अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 34/ मन्त्र 8
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - जङ्गिडो वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जङ्गिडमणि सूक्त
अथो॑पदान भगवो॒ जाङ्गि॒डामि॑तवीर्य। पु॒रा त॑ उ॒ग्रा ग्र॑सत॒ उपेन्द्रो॑ वी॒र्यं ददौ ॥
स्वर सहित पद पाठअथ॑। उ॒प॒ऽदा॒न॒। भ॒ग॒ऽवः॒। जङ्गि॑ड। अमि॑तऽवीर्य। पु॒रा। ते॒। उ॒ग्राः। ग्र॒स॒ते॒। उप॑। इन्द्रः॑। वी॒र्य᳡म्। द॒दौ॒ ॥३४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अथोपदान भगवो जाङ्गिडामितवीर्य। पुरा त उग्रा ग्रसत उपेन्द्रो वीर्यं ददौ ॥
स्वर रहित पद पाठअथ। उपऽदान। भगऽवः। जङ्गिड। अमितऽवीर्य। पुरा। ते। उग्राः। ग्रसते। उप। इन्द्रः। वीर्यम्। ददौ ॥३४.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 34; मन्त्र » 8
Translation -
This Jangida is mighty protective and comfort-giver. Neither the medicines prepared prior to it surpass it nor the medicines which are of recent time surpass it.