन्त्र » 5
विषय - ईश्वर की स्तुति ।
पदार्थ -
हे परमदेव ! हम मनुष्य यद्यपि (मर्ताः) मरणधर्मी और विनश्वर हैं, तथापि (विप्रासः) तेरे मेधावी स्तुतिपाठक हैं, वे हम (अमर्तस्य) मरणरहित (जातवेदसः) समुद्भूत सर्व पदार्थों के विज्ञाता (ते) तेरे (नाम) अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि नामों को (भूरि) बहुत प्रकार से (मनामहे) गाते, मनन करते और विचारते रहते हैं, अतः हमारी रक्षा कीजिये ॥५ ॥
भावार्थ - परमात्मवाचक शब्दों को विचारता हुआ उनके अर्थों के अनुकूल अपना आचरण बनावें ॥५ ॥
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