अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 32/ मन्त्र 2
नास्य॒ केशा॒न्प्र व॑पन्ति॒ नोर॑सि ताड॒मा घ्न॑ते। यस्मा॑ अच्छिन्नप॒र्णेन॑ द॒र्भेन॒ शर्म॒ यच्छ॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठन। अ॒स्य॒। केशा॑न्। प्र। व॒प॒न्ति॒। न। उर॑सि। ताड॑म्। आ। घ्न॒ते॒। यस्मै॑। अ॒च्छि॒न्न॒ऽप॒र्णेन॑। द॒र्भेण॑। शर्म॑। य॒च्छ॒ति ॥३२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
नास्य केशान्प्र वपन्ति नोरसि ताडमा घ्नते। यस्मा अच्छिन्नपर्णेन दर्भेन शर्म यच्छति ॥
स्वर रहित पद पाठन। अस्य। केशान्। प्र। वपन्ति। न। उरसि। ताडम्। आ। घ्नते। यस्मै। अच्छिन्नऽपर्णेन। दर्भेण। शर्म। यच्छति ॥३२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 32; मन्त्र » 2
Translation -
Diseases do not make his hair fall and do not give blow on him for whom the physician gives protection by Darbha with its leaves.