Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 27
    ऋषिः - आत्रेय ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    0

    हे॒म॒न्तेन॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वास्त्रि॑ण॒वे म॒रुत॑ स्तु॒ताः।बले॑न॒ शक्व॑रीः॒ सहो॑ ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हे॒म॒न्तेन॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। त्रि॒ण॒वे। त्रि॒न॒व इति॑ त्रिऽन॒वे। म॒रुतः॑। स्तु॒ताः। बले॑न। शक्व॑रीः। सहः॑। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हेमन्तेनऽऋतुना देवास्त्रिणवे मरुत स्तुताः । बलेन शक्वरीः सहो हविरिन्द्रे वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    हेमन्तेन। ऋतुना। देवाः। त्रिणवे। त्रिनव इति त्रिऽनवे। मरुतः। स्तुताः। बलेन। शक्वरीः। सहः। हविः। इन्द्रे। वयः। दधुः॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 27
    Acknowledgment

    Translation -
    In the Winter season, may the divine Maruts, praised with Trinava Stomas and with the Sakvari Samans, bestow strength, endurance, supplies and long life on the aspirant. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top