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  • यजुर्वेद - अध्याय 2/ मन्त्र 28
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भूरिक् उष्णिक्, स्वरः - ऋषभः
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    अग्ने॑ व्रतपते व्र॒तम॑चारिषं॒ तद॑शकं॒ तन्मे॑ऽराधी॒दम॒हं यऽए॒वाऽस्मि॒ सोऽस्मि॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। व्र॒त॒प॒त॒ऽइति॑ व्रतऽपते। व्र॒तम्। अ॒चा॒रि॒ष॒म्। तत्। अ॒श॒क॒म्। तत्। मे॒। अ॒रा॒धि॒। इ॒दम्। अ॒हम्। यः। ए॒व। अस्मि॑। सः। अ॒स्मि॒ ॥२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने व्रतपते व्रतमचारिषंन्तदशकंन्तन्मेराधीदमहँयऽएवास्मि सोस्मि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। व्रतपतऽइति व्रतऽपते। व्रतम्। अचारिषम्। तत्। अशकम्। तत्त्। मे। अराधि। इदम्। अहम्। यः। एव। अस्मि। सः। अस्मि॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 2; मन्त्र » 28
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    Translation -
    O adorable Lord, upholder of vows, I have observed the vow. I was able to observe it with success. (1) Whatever I am, I am. (2)

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