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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - विराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    पू॒र्वा॒युषं॑ सु॒हवं॑ पुरु॒स्पृहं॑ भु॒ज्युं वाजे॑षु॒ पूर्व्य॑म् । स॒च॒नाव॑न्तं सुम॒तिभि॑: सोभरे॒ विद्वे॑षसमने॒हस॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒र्व॒ऽआ॒पुष॑म् । सु॒ऽहव॑म् । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् । भु॒ज्युम् । वाजे॑षु । पूर्व्य॑म् । स॒च॒नाऽव॑न्तम् । सु॒म॒तिऽभिः॑ । सो॒भ॒रे॒ । विऽद्वे॑षसम् । अ॒ने॒हस॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्वायुषं सुहवं पुरुस्पृहं भुज्युं वाजेषु पूर्व्यम् । सचनावन्तं सुमतिभि: सोभरे विद्वेषसमनेहसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्वऽआपुषम् । सुऽहवम् । पुरुऽस्पृहम् । भुज्युम् । वाजेषु । पूर्व्यम् । सचनाऽवन्तम् । सुमतिऽभिः । सोभरे । विऽद्वेषसम् । अनेहसम् ॥ ८.२२.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (सोभरे) हे विद्वद्वर्ग ! आप जो रथ (पूर्वायुषम्) पूर्ण रीति से पोषण करे या पूर्व पुरुषों की पुष्टि करे, (सुहवम्) जिसका गमनागमन सरल हो, (पुरुस्पृहम्) जिसको बहुत विद्वान् पसन्द करें, (भुज्युम्) जो प्रजाओं का पालक हो, (वाजेषु) संग्रामों में (पूर्व्यम्) पूर्ण या श्रेष्ठ हो, (सचनावन्तम्) जल, स्थल और आकाश तीनों के साथ योग करनेवाला हो अर्थात् तीनों स्थानों में जिसका गमन हो सके, (विद्वेषसम्) शत्रुओं के साथ पूर्ण विद्वेषी हो और (अनेहसम्) जो दूसरों से हिंस्य न हो, ऐसे रथों को (सुमतिभिः) अच्छी बुद्धि लगाकर बनाओ ॥२ ॥

    भावार्थ - जो रथ या विमान या नौका आदि सुदृढ़, चिरस्थायी और संग्रामादि कार्य के योग्य हों, वैसी-२ बहुत सी रथ आदि वस्तु सदा विद्वान् बनाया करें ॥२ ॥

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